बरसात का सीजन लोबिया की खेती के लिए उत्तम होता है. इस समय सही किस्मों का चुनाव और बुवाई का सही तरीका अपनाकर आप शानदार उपज प्राप्त कर सकते हैं. लोबिया, जिसे कई जगहों पर बोड़ा, फलियां, बोरो, चौला, चौरा, या बरबिट्टी भी कहा जाता है. इसकी खेती बेहद आसान होती है, जिससे यह किसानों के लिए एक फ़ायदेमंद विकल्प है. बारिश और गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली फ़सल है. बरसात वाली लोबिया के लिए उत्तर भारत में, जून के अंत से जुलाई तक का समय बुवाई के लिए सबसे बेहतर है, जैसा कि अभी का मौसम है. लोबिया की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. हालांकि, मिट्टी का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 के बीच होना सबसे बेहतर माना जाता है.
लोबिया की कुछ खास किस्मों में पूसा कोमल, अर्का गरिमा, पूसा बरसाती, पूसा फाल्गुनी, अम्बा, और स्वर्ण शामिल हैं. हालांकि, भारतीय सब्ज़ी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित किस्में जैसे काशी कंचन, काशी उन्नत, और काशी निधि हैं जो बेहतर उपज देती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, लोबिया की बुवाई काफी हद तक भिंडी की तरह होती है, लेकिन इसमें बीज की मात्रा थोड़ी ज़्यादा रखनी चाहिए. अगर खेत में पर्याप्त नमी हो, तो सीधे बुवाई कर सकते हैं. अन्यथा, बुवाई से पहले बीजों को रात भर भिगोना बेहतर है.
मेड़ बनाकर बुवाई करने से खेती की प्रक्रियाओं में आसानी होती है और फ़सल का प्रबंधन बेहतर रहता है. कतार से कतार की दूरी 45-50 सेमी और पौध से पौध की दूरी 12-15 सेमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, हरे तेला या चूसक कीटों के प्रकोप से बचने के लिए बुवाई से पहले बीजोपचार करना उचित रहेगा. 1 एकड लगभग 20 किलो बीज की जरूरत होती है.
लोबिया लेग्यूमिनस कुल का पौधा है, जिसकी जड़ों की गांठें मिट्टी और वायुमंडल से नाइट्रोजन को अवशोषित करती हैं. इसलिए, इसमें ज़्यादा नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती. फिर भी, प्रति एकड़ 12-15- किलो नाइट्रोजन और 16 किलो पोटाश और 16 किलो फॉस्फोरस देना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकी उर्वरक खेत तैयार करते समय ही मिट्टी में मिला दें. बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा पौधों में 3-4 पत्तियां आने पर गुड़ाई करने के बाद दें.
लोबिया की बुवाई के बाद खेत में हल्की सिंचाई करें. यह सुनिश्चित करें कि मेड़ आधी से ज़्यादा न भीगे. पौधों में 3-4 पत्तियां निकलने पर गुड़ाई ज़रूर करें. इसके बाद बरसात ना हो तो हल्की सिंचाई करते रहें. लोबिया की खेती आसान मानी जाती है क्योंकि इसमें कीट-रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है. हालांकि, अच्छी उपज के लिए, समय पर इनकी रोकथाम करना ज़रूरी है. बुवाई के 35-40 दिन बाद दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है, अगर जरूरत हो.
लोबिया सिर्फ़ अपनी स्वादिष्ट फलियों के लिए ही नहीं, बल्कि खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक है. कुछ कटाई के बाद, इसके पौधों को खेत में जोतने पर वे हरी खाद का काम करते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है. धान और गेहूं जैसी फ़सलों के बीच इसे हरी खाद के तौर पर इस्तेमाल करना बेहद फ़ायदेमंद हो सकता है. बरसात के मौसम में लोबिया की खेती किसानों, ख़ासकर छोटे और मध्यम किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हो सकती है. यह एक ऐसी फ़सल है जो हरी सब्ज़ियों की उपलब्धता कम होने पर भी अच्छा मुनाफ़ा दिला सकती है. लोबिया को हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद, और चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो इसे एक बहुमुखी और लाभदायक फ़सल बनाता है.