हर किसान चाहता है कि कम दिनों में उसे गेहूं की अधिक से अधिक पैदावार मिले. गेहूं की महंगाई को देखते हुए किसानों की यह इच्छा और भी प्रबल हो रही है. इसी इच्छा को ध्यान में रखते हुए हम ऐसी किस्म के बारे में बता रहे हैं जो किसान की कोठी को गेहूं से भर देगी. अगर आप बिहार के किसान हैं तो यह किस्म आपके लिए है. गेहूं की इस वैरायटी का नाम है के 9107. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि बाकी वैरायटी जहां 140 दिन तैयार होने में लेती हैं तो यह किस्म महज 120 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है.
बिहार के किसान इस किस्म की बुवाई सिंचित क्षेत्रों में समय पर कर सकते हैं. मनमाफिक उपज चाहिए तो किसानों को इस किस्म की बुवाई 15-30 नवंबर तक कर देनी चाहिए. इस तरह किसान के पास 20 दिन का समय और है. इस वैरायटी के अलावा और भी कई किस्में हैं जो 120-130 दिनों में तैयार होती हैं और 40-50 क्विंटल उपज देती हैं. आइए इन वैरायटी का नाम जान लेते हैं.
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बुवाई के पहले बीज की अंकुरण क्षमता की जांच जरूर कर लें. बीज अगर उपचारित नहीं है तो बुवाई के पहले बीज को जरूर उपचारित करें. सामान्यतः गेहूं में बीज उपचार के लिए बीटा वैक्स या बैविस्टीन 02 ग्राम प्रति किलो से उपचारित किया जाता है. इसके अलावा रैक्सिल 01 ग्राम प्रति किलो थायमेथोक्सम (क्रूजर) 02 मिली प्रति किलो बीज और एजोटोबैक्टर और पीएसबी 4 पैकेट (200 ग्राम के) प्रति 40 किलो ग्राम बीज उपचारित कर सकते हैं.
सिंचित और समय से बुवाई के लिए उर्वरक में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा 62-25-15 किलो प्रति एकड़ है. बुवाई के समय 50 किलो डीएपी प्रति एकड़ मशीन से डालें और 30 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश का छिड़काव अलग से करें या एनपीके का मिश्रण 12-32-16 को 75 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से मशीन द्वारा बुवाई के साथ डालें.
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पहली, दूसरी और तीसरी सिंचाई से पहले यूरिया का 35 किलो प्रति एकड़ हाथ से छिड़काव करें. हल्की मिट्टी वाले खेतों में यूरिया का प्रयोग सिंचाई के बाद करें. बिहार की मिट्टी में सल्फर और जिंक की मात्रा सामान्य से काफी कम है. इसलिए बुवाई के समय जिंक सल्फेट का प्रयोग 10 किलो प्रति एकड़ की दर से करें.