देश में लगातार जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ रहा है. पिछले दो-तीन सालों से रबी सीजन की फसलें भी तापमान के बढ़ने के कारण प्रभावित हो रही हैं और फसलों के उत्पादन में गिरावट आ रही है. फरवरी के महीने में अगर फिर से तापमान में बढ़ोतरी हुई तो किसानों की चिंता बढ़ जाएगी. पिछले महीने, गेहूं की फसल के लिए ठंड को फायदेमंद बताया जा रहा था. हालांकि, पिछले दो-तीन दिनों से तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है. बढ़ती गर्मी गेहूं की फसल के लिए नुकसानदायक हो सकती है. इसलिए वातावरण में तापमान की बढ़ोतरी पर किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है.
कृषि विज्ञान केंद्र, मोतिहारी, पश्चिमी चम्पारण, बिहार के हेड, डॉ. आर.पी. सिंह का कहना है कि बढ़ते तापमान से गेहूं की बढ़वार रुक जाती है. फसल की लंबाई कम होती है और यह जल्दी पक जाती है. गेहूं में बालियां लगने के बाद दाना भरने के लिए कुछ समय चाहिए होता है. मौसम परिवर्तन के कारण तेज हवा चलती है और तापमान बढ़ जाता है तो पुष्पन क्रिया शीघ्र हो जाती है. गेहूं की बालियों में दाने नहीं भर पाते हैं. दानों को मजबूती नहीं मिल पाती है, क्योंकि तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण दानों का पूरा विकास नहीं हो पाता है और समय से पहले ही दाने परिपक्व हो जाते हैं. दाना कमजोर पड़ जाता है. इससे गेहूं की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर असर पड़ता है.
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गेहूं और जौ की फसलों को बढ़ते तापमान प्रभाव से बचाने के लिए दाना भराव और दाना निर्माण की अवस्था पर सीलिसिक अम्ल 15 ग्राम प्रति 100 लीटर का फॉलियर स्प्रे करना चाहिए. सीलिसिक अम्ल का पहला छिड़काव झंडा पत्ती अवस्था और दूसरा छिड़काव दूधिया अवस्था पर करने से काफी लाभ मिलेगा. सीलिसिक अम्ल गेहूं को प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति प्रदान करता है और निर्धारित समय पूर्व पकने में मदद करता है. इससे उत्पादन में गिरावट नहीं होती है. गेहूं और जौ की फसल में जरूरत के अनुसार बार-बार हल्की सिंचाई करें. इसके अलावा, 0.2 प्रतिशत म्यूरेट ऑफ पोटाश या 0.2 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट का 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव किया जा सकता है.
गेहूं और जौ की फसलों में बाली आने पर एस्कार्बिक अम्ल के 10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का घोल छिड़काव करने से अधिक तापमान होने पर भी नुकसान नहीं होगा. गेहूं की पछेती बोई फसल में पोटेशियम नाइट्रेट 13:0:45, चिलेटेड जिंक, चिलेटेड मैंगनीज का छिड़काव भी फायदेमंद होता है. वातावरण में बदलाव के कारण गेहूं की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप दिखाई दे रहा है तो इसके नियंत्रण के लिए किसानों को प्रॉपिकोनाजोल की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के घोल को दो बार 10 से 12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.
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कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर. पी.सिंह ने सुझाव दिया है कि चने की फसल को तापमान वृद्धि से बचाने के लिए फसल की फूल वाली अवस्था और फली वाली अवस्था पर पोटेशियम नाइट्रेट (13:0:45) का 100 लीटर पानी में 1 किलोग्राम का घोल बनाकर फोलियर स्प्रे किया जा सकता है. या फिर, सीलिसिक अम्ल का छिड़काव करने से तापक्रम में होने वाली वृद्धि से नुकसान कम होगा और उत्पादन में वृद्धि होगी. मौसम में बदलाव के कारण प्याज और लहसुन की फसल में बैंगनी धब्बा रोग और झुलसा रोग का प्रकोप देखा जा रहा है. इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोथैलूनील की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के घोल को दो से तीन बार 10 से 12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.