भारत में कृषि संबन्धित हर काम मौसम के आधार पर तय किया जाता है. मौसम की बात करें तो खेती-बाड़ी के अनुसान इसे तीन मुख्य भागों में बांटा गया है: खरीफ (Kharif), रबी (Rabi) और जायद (jayad). इस वक़्त देश में रबी का मौसम चल रहा है. रबी के मौसम में किसानों द्वारा गेहूं, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर, सरसों इत्यादि फसलों की खेती की जाती है. इस मौसम में किसान ज्यादातर गेहूं की खेती करते हैं. यूं तो गेहूं की कई उन्नत किस्में मौजूद है जिससे हर साल किसानों को बम्पर मुनाफा होता है. लेकिन आज हम गेहूं की एक ऐसी किस्म के बारें में चर्चा करेंगे जो कुछ ही दिनों में किसानों की पहली पसंद बन चुका है.
आजकल किसानों के बीच काले गेहूं (Black Wheat) की खेती के प्रति झुकाव काफी बढ़ गया है. बात अगर देश में गेहूं के किस्मों (varieties of wheat) की करें तो कई किस्में मौजूद हैं. इसमें से कुछ किस्म रोग प्रतिरोधक हैं तो कुछ ज्यादा उत्पादन देने वाली हैं.
वहीं स्वाद के मामले में भी कुछ किस्में मिलती हैं, लेकिन देखने में सभी के बीज एक जैसे ही रहते हैं. परन्तु हाल ही में विकसित काले गेहूं (Black Wheat) की किस्म ने सभी किसानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है. हाल ही में कई किसानों ने सामान्य गेहूं की खेती छोड़ काले गेहूं की खेती की शुरुआत की है.
इस गेहूं का उत्पादन और खेती करने का तरीका दोनों ही सामान्य गेहूं की तरह होता है. लेकिन इसमें औषधीय गुण अधिक होने के कारण बाजार में इस गेहूं की मांग अधिक है, जिसको लेकर अधिकतर किसानों का झुकाव इस तरफ होता जा रहा है.
सामान्य गेहूं की तुलना में अगर काले गेहूं की बात करें, तो यह दिखने में काला या बैगनी (purple) रंग का होता है, वहीं इसके गुण सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक होते हैं. एंथोसायनिन पिगमेंट (anthocyanin pigments) की मात्रा ज्यादा होने के कारण इनका रंग काला होता है. साधारण गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है.
यह गेहूं कई प्रकार के औषधीय गुणों (medicinal properties) से भरपूर है इसमें एंथ्रोसाइनीन जोकि एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है. काले गेहूