Grapes Cultivation: अगर उत्तर प्रदेश में खाने के टेबिल के लिए अंगूर की सबसे अच्छी प्रजाति 'फ्लेम सीडलेस' है तो रस से भरपूर होने के कारण पूसा नवरंग भी जूस, जैम और जेली के लिए खुद में बेमिसाल है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के पूर्व निदेशक सीएस राजन के मुताबिक, पूसा नवरंग में जूस उत्पादन की उल्लेखनीय क्षमता है. यह प्रजाति उत्तर प्रदेश खासकर जिन क्षेत्रों की कृषि जलवायु क्षेत्र लखनऊ के समान है उन क्षेत्रों में उत्पादन के लिए अनुकूल है. इसका अद्वितीय रस प्रोफ़ाइल इसे क्षेत्र के लिए फ्लेम सीडलेस के बाद दूसरी सबसे उपयुक्त किस्म बनाती है.
डॉ. राम कुमार ने बताया, 'पुसा नवरंग की सफलता जूस बनाने के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि इसका स्वाद और उपज इसे पारंपरिक फसलों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बनाता है. स्थानीय परिस्थितियों में इसकी अनुकूलता के कारण यह प्रजाति किसानों के लिए एक मूल्यवान विकल्प है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने वर्षों तक अंगूर की कई प्रजातियों पर शोध के बाद पाया कि अंगूर की इन दोनों किस्मों की उत्तर भारत में अच्छी खासी व्यावसायिक संभावनाएं हैं. इन प्रजातियों की पहचान कर वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में अंगूर की खेती के लिए नए दरवाजे खोले हैं. दोनों प्रजातियां न केवल स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं, बल्कि बाजार की मांगों को भी पूरा करती हैं. ये प्रजातियां उत्तर भारत के किसानों के लिए योगी सरकार की मंशा के अनुसार फसल विविधिकरण का एक बेहतरीन विकल्प प्रस्तुत करती हैं. इसके साथ किसान छाए में होने वाली सब्जियों और मसालों की खेती कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं. किसानों की आय बढ़े वे खुशहाल हों यह योगी सरकार की सिर्फ मंशा ही नहीं संकल्प भी है.
यूं तो बाजार में अलग-अलग रंग के अंगूर उपलब्ध हैं, लेकिन काले अंगूर की डिमांड हमेशा बनी रहती है और यह महंगा भी बिकता है. इसलिए काले अंगूर की खेती कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. दुनियाभर में काले अंगूर की कई वैरायटी उपलब्ध हैं, लेकिन व्यवसायिक लिहाज से कुछ ही काम की मानी जाती हैं. ऐसे में अंगूर के अधिक उत्पादन के जरूरी है कि किसान सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करें. इसकी कुछ ऐसी वैरायटी हैं, जिनमें कीट और रोग नहीं लगते.
इनकी खेती से किसान अच्छा लाभ हासिल कर सकते हैं. भारत में अंगूर की सबसे अधिक खेती महाराष्ट्र में होती है. देश का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन नासिक जिले में होता है. इसके अलावा राजस्थान, पश्चिमी यूपी, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में इसकी खेती की जाती है.