Maize Farming: रबी सीजन में गेहूं से अधिक फायदेमंद है मक्के की खेती, कुछ अहम सुझाव जो आपके लिए है जरूरी

Maize Farming: रबी सीजन में गेहूं से अधिक फायदेमंद है मक्के की खेती, कुछ अहम सुझाव जो आपके लिए है जरूरी

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, रबी में मक्के की खेती करके गेहूं की तुलना में अधिक लाभ कमाया जा सकता है. इस फसल की विशेषता यह है कि इसकी उपज पर कीट और रोगों से ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता, खासकर खरीफ मक्का की तुलना में. यह जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य से बेहतर है. आज के रबीनामा में जानिए कैसे रबी में मक्के की खेती लाभकारी है?

रबी में गेहूं से ज्यादा मक्के की खेती फायदेमंदरबी में गेहूं से ज्यादा मक्के की खेती फायदेमंद
जेपी स‍िंह
  • NEW DELHI,
  • Nov 15, 2023,
  • Updated Nov 15, 2023, 5:00 PM IST

रबीनामा: लोगों के बदलते खानपान में रेडीमेड लेकिन पौष्टिक खाने का चलन बढ़ा है, जिसकी पूर्ति में मक्का अपना अहम स्थान रखता है. फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की बदौलत आज इसके बहुत सारे प्रोडक्ट की भारी मांग है. इसलिए किसानों का रुझान भी इसकी खेती में बढ़ा है. कभी एक ही मौसम में उगाई जाने वाली ये फ़सल अब साल भर लगाई जाने लगी है. बुवाई के लिहाज से ये फ़सल मौसम के चंगुल से आज़ाद है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार रबी में मक्के की खेती करके गेहूं की खेती से ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है. इस फसल की खासियत है कि यह खरीफ मक्का की तुलना में कम कीट और बीमारी से प्रभावित होती है. जलवायु परिवर्तन के नजरिये से भी यह बेहतर है. आज के रबीनामा में जानिए रबी मक्के की खेती कैसे है फायदेमंद.

रबी में गेहूं से ज्यादा मक्के की खेती फायदेमंद 

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार रबी सीजन और गेहूं की जगह मक्के की खेती करें तो उसमें अधिक मुनाफा होता है. अगर किसान रबी सीजन में गेहूं की जगह मक्के की खेती करें तो गेहूं का उत्पादन जहां 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ से ज्यादा नहीं होता, वहीं मक्के का उत्पादन 30 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ तक आसानी से पहुंच सकता है.

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गेहूं की खेती में प्रति एकड़ 18 से 20 हजार रुपये की बचत होती है, जबकि मक्के की खेती में प्रति एकड़ 40 हजार रुपये की बचत होती है.मक्के और गेहूं की कीमत भी करीब है. इस समय जहां गेहूं मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल है. वहीं मक्के की कीमत भी इसी के आसपास है, यानी 2200 के आसपास है. इस तरह उत्पादन ज्यादा होने से रबी मक्के में लाभ का दायरा बढ़ जाता है. जलवायु अनुकूल कृषि के तहत रबी मौसम में गेहूं की खेती के साथ मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. यदि कोई किसान रबी सीजन में मक्के की खेती करना चाहता है, तो आपको भी इसी तरह से खेती करनी चाहिए.

रबी मक्का की बेहतर किस्में 

रबी सीजन के लिए मक्का की किस्मों में गंगा 11, डेक्कन 103, 105, त्रिशुलता, शक्तिमान 1 ऐसी किस्में हैं जो 150 से 160 दिन में पक जाती हैं. ये किस्में प्रति एकड़ 30 -35 क्विंटल उपज देती हैं. इसके अलावा मोनसेंटो 9081, 9135, पायनियर 3396, 3335 हैं  जो 155 से 160 दिन में पक जाती हैं और 40 से 50 क्विंटल उपज देने की क्षमता है. संकुल मक्का में धवल, शरदमणि, शक्ति 1 उन्नत किस्में हैं.

उत्तर भारत में रबी मक्का बुवाई का समय

मक्का अनुसंधान संस्थान के अनुसार, रबी मक्का की बुवाई उत्तर भारत के राज्य बिहार में अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक कर लेना बेहतर होता है. इसके बाद उत्तर भारत में तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप अंकुरण और पौधों की वृद्धि में देरी होती है. बुआई से उपज कम होने की संभावना होती है. रबी मक्के की खेती बिहार और उत्तर प्रदेश में 20 अक्टूबर से 15 नवंबर और पंजाब-हरियाणा में 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करना सबसे बेहतर माना जाता है. रबी मक्के के लिए एक एकड़ खेत में 8 किलो बीज की जरूरत होती है.

इन बुवाई विधियों से लागत कम 

मक्का अनुसंधान संस्थान लुधियाना के अनुसार रबी मक्के की खेती रेडबेड सिस्टम की तकनीक से करनी चाहिए. इसमें पलांटर से बुवाई करने से मेड़ बन जाती है जिस पर उचित दूरी पर मक्के की बुवाई करते हैं. इससे खेतों में नमी संरक्षित रहती है. मक्के के अंकुरण में मदद करती है और रबी मक्के से अधिक उपज मिलती है. इस तकनीक से मक्का बोने से 20 से लेकर 30 फीसदी तक जल की बचत होती है.

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अगर धान के खेत में रबी मक्के की बुवाई जल्दी से करनी है तो जीरो टिलेज तकनीक से बुवाई कर मक्के की बेहतर उपज ले सकते हैं. ऐसे में मिट्टी में अच्छी नमी सुनिश्चित होनी चाहिए. बुवाई के समय बीज और उर्वरक देना चाहिए. मक्का के बीज के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी और पौधों से पौधे की बीच की दूरी 18 सेमी 20 सेमी और बीज को 4-5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए. बुवाई से पहले  थोड़ा गरम पानी भिगोकर रात भर छोड़ देना चाहिए. इससे बेहतर अंकुरण होता है.

कितना दें खाद-उर्वरक

खाद-उर्वरक स्वायल टेस्टिंग के आधार पर दें, तो अच्छा है. वैसे बुवाई से 10-15 दिन पहले 4 टन कम्पोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए. मक्के में 60 किलो नाइट्रोजन, 25  किलो फॉस्फोरस, 15 किलो पोटाश और 10 किलो ग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना उपयुक्त माना जाता है. संकुल क़िस्मों में नाइट्रोजन की मात्रा इनसे 20 प्रतिशत कम देनी चाहिए. बुवाई के समय 10 किलो नाइट्रोजन और पूरा फास्फोरस और पोटाश बुवाई के समय देना चाहिए. शेष नाइट्रोजन को 5 भागों में बांटकर बराबर प्रयोग करना चाहिए. इससे मक्के की खेती कर बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.


 

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