Climate Change: कैसे किसानों को भुगतना पड़ रहा है जलवायु परिवर्तन का खामियाजा  

Climate Change: कैसे किसानों को भुगतना पड़ रहा है जलवायु परिवर्तन का खामियाजा  

Climate Change: भारत के साल 2024-25 के आर्थिक सर्वे में खाद्य मुद्रास्फीति पर क्‍लाइमेट चेंज के असर पर जोर दिया गया है. चक्रवातों में इजाफे के कारण पूरे देश में फसलों को बड़े स्‍तर पर नुकसान हुआ है. बेमौसम बारिश और भीषण गर्मी ने किसानों को संकट में डाल दिया है. मार्च में हरियाणा में ओलावृष्टि से सरसों और सूरजमुखी की फसलें बर्बाद हो गईं जिससे तिलहन उत्पादन पर बुरा असर पड़ा. 

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क‍िसान तक
  • Noida ,
  • Jun 06, 2025,
  • Updated Jun 06, 2025, 5:08 PM IST

Climate Change: हम जिस दुनिया में रहते हैं, वह रोज बदल रही है. मौसम के पैटर्न में आए दिन होने वाले बदलावों से दुनिया कैसे बदल रही है, सबसे ज्‍यादा नजर आता है. साल 2025 के कारण पिछले छह महीनों में पूरे भारत में जलवायु पैटर्न में असामान्य बदलाव आया है. इसका सबसे ज्‍यादा प्रभाव खेती में नजर आया है. दुनिया भर के किसान जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं. इस साल मई में बेमौसम बारिश ने दक्षिणी और पश्चिमी भारत में तबाही मचाई, फसलों को नुकसान पहुंचा और खाद्य क्षेत्र में महंगाई में इजाफा हुआ. 

फसलों की पैदावार प्रभावित 

क्‍लाइमेट चेंज पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी छठी रिव्‍यू रिपोर्ट में भविष्यवाणी की थी. रिपोर्ट के अनुसार क्‍लाइमेट चेंज ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर फसल पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वर्तमान में ग्‍लोबल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 22 फीसदी कृषि, फॉरेस्‍ट और भूमि उपयोग से आता है. इसलिए कृषि क्‍लाइमेट चेंज में योगदानकर्ता और पीड़ित दोनों है. 

भारत के साल 2024-25 के आर्थिक सर्वे में खाद्य मुद्रास्फीति पर क्‍लाइमेट चेंज के असर पर जोर दिया गया है. चक्रवातों में इजाफे के कारण पूरे देश में फसलों को बड़े स्‍तर पर नुकसान हुआ है. बेमौसम बारिश और भीषण गर्मी ने किसानों को संकट में डाल दिया है. मार्च में हरियाणा में ओलावृष्टि से सरसों और सूरजमुखी की फसलें बर्बाद हो गईं जिससे तिलहन उत्पादन पर बुरा असर पड़ा. 

टॉप फसलें संवेदनशील 

टमाटर, प्याज और आलू जिन्‍हें टॉप फसलें भी कहते हैं, जलवायु परिवर्तन के लिए खासतौर पर संवेदनशील रही हैं. मई में अनियमित बारिश ने महाराष्‍ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों को प्रभावित किया.  इससे टमाटर की कीमतें दोगुनी हो गईं और आने वाले हफ्तों में प्याज की कीमतों में और बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. ये नुकसान सिर्फ खाद्य फसलों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं पर भी इसका असर पड़ा है. 

अनियमित बारिश से बढ़ी मुश्किलें 

अनियमित बारिश के चलते सप्‍लाई चेन में अचानक व्यवधान पैदा होता है, जिससे कीमतें और भी अधिक बढ़ जाती हैं और अस्थिरता पैदा होती है. टूटी सड़कें और अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं स्थिति को और खराब कर देती हैं. कीटों के हमले भी बढ़ गए हैं, कुछ कीट गर्म जलवायु में पनप रहे हैं जिससे फसलों को और अधिक नुकसान हो रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो एक सम्मेलन में कहा कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से अगले 30 सालों में गेहूं की पैदावार में 4 फीसदी तक की गिरावट आने का अनुमान है. 

विशेषज्ञों का कहना है कि खतरे में सिर्फ खाद्यान्‍न फसलें ही नहीं हैं बल्कि उन पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका भी है.  खाद्य भंडारण प्रणालियों को मजबूत करना, कोल्ड चेन बुनियादी ढांचे में सुधार करना, लॉजिस्टिक्‍स की कमियों को दूर करना और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना आज के समय की जरूरत है. 

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