
ICAR-IIWBR, करनाल में विकसित DBW 327 (करण शिवानी) गेहूं की एक ज्यादा पैदावार वाली किस्म है जिसे खास तौर पर गर्मी और सूखे को सहन करने के लिए बनाया गया है. इस किस्म की औसत पैदावार 79.4 क्विंटल/हेक्टेयर है और संभावित पैदावार 87.7 क्विंटल/हेक्टेयर है, जो इसे मुश्किल मौसम के लिए एक मजबूत फसल बनाती है. DBW 327 स्ट्राइप और लीफ रस्ट के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधी है, इसमें जिंक का स्तर ज्यादा (40.6 ppm) है, और इसकी चपाती की क्वालिटी का स्कोर 7.67/10 है.
गेहूं की इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) और पश्चिमी उत्तरप्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) के लिए अधिसूचित किया गया है.
इस किस्म की औसत उपज 79.4 क्विंटल/हेक्टेयर पाई गई है, जो HD 2967 से 35.3% और HD 3086 से 13.6% अधिक है.
इस किस्म की 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की अधिकतम पैदावार क्षमता दर्ज की गई है.
यह किस्म उच्च तापमान और सूखे के प्रति अवरोधी पाई गई है.
यह किस्म पीला और भूरा रतुआ की सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक पाई गई है.
इसके अलावा DBW 327 में करनाल बंट रोग के प्रति अन्य किस्मों की तुलना में अधिक रोगरोधिता पाई गई है.
DBW 327 के दानों में उच्च लौह (39.4 पीपीएम) और जिंक (40.6 पीपीएम) की मात्रा, अच्छा दानों का रूप स्कोर (6.4) चपाती स्कोर (7.67), अधिक गीला और सूखा ग्लूटन मात्रा (35.5% और 11. 3%) और बिस्कुट फैलाव 6.7 सेमी है और अच्छा ब्रेड क्वालिटी स्कोर (6.58/10.0) होने के कारण यह किस्म गेहूं के कई उत्पादों के लिए एक बहुत उपयुक्त है.
यह प्रजाति उत्तर पश्चिमी भारत के मैदानी क्षेत्र जिसमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिला), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिले और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) शामिल हैं. इसकी अगेती बुआई सिंचित क्षेत्रों में उच्च उर्वरकता के साथ कर सकते हैं.
समतल उपजाऊ खेत का चुनाव करके, जुताई पूर्व सिचाई के बाद उपयुक्त नमी होने पर खेत की तैयारी के लिए डिस्क हैरो, टिलर और भूमि समतल करने वाले यंत्र के साथ जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए.
गेहूं के कंडुवा रोग से बचने के लिए वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5% थीरम 37.5%)/2-3 ग्राम/किग्रा बीज को उपचारित करना चाहिए.
बुआई का उचित समय 20 अक्टूबर से 5 नवंबर है. हालांकि किसान कुछ दिन आगे-पीछे इसकी बुआई करते हैं.
100 किलो बीज/हेक्टेयर पंक्तियों के बीच 20 सेमी की दूरी के साथ बुआई करनी चाहिए.
उर्वरकों और खादों का उपयोग मिट्टी परीक्षण पर आधारित होना चाहिए. उच्च उर्वरता वाली भूमि के लिए-एन: 150, पीः 60, के: 40 किलोग्राम/हेक्टेयर देना चाहिए. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन ½ मात्रा का भाग बीजाई के समय और नाइट्रोजन की ¼ मात्रा का भाग पहली सिंचाई के बाद और बाकी बची मात्रा दूसरी सिंचाई के बाद देनी चाहिए. किस्म की पूरी क्षमता को हासिल करने के लिए, 150% एनपीके और वृद्धि नियंत्रकों (ग्रोथ रेगुलेटर) के साथ 15 टन/हेक्टेयर देशी खाद के प्रयोग की सिफारिश की जाती है.
माहू या चेपा जैसे कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोपरिड 17.8 SL की 40 मिली/एकड़ मात्रा का छिड़काव करना चाहिए.
दीमक के प्रभावी नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के दौरान रेत के साथ फिप्रोनिल 0.3 जीआर/10 किलो प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है.
फसल में सामान्य रूप से 5 से 6 सिंचाई की जरूरत होती है जिसमें पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद और उसके बाद 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
दाने पकने की अवस्था का ध्यान रखें. गेहूं की बालियां पकने के बाद फसल की कटाई करें और भंडारण से पहले अनाज को अच्छी तरह से सुखाया जाना चाहिए.