भारतीय रसोई की कल्पना मसालों के बिना नहीं की जा सकती हैं. मसालों का अधिकतर उपयोग भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है. जीरा भी ऐसा ही एक प्रमुख मसाला है. दाल,सब्जी और कोई भी डिश बनानी हो, सभी में जीरे का प्रयोग किया जाता है. बिना इसके सारे मसालों का स्वाद फीका हो जाता है. जीरे का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक-हर्बल दवाओं में भी किया जाता है. जीरा न केवल आपके स्वाद को बढ़ाता है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसका सेवन करना काफी फायदेमंद है. इसमें कई औषधीय गुण होते हैं इसके कारण बाजार में इसकी डिमांड पूरे साल बनी रहती है ऐसे में किसानों के लिए जीरे की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.
जीरे की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जानिए उन किस्मों और उनकीखासियत के बारे में
देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात और राजस्थान राज्य में उगाया जाता है. राजस्थान में देश का कुल का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का अकेले उत्पादन किया जाता है, लेकिन इसकी औसत उपज (380 कि.ग्रा.प्रति हे.) गुजरात में (550 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर) के अपेक्षा काफी कम है.
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जीरे की यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे 9-11 क्विंटल तक प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है. इस किस्म में उखटा, छाछिया और झुलसा रोग कम लगता है.
यह भी किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसके दाने मोटे होते हैं. इस किस्म से 7-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है. इस किस्म में भी छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है.
जीरे की ये किस्म 105-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसके बीज बड़े आकार के होते हैं. इससे 7-9 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.यह किस्म उखटा रोग के प्रति संवेदशील है.
यह किस्म 110-115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. जीरे की इस किस्म से 6-8 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. ये किस्म उखटा रोग के प्रति रोधक है. इसमें बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत होती है.
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