कूर्ग, भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक वह मशहूर हिल स्टेशन है, जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. यह भारत में अपने चाय और कॉफी के बागानों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है. साल 2019 में कूर्ग को एक बार फिर से मशहूर होने की वजह मिल गई, जब यहां पैदा की जाने वाली अरेबिका कॉफी जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग दिया गया. यह कॉफी कूर्ग कर्नाटक के कोडागु जिले में पैदा की जाती है और अपनी दिल जीतने वाली तेज खुशबू और चॉकलेट जैसे स्वाद के लिए बहुत ही पॉपुलर है. आज आपको इस कॉफी की खासियतों के बारे में बताते हैं.
कूर्ग अरेबिका कॉफी कई तरह के मिनिरल्स और विटामिन से लैस होती है. जीआई टैग का प्रयोग ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है. साथ ही भौगोलिक जुड़ाव के आधार पर उनके गुण होते हैं. जीआई टैग के मालिक के पास उत्पाद पर विशेष अधिकार होते हैं. कूर्ग हमेशा से ही अपनी हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है. साथ ही यहां की जलवायु, अरेबिका कॉफी के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. कूर्ग में कॉफी को दुनिया के लिए प्रकृति का गिफ्ट माना जाता है.
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कूर्ग कॉफी पारंपरिक तरीके से नहीं उगाई जाती है. कॉफी की खूशबू बहुत तेज तो होती ही है, साथ ही साथ इसमें एसिडिक बनाने वाले तत्व भी न के बराबर होते हैं. कॉफी के स्वाद और खूशबू को बरकरार रखने के लिए इसे खास विशिष्ट परिस्थितियों में उगाया जाता है. यहां पर कॉफी सिर्फ बड़े शीशम के पेड़ों, जंगली अंजीर के पेड़ों और कटहल के पेड़ों की छाया में उगाई जाती है. पारंपरिक तौर पर कॉफी बीन्स को धूप में सुखाया जाता है. इससे एक बेहतरीन खूशबू इसे हासिल होती है.
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कूर्ग में कॉफी का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा हुआ है. यहां के कॉफी के बागानों पर अंग्रेजों का काफी प्रभाव था और स्थानीय लोगों को कोडवा सेना का डर था. जब भारत को 1947 में आजादी मिली तो अंग्रेजों ने अपने कॉफी बागान दक्षिण भारतीयों और कूर्ग के स्थानीय लोगों को बेच दिए. यह कॉफी कूर्ग की अर्थव्यवस्था बन गई और स्थानीय किसानों ने कॉफी की खेती शुरू की. साथ ही कूर्ग कॉफी को बाकियों से अलग बनाने के लिए कई अनोखें तरीकों का प्रयोग किया.