Masoor Dal Kheti: मसूर की सबसे अच्छी किस्में कौन-कौन सी हैं, क्या है खासियत?

Masoor Dal Kheti: मसूर की सबसे अच्छी किस्में कौन-कौन सी हैं, क्या है खासियत?

मसूर की खेती की पूरी जानकारी पाएं- मसूर की बेहतरीन किस्में, बुआई का सही समय, उर्वरक प्रबंधन और ज्यादा उत्पादन के आसान तरीके.

मसूर की खेतीमसूर की खेती
क‍िसान तक
  • Noida ,
  • Oct 29, 2025,
  • Updated Oct 29, 2025, 9:52 AM IST

भारत में मसूर दाल रबी मौसम की एक प्रमुख फसल है, जो प्रोटीन, आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसकी खेती धान की कटाई के बाद खाली खेतों में की जाती है. मसूर न केवल किसानों के लिए लाभदायक फसल है बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है. आइए जानते हैं मसूर की खेती से जुड़ी पूरी जानकारी- किस्मों का चयन, बुआई का समय, उर्वरक प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण.

मसूर की बुवाई का सही समय

धान की फसल के बाद जब खेत खाली हो जाते हैं, तब मसूर की बुआई का सबसे उचित समय आता है. उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों और मध्य भारत में नवंबर के दूसरे पखवाड़े में मसूर की बुआई सबसे बेहतर रहती है. इस समय मिट्टी में पर्याप्त नमी रहती है जो अंकुरण के लिए आवश्यक होती है.

मसूर की प्रमुख और उन्नत किस्में

भारत के विभिन्न क्षेत्रों और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार मसूर की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं.
उत्तर-पूर्वी मैदानी और मध्य क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्में हैं – एल-4717, एल-4729, पीएसएल-9, वीएल मसूर-148, कोटा मसूर-3 और छत्तीसगढ़ मसूर-1 (नई किस्म). सूखा या नमी तनाव सहने वाली किस्मों में कोटा मसूर-2 (RKL 14-20) और कोटा मसूर-3 (RKL 605-03) प्रमुख हैं. लवणीय या क्षारीय मृदा के लिए पीएसएल-9, पीडीएल-1 और पूसा श्वेता (PSL-19) उपयुक्त हैं. गर्मी और उच्च तापमान सहने वाली किस्मों में कोटा मसूर-2, कोटा मसूर-3 और बिधान दाल-16 शामिल हैं. ठंड या पाला सहन करने के लिए शालीमार मसूर-3 और पोषक तत्वों से भरपूर बायो-फोर्टिफाइड किस्मों में पूसा अगेती मसूर (L-4717) और आईपीएल-220 बेहतर विकल्प हैं, जिनमें आयरन और जिंक की मात्रा अधिक होती है.

बुआई की विधि और बीज उपचार

मसूर की बुआई पंक्तियों में 20–25 सेंटीमीटर की दूरी पर की जानी चाहिए, जबकि पछेती बुआई के लिए यह दूरी 15 सेंटीमीटर कर दें. बड़े दाने वाली किस्मों के लिए बीज दर 55–60 किग्रा./हेक्टेयर और छोटे दाने वाली किस्मों के लिए 40–45 किग्रा./हेक्टेयर उचित रहती है.
बुआई से पहले बीज को रोगों से बचाने के लिए थीरम 2.5 ग्राम या जिंक मैग्नीज कार्बोनेट 3 ग्राम प्रति किग्रा. बीज से उपचारित करना चाहिए.

पोषक तत्व और उर्वरक प्रबंधन

मसूर की अच्छी पैदावार के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें. अंतिम जुताई के समय उर्वरक को बीज की सतह से 2 से.मी. नीचे और 5 से.मी. साइड में डालना सबसे अच्छा रहता है.

खाद की मात्रा

नाइट्रोजन 15–20 किग्रा., फॉस्फेट 50–60 किग्रा., गंधक 20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा यदि डीएपी उपलब्ध हो तो 100 किग्रा./हेक्टेयर का प्रयोग करें. जिंक की कमी होने पर 25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाएं.

खरपतवार नियंत्रण

बुआई के 25–30 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें. खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरोलिन 45 E.C. (2.0 ली./हेक्टेयर) को 800–1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई से पहले मिट्टी में मिलाएं या एलाक्लोर 50% E.C. (4.0 ली./हेक्टेयर) को बुआई के 2–3 दिन बाद समान रूप से छिड़कें.

मसूर की खेती किसानों के लिए एक फायदेमंद विकल्प है क्योंकि यह कम लागत में अधिक लाभ देती है. उचित किस्मों का चयन, समय पर बुआई, संतुलित उर्वरक और खरपतवार नियंत्रण से मसूर की फसल की उपज में काफी वृद्धि की जा सकती है. जलवायु और मिट्टी के अनुसार सही किस्म अपनाकर किसान मसूर उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकते हैं.

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