ईरानी सेब के आयात के चलते हिमाचल प्रदेश के व्यापारियों और किसानों के मुनाफे पर असर पड़ रहा है. सस्ता रेट होने के चलते ईरानी सेब की मांग बढ़ रही है, इससे उन्हें आर्थिक नुकसान का भय सता रहा है. ऐसे में सेब उत्पादक किसानों ने केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर ईरान से आयातित सेब का न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) बढ़ाने की मांग की है. सेब किसानों का कहना है कि ईरान से आयाति सेब का एमआईपी महज 50 रुपये किलो है, जो पिछले साल ही तय किया गया था. इसलिए इस साल एमआईपी को बढ़ाकर 90 रुपये किलो किया जाना चाहिए.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल सरकार ने ईरान से सस्ते आयातित सेब का मुकाबला करने के लिए 50 रुपये प्रति किलो एमआईपी तय किया था. हालांकि, एक साल बाद अब 50 रुपये प्रति किलो एमआईपी ईरानी सेबों के आयात पर अपना कोई असर नहीं छोड़ रहा है. ईरान से बड़ी मात्रा में सेब का आयात किया जा रहा है, जिससे घरेलू सेबों का मार्केट प्रभावित हो रहा है. इससे किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है. ऐसे में प्रगतिशील उत्पादक संघ के अध्यक्ष लोकिंदर बिष्ट का कहना है कि कम एमआईपी के चलते ईरानी सेब मार्केट में छा गाए हैं. ये 60 से 70 रुपये प्रति किलो तक बिक रहे हैं. इसके चलते ईरान से आयात भी बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि साल 2023-24 में, ईरान भारत को सेब का सबसे बड़ा निर्यातक था, जिसकी हिस्सेदारी फल के कुल आयात का 28 प्रतिशत थी.
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लोकिंदर बिष्ट का कहना है कि स्थानीय सेब उत्पादक ईरान से आयातित सस्ते सेब का मुकाबला नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे उत्पादन, कटाई, पैकेजिंग और माल ढुलाई की प्रति किलो लागत अकेले 55 से 60 रुपये के आसपास है. उन्होंने कहा कि उन्होंने मंत्रियों को लिखे पत्र में इस मुद्दे को उठाया है. ऐसे में अगर सरकार एमआईपी में बढ़ोतरी करती है तो 50 रुपये प्रति किलो से कम रेट पर ईरानी सेब भारत के मार्केट में नहीं हुंचेगा. फिर, फल पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया जाता है, जिससे इसकी कीमत 75 रुपये प्रति किलो हो जाती है. इसमें व्यापारियों और अन्य लोगों का मुनाफा भी जोड़ दें, तो यह और महंगा हो जाएगा. वहीं, उपभोकता तक पहुंचते-पहुंचते इसका रेट 100 रुपये किलो से भी ज्यादा हो सकता है. ऐसे में महंगा होने के चलते ईरानी सेब की मांग में कमी आएगी, जिससे किसानों की कमाई बढ़ेगी.
बिष्ट ने दावा किया कि एमआईपी और 50 प्रतिशत आयात शुल्क के बावजूद ईरानी सेब की इतनी सस्ती दरों पर उपलब्धता एक गड़बड़ी की ओर इशारा करती है. उन्होंने कहा कि या तो आयात शुल्क से बचने के लिए इन देशों से आने वाले फलों की बड़े पैमाने पर कम कीमत दिखाई जा रही है या फिर इसे दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के हस्ताक्षरकर्ता देशों के माध्यम से भारत में भेजा जा रहा है, जहां आयात शुल्क लागू नहीं है. बिष्ट ने कहा कि उत्पादकों ने केंद्र सरकार को लिखा है कि अगर सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए तो इनपुट लागत में तेज वृद्धि और ईरान से बेलगाम सस्ते आयात के कारण सेब की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गौर करेगी और हमारे द्वारा सुझाए गए कई ठोस कदम उठाएगी.
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