अजवाइन की खेती साबित हो सकती है लाभकारी, जानें उन्नत किस्में और फायदा

अजवाइन की खेती साबित हो सकती है लाभकारी, जानें उन्नत किस्में और फायदा

अजवाइन का ज्यादातर इस्तेमाल मसाला के रूप में किया जाता है. हालांकि पेट संबंधी समस्याओं के लिए यह बेहद लाभदायक और कारगर है. यह एक झाड़ीदार पौधा है, जिसका उपयोग मसाले और औषधि दोनों रूप में किया जाता है. इसकी खेती छोटे पैमाने पर की जाती है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 09, 2023,
  • Updated Jan 09, 2023, 9:32 AM IST

अजवाइन का इस्तेमाल किचन में खूब किया जाता है. इसलिए आज हम किचन गार्डनिंग के तहत जानेंगे कि आखिर कैसे की जाती है अजवाइन की खेती. अब तक आपने अजवाइन के बारे में, उसके फ़ायदों के बारे में सुना होगा. लेकिन इसकी खेती कैसे की जाती है आज हम इसपर बात करेंग. दरअसल अजवाइन का इस्तेमाल मसाला के रूप में किया जाता है. हालांकि पेट संबंधी समस्याओं के लिए यह बेहद लाभदायक और कारगर है. तो चलिए जानते है अजवाइन के फायदे और खेती करने का तरीका

अजवाइन के फायदे 

यह एक झाड़ीदार पौधा है, जिसका उपयोग मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है. इसकी खेती छोटे पैमाने पर की जाती है. ऐसे में आप भी इसकी खेती अपने घरों और बगीचों में आसानी से कर सकते हैं. यह धनिया कुल जाति का पौधा है, इसकी लम्बाई लगभग एक मीटर होती है. आपको बता दें अजवाईन के बीज में कई तरह के खनिज तत्वों का मिश्रण होता है, जिस वजह से इसका इस्तेमाल औषधि बनाने में किया जाता है. यह मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है.

कैसे करें अजवाईन की खेती:

इसकी खेती रबी सीज़न में की जाती है. भारत में इसकी खेती  महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिसों में ही की जाती है. अजवाइन सर्दियों में उगने वाला पौधा है. अधिक गर्मी के कारण इसका विकास रुक सकता है. इसमें सिंचाई की कम आवश्यकता होती है. इसलिए इसकी खेती रबी सीजन में की जाती है. भारत में इसकी बुआई अगस्त से सितम्बर के बीच की जाती है. एन.आर.सी.एस.एस-ए.ए.1 और एन.आर.सी.एस.एस-ए.ए.2 अजवाइन की दो उन्नत किस्में हैं.

खेती के लिए जमीन की तैयारी

सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने के बाद बिजाई से पहले 1 गहरी जुताई कर लें. उसके बाद कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई कर फिर हिलिंग कर लें. फिर अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में मिला दें. इसके अलावा 40 किग्रा नाइट्रोजन एवं 40 किग्रा फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. 
ध्यान रहे नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व खेत में डाल दें. तथा बची हुई नत्रजन की मात्रा बुआई से लगभग 30 एवं 60 दिन के अन्तराल पर 2 बार में डालें. वहीं पोटाश की मात्रा मिट्टी जांच के बाद ही डालें.

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