Sugarcane farming: सिर्फ कीट नहीं, किसान की ये गलतियां भी घटा रही हैं गन्ने की पैदावार

Sugarcane farming: सिर्फ कीट नहीं, किसान की ये गलतियां भी घटा रही हैं गन्ने की पैदावार

गन्ने की फसल में टॉप बोरर की समस्या आजकल किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. यह समस्या सिर्फ कीटनाशकों की कमी से नहीं, बल्कि उनके गलत इस्तेमाल और स्प्रे पंप के रखरखाव में बरती जाने वाली लापरवाहियों के कारण और भी गंभीर होती जा रही है. कई किसान गलत समय पर स्प्रे करते हैं, अनुचित मात्रा में दवा मिलाते हैं, कम पानी का इस्तेमाल करते हैं, सही उपकरण का चयन नहीं करते और बिना विशेषज्ञ सलाह के दवाइयों का छिड़काव कर देते हैं. इससे कीटों पर असर नहीं होता और फसल कमजोर हो जाती है. विशेष रूप से टाप बोरर जैसे कीट समय रहते नियंत्रण न होने पर पैदावार घटा देते हैं.

गन्ना किसानों के लिए बड़ा फैसलागन्ना किसानों के लिए बड़ा फैसला
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Jun 18, 2025,
  • Updated Jun 18, 2025, 12:28 PM IST

गन्ना उत्पादक किसान एक बार फिर चोटी-भेदक कीट (टॉप बोरर) की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. पिछले साल की तरह इस साल भी गन्ने की फसल में इस कीट का प्रकोप तेजी से बढ़ने लगा है. यह कीट अपनी सुंडियों के माध्यम से पत्तियों की मध्य शिरा को छेदकर गन्ने के गोफ में प्रवेश कर जाता है और पौधे की सामान्य वृद्धि को बाधित करता है. परिणामस्वरूप फसल कमजोर हो जाती है और उपज में भारी कमी आ सकती है. किसानों से बातचीत के दौरान टॉप बोरर के नियंत्रण में कीटनाशकों के गलत इस्तेमाल के कई कारण सामने आए हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार, इस कीट की तीसरी पीढ़ी सबसे अधिक नुकसानदायक होती है, जो सामान्यत: जून के तीसरे सप्ताह में सक्रिय होती है. इस समय यदि किसान सावधानी बरतते हुए खेती करें तो कीट को रोका जा सकता है. लेकिन अक्सर किसान टॉप बोरर के लिए दवा का छिड़काव सही समय पर नहीं करते. अगर छिड़काव बहुत देर से या बिना कीट की सही पहचान के किया जाए, तो वह पूरी तरह से बेअसर हो सकता है. कीट के जीवन चक्र को समझकर ही सही समय पर दवा का प्रयोग करना बेहद जरूरी है.

गलत घोल, बेकार दवा: बर्बाद फसल

विशेषज्ञों के अनुसार, कई किसान दवा का घोल बनाते समय अनुशंसित मात्रा और विधि का पालन नहीं करते. इससे दवा की प्रभावशीलता काफी कम हो जाती है, और वह कीट पर अपेक्षित असर नहीं कर पाती. दवा कंपनियों द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है. अधिकांश किसान प्रति एकड़ केवल 150-200 लीटर पानी में दवा का घोल बनाकर छिड़काव करते हैं, जबकि अनुशंसा के अनुसार 300-400 लीटर पानी प्रति एकड़ होना चाहिए.

पर्याप्त पानी का उपयोग करने से दवा पौधों पर अच्छे से चिपकती है और अधिक प्रभावी तरीके से काम करती है. पानी की कमी से दवा का फैलाव असमान होता है, जिससे कीटों को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. कई किसान विश्वसनीय कंपनियों की CTPR आधारित दवाओं के बजाय सस्ती और सामान्य ब्रांड की दवाएं चुन लेते हैं. ये निम्न गुणवत्ता वाली दवाएं अक्सर उतनी असरदार नहीं होतीं, जिससे कीट नियंत्रण में विफलता मिलती है और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. प्रमाणित ब्रांड की दवाओं का ही इस्तेमाल करें.

