ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान अब 'ऑपरेशन बासमती' के लिए कमर कस रहे हैं. आने वाले हफ्तों में दोनों पड़ोसियों के बीच इस दिशा में बासमती धान के लिए कड़ी और बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है. इंडस्ट्री के कुछ लोग इसे 'बासमती वॉर' तक करार दे रहे हैं. भारत के दो राज्य हरियाणा और पंजाब, बासमती चावल के निर्यात के लिहाज से काफी अहम हैं. दोनों राज्यों की भूमि इस किस्म की खेती के लिए बेहद फायदेमंद करार दी जाती है.
अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा और पंजाब, दोनों राज्य मिलकर भारत के बासमती निर्यात में करीब 80 प्रतिशत का योगदान देते हैं. इसमें हरियाणा का योगदान करीब 40 प्रतिशत है. इस योगदान का एक बड़ा हिस्सा जीटी रोड बेल्ट से आता है. यहां करीब 100 एक्सपोर्ट्स हर साल निर्यात से 18,000 से 20,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाते हैं. चावल निर्यात में इन एक्सपोर्ट्स की एक बड़ी भूमिका है.
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर फेडरेशन (एआईआरईए) के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के हवाले से अखबार ने बताया कि हाल के तनाव के बाद भारत ग्लोबल मार्केट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अच्छी स्थिति में है. उनका कहना था कि भारत और पाकिस्तान खाड़ी देशों जैसे ईरान, इराक, ओमान, बहरीन, यूएई और कुवैत के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका को बासमती के मुख्य सप्लायर हैं.
सेतिया का कहना है कि अब जबकि भारत ने सिंधु जल संधि को खत्म कर दिया है तो पाकिस्तान के सामने एक बड़ी चुनौती है. बासमती और गैर-बासमती चावल जैसी पानी की ज्यादा खपत वाली फसलें पाकिस्तान में बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं. लेकिन इससे हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों को फायदा होगा क्योंकि जल संसाधनों को घरेलू कृषि के लिए मोड़ दिया जाएगा. सेतिया ने हालांकि घरेलू रुकावटों को लेकर भी आगाह किया है जो नीतिगत हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले साल न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू करना भारतीय निर्यातकों के लिए झटका था. इससे अनजाने में पाकिस्तान को बढ़त मिल गई थी. भारत में बेहतरीन गुणवत्ता वाले बासमती का उत्पादन होने के कारण हमें वैश्विक बाजार में अपनी बढ़त को बनाए रखना चाहिए. वहीं भारत की आक्रामक कूटनीतिक पहुंच जिसमें सांसदों के प्रतिनिधिमंडलों का कई देशों में दौरा भी शामिल है, इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. सेतिया की मानें तो ये प्रतिनिधिमंडल आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर कर रहे हैं. इस मजबूत कूटनीतिक रुख का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है जिससे भारतीय चावल निर्यातकों के लिए नए अवसर पैदा हो सकते हैं.
एआईआरईए के अध्यक्ष सतीश गोयल की मानें तो भारत ने चावल निर्यात में असाधारण सफलता देखी है. उन्होंने कहा, 'भारत ने पिछले वित्त वर्ष में 60 लाख टन से ज्यादा बासमती का निर्यात किया, यह अब तक का सबसे अधिक है. साल 2023-24 में, हमने 5.2 लाख टन का आंकड़ा छू लिया. इस साल, हमें पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ने की उम्मीद है.' उन्होंने बताया कि पाकिस्तान का निर्यात करीब 1 लाख टन है.
उन्होंने कहा कि हरियाणा, जो अपनी हाई क्वालिटी वाली उपज और मजबूत सप्लाई चेन के लिए जाना जाता है, इसमें महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बना रहेगा. हरियाणा चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष सुशील जैन ने भी कुछ ऐसा ही कहा. उनका कहना है कि जल संधि के खत्म होने से पाकिस्तान के चावल उत्पादन में कमी आने की आशंका है. इसका सीधा असर उनके निर्यात पर पड़ेगा. इससे भारतीय निर्यातक खासतौर पर हरियाणा के निर्यातकों को रणनीतिक बढ़त मिलेगी.
यह भी पढ़ें-