Kusum Flower: कुसुम फूल की खेती कर हो सकते हैं धनवान, इन 4 बीमारियों में पौधों का रखें खास खयाल 

Kusum Flower: कुसुम फूल की खेती कर हो सकते हैं धनवान, इन 4 बीमारियों में पौधों का रखें खास खयाल 

कुसुम की फसल में रोगों की कोई विशेष समस्या नहीं होती है. रोग या बीमारियाँ हमेशा बारिश के बाद अधिक नमी के कारण खेत में फैली गंदगी, एक ही स्थान पर कुसुम की फसल की बार-बार कटाई के कारण होती हैं. अतः उचित फसल चक्र अपनाने, बीजोपचार कर बुआई करने, खेतों में साफ-सफाई रखने तथा जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो तो बीमारियाँ नहीं होंगी.

जानें कुसुम की खेती करने का सही तरीका और समयजानें कुसुम की खेती करने का सही तरीका और समय
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 13, 2023,
  • Updated Oct 13, 2023, 4:57 PM IST

कुसुम की खेती किसानों को मालामाल बना सकती है. कुसुम के फूलों और बीजों का उपयोग खाद्य तेल बनाने में किया जाता है. इसका उपयोग कॉस्मेटिक उत्पाद, मसाले और आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में भी किया जाता है. अच्छे उत्पादन के लिए कुसुम की फसल के लिए मध्यम काली मिट्टी से लेकर भारी काली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. कुसुम की उत्पादन क्षमता का पूरा लाभ लेने के लिए इसे गहरी काली मिट्टी में ही बोना चाहिए. इस फसल की जड़ें जमीन में गहराई तक जाती हैं.

कुसुम की बुवाई का सही समय

यदि खरीफ मौसम में मूंग या उड़द की बुआई की गई हो तो कुसुम की फसल बोने का उपयुक्त समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक है. यदि सोयाबीन की बुआई खरीफ की फसल के रूप में की गई है तो कुसुम की फसल की बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर के अंत तक है. यदि वर्षा आधारित खेती है और खरीफ में कोई फसल नहीं लगाई गई है तो कुसुम की फसल सितम्बर के अंत से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक सफलतापूर्वक बोई जा सकती है. हालाँकि, कुसुम के पौधों को को बहुत सावधानी और बीमारियों से बचा के रखने की जरूरत होती है. तभी जाकर किसान कुसुम की खेती कर इससे पैसा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं कुसुम के पौधों में लगने वाले रोग.

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कुसुम के पौधे में लगने वाले रोग

कुसुम की फसल में रोगों की कोई विशेष समस्या नहीं होती है. रोग या बीमारियाँ हमेशा बारिश के बाद अधिक नमी के कारण खेत में फैली गंदगी, एक ही स्थान पर कुसुम की फसल की बार-बार कटाई के कारण होती हैं. अतः उचित फसल चक्र अपनाने, बीजोपचार कर बुआई करने, खेतों में साफ-सफाई रखने तथा जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो तो बीमारियाँ नहीं होंगी.

जड़-सड़न रोग 

जब कुसुम के पौधे छोटे होते हैं तब सड़न रोग देखने को मिलता है. पौधों की जड़ें सड़ने के कारण जड़ों पर सफेद रंग की फफूंद जम जाती है. जड़ें सड़ने के कारण पौधे सूख जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बीजोपचार आवश्यक है. बीजोपचार के बाद ही बुआई करनी चाहिए.

भभूतिया रोग

इस रोग में पत्तियों और तनों पर सफेद रंग का पाउडर जैसा पदार्थ जमा हो जाता है. यदि ऐसे पौधे खेतों में दिखाई दें तो घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें या 7-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से सल्फर पाउडर डालें.

गेरुआ रोग

इस रोग का प्रकोप होने पर डाइथेन एम 45 नामक दवा की तीन ग्राम मात्रा एक लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से बचाव किया जा सकता है.

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