अगर मखाने की खेती और उत्पादन का जिक्र होगा तो बिहार का नाम सबसे पहले आता है. मखाना की खेती पूरे बिहार में नहीं बल्कि मिथिला क्षेत्र के एक छोटे से क्षेत्र में होती है जो दुनिया में अपनी खास पहचान रखता है. कृषि मंत्रालय के अनुसार विश्व का लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन अकेले बिहार के मिथिला क्षेत्र में होता है. दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर जैसे जिलों में लोग मखाने की खेती को काफी पसंद कर रहे हैं. यहां के मखाने की बेहतर गुणवत्ता को देखते हुए इसे जीआई टैग दिया गया है. आज यहां का मखाना मखाना नहीं बल्कि मिथिला मखाना के नाम से जाना जाता है.
मखाने की खेती की बात करें तो हम सभी ने देखा या सुना होगा कि मखाने की खेती तालाब या गहरे पानी में की जाती है. यानी इसकी खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मखाने की खेती के लिए पहले नर्सरी तैयार की जाती है और फिर इसकी बुआई की जाती है. ठीक वैसे ही जैसे धान की खेती की जाती है. ऐसे में अब मखाना की खेती करने वाले किसान तालाबों में नहीं बल्कि धान के खेतों में मखाना की खेती कर सकते हैं. आइये जानते हैं कैसे.
मखाने की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसकी खेती जलाशयों, तालाबों और निचली भूमियों, जहां 1 फीट तक गहरा पानी जमा हो, वहां अच्छी तरह से की जाती है. इसके अलावा इसे अन्य फसलों की तरह खेत में भी उगाया जा सकता है. मखाने की खेती की कई तकनीकें भी हैं.
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यह मखाना खेती की एक नई प्रणाली है, जिसे अनुसंधान संस्थान ने खोजा है. इस विधि में मखाने की खेती कृषि क्षेत्रों में 1 फीट की गहराई पर की जा सकती है. इस विधि को आसानी से पूरा किया जा सकता है. वहीं मखाने के साथ किसान अन्य फसलों की खेती भी पूरे साल आसानी से कर सकते हैं. मखाने के बीजों को पहले नर्सरी के रूप में उगाया जाता है और फिर सही समय पर उसे खेत में रोपा जाता है. क्षेत्र और नर्सरी उपलब्धता के आधार पर फरवरी के पहले सप्ताह से अप्रैल के तीसरे सप्ताह के बीच इसका रोपण किया जा सकता है.
इस प्रणाली से मखाना फसल की अवधि घटकर चार महीने रह जाती है. अंकुरण दिसंबर-जनवरी तक होता है और शुरुआती पत्तियां जनवरी-फरवरी के समय तालाब की सतह पर दिखाई देती हैं. अप्रैल-मई के दौरान पानी की पूरी सतह विशाल और कांटेदार पत्तियों से ढक जाती है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती हैं. अप्रैल के महीने में फूल आना शुरू हो जाता है जब तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है और अधिकतम फूल मई के महीने तक आते हैं. मखाने के फूल दो दिनों तक तैरते हैं और फिर पानी के नीचे डूब जाते हैं. मई के मध्य तक फल लगने शुरू हो जाते हैं और हर पौधे पर 10 से 20 फल लगते हैं.
हर फल में 40 से 70 बीज होते हैं और सामान्यतः 100 बीजों का वजन लगभग 80 से 100 ग्राम होता है. मखाने के एक पौधे से औसतन लगभग 450 से 700 ग्राम बीज प्राप्त होते हैं. मखाना के फल मई-जुलाई के दौरान पानी के अंदर फूटते हैं और बीज एक या दो दिन तक पानी में तैरते रहते हैं और फिर तालाब के तल पर बैठ जाते हैं. स्थानीय भाषा में मखाना के बीजों को गुरी कहा जाता है. फलने के बाद, विशाल पत्तियों को काटकर फेंक दिया जाता है या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, जो कार्बनिक पोषक तत्व के अलावा मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है.