पंप सफाई और घोल तैयारी में चूक से घटती है उपज

हालिया सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, स्प्रे का इस्तेमाल करते समय कई बड़ी गलतियां सामने आई हैं. लगभग 90 फीसदी किसान स्प्रे पंप को इस्तेमाल के बाद अच्छे से साफ नहीं करते. इससे पंप में पुरानी दवा बची रहती है और अगली दवा का असर बिगड़ जाता है. रासायनिक अवशेषों के मिश्रण से नई दवा की रासायनिक संरचना प्रभावित होती है, जिससे उसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है. नियमित कई किसान दवा घोल बनाते समय उचित मात्रा और मिश्रण प्रक्रिया का पालन नहीं करते. इससे फसल पर दवा का अपेक्षित असर नहीं पड़ता.

घोल को सही अनुपात में और अच्छी तरह से मिलाना चाहिए ताकि दवा के कण समान रूप से वितरित हों. एक विशेषज्ञ के अनुसार भारतीय किसानों में एक ऐसी सामाजिक आदत भी है जो समस्या को बढ़ाती है. दवा छिड़काव के बाद खाली कीटनाशक की पैकिंग दिखाना पसंद न करना. इससे आस-पड़ोस के किसानों को यह पता ही नहीं चल पाता कि कौन सी दवा इस्तेमाल की गई है और उसका क्या असर हुआ. जानकारी साझा करने की कमी के कारण सही दवाओं और प्रभावी तरीकों का ज्ञान अन्य किसानों तक नहीं पहुंच पाता है.

मल्टी-मिक्स से बचें, ड्रेन वाल्व अपनाएं, फसल बचाएं

कई किसान 3-4 प्रकार की दवाएं कीटनाशक, फफूंदनाशक, ग्रोथ प्रमोटर, सूक्ष्म पोषक तत्व एक साथ मिलाकर स्प्रे करते हैं. इससे मिश्रण की प्रभावशीलता खत्म हो जाती है और फसल पर हानिकारक असर भी पड़ सकता है. विभिन्न रसायनों का एक साथ मिश्रण उनकी क्रिया को बाधित कर सकता है या अवांछित रासायनिक प्रतिक्रियाएं पैदा कर सकता है. हमेशा अलग-अलग छिड़काव करें या विशेषज्ञों की सलाह लें.

लगभग 95 फीसदी स्प्रे पंप में ड्रेन वाल्व नहीं होता. इसके बिना बचा हुआ दवा घोल निकालना संभव नहीं होता, जिससे पंप में रासायनिक अवशेष रह जाते हैं और वह खराब या किण्वित हो जाता है. ड्रेन वाल्व युक्त पंप का उपयोग करने से बचे हुए घोल को आसानी से निकाला जा सकता है, जिससे पंप की सफाई आसान होती है और उसकी उम्र बढ़ती है.

टॉप बोरर से बचाव: सही दवा, सही पंप, ज़्यादा मुनाफा

अगर किसान टॉप बोरर जैसी समस्या से बचना चाहते हैं और अपनी गन्ने की फसल को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो उन्हें इन बातों का ध्यान रखना होगा. सही समय पर, उचित मात्रा में, और प्रमाणित ब्रांड की दवाओं का इस्तेमाल करे. स्प्रे पंप की नियमित सफाई करें. दवा घोल की सही तैयारी करें. ड्रेन वाल्व युक्त स्प्रे मशीनों का प्रयोग करें. इन सावधानियों का पालन करके किसान न केवल अपनी फसल को कीटों से बचा सकते हैं, बल्कि कीटनाशकों के अनावश्यक खर्च से भी बच सकते है.

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