प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन की वजह से किसानों को मंडियों में मिलने वाला प्याज का दाम कम हो गया है. इसकी वजह से किसानों में केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्सा है. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस मसले पर अपना बचाव किया है. केंद्र के किसानों की बजाय उपभोक्ताओं के हितों का पक्ष लिया है. लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले के एक सवाल पर जवाब देते हुए केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस बात को भी प्राथमिकता देनी चाहिए कि भारतीय उपभोक्ताओं को उचित दाम पर आवश्यक वस्तुएं मिलें.
केंद्र सरकार ने 7 दिसंबर को प्याज एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी थी. एक्सपोर्ट पर यह रोक मार्च 2024 तक जारी रहेगी. तब तक रबी सीजन का प्याज बाजार में आ जाएगा. जिससे भाव गिर जाएंगे. एक्सपोर्ट पर रोक लगाने के पीछे सरकार की मंशा यही है कि प्याज की घरेलू उपलब्धता बढ़े और उपभोक्ताओं को सस्ते रेट पर मिलता रहे. हालांकि, इसकी वजह से किसानों को भारी नुकसान हुआ है. वित्त मंत्री यह नहीं बता रही हैं कि किसानों के नुकसान की भरपाई कौन करेगा.
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सीतारमण ने कहा कि सरकार किसानों और उपभोक्ताओं के हितों का संतुलन बनाकर काम करती है. वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘मैं इस संबंध में चिंताओं को समझती हूं, लेकिन यदि फसल की कमी है और प्याज जैसी आवश्यक वस्तु को बाजार में पहुंचाने में कठिनाई हो रही है तो हमें सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय उपभोक्ताओं को प्राथमिकता मिले और इसलिए कई बार हमें इस तरह के उपाय करने होते हैं.’’
प्याज महाराष्ट्र की मुख्य फसलों में से एक है. यह राज्य देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. जिसकी कुल उत्पादन में हिस्सेदारी 43 प्रतिशत से अधिक है. इसलिए महाराष्ट्र में प्याज एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. राज्य की सत्ता में बैठे नेता इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) इस मुद्दे को सदन के बाहर और अंदर दोनों जगहों पर उठा रही है. ताकि किसानों की आवाज सरकार तक पहुंचे. पार्टी के सबसे बड़े नेता शरद पवार ने गत 11 दिसंबर को महाराष्ट्र के नासिक जिले में प्याज किसानों के एक प्रदर्शन में हिस्सा लेकर एक्सपोर्ट बैन का फैसला वापस लेने की मांग की थी.
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