इस साल रबी सीजन की बुवाई धीमी गति से होने के बावजूद चना और मसूर जैसे मुख्य दलहन फसलों का बुवाई क्षेत्र (रकबा) पिछले साल की तरह बराबर रह सकता है. विशेषज्ञों और व्यापारियों ने यह अनुमान लगाया है. हाल ही में हुई बारिश और खरीफ फसल के कारण चना फसल की बुवाई में एक महीने की देरी दर्ज की गई है. ‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय कृषि कमोडिटी ब्रोकर और इंडेंटर सतीश उपाध्याय ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में चना की बुवाई धीमी गति से शुरू होने की बात कही है, जबकि गुजरात में इसकी बुवाई तेज और बड़े पैमाने पर देखी गई है.
सतीश उपाध्याय ने कहा कि सरकार को पिछले साल के मुकाबले चना की बुवाई के रकबे में बढ़ोतरी की उम्मीद है, लेकिन सूत्रों के अनुसार इस साल भी पिछली बार के बराबर रकबा रह सकता है. पीली मटर के ज्यादा इंपोर्ट से और ऑस्ट्रेलियाई दालों की कीमतों में गिरावट के कारण घरेलू चना की कीमतों पर असर पड़ रहा है. पिछले दो महीनों में ऑस्ट्रेलिया से पीली मटर के सस्ते दाम पर आयात के चलते चने की कीमतें 11 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है.
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वर्तमान में चना की कीमत 8,000 रुपये से घटकर 7,000 रुपये पर आ गई है. सतीश उपाध्याय ने कहा कि पीली मटर के अधिक आयात से चने की मांग पर असर पड़ा है, जो भारत के दाल सेक्टर के लिए चिंता की बात है. उन्होंने दिसंबर तक पीली मटर का आयात 30 लाख टन तक पहुंचने की बात कही है. मयूर ग्लोबल कॉरपोरेशन में सेल्स, वाइस प्रेसिडेंट हर्ष राय ने कहा कि पिछले साल फसलों में हुए रोगों के चलते मध्य प्रदेश में दलहन फसलों के रकबे में कमी दर्ज की जा सकती है.
मध्य प्रदेश में कीमतों के कारण किसान गेहूं और चने की खेती को ज्यादा तवज्जो देते हैं. हालांकि, दलहन के अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में इस सीजन दाल का रकबा थोड़ा बढ़ने की उम्मीद है और मटर की फसल पर असर देखने को मिल सकता है. इस साल दलहन फसलों की बुवाई में वृद्धि या इसी तरह की स्थिति देखने को मिल सकती है. राय ने कहा कि सरकार के पास लाल दाल का अच्छी मात्रा में स्टॉक उपलब्ध और अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में सरकार इस स्टॉक को कैसे बेचती है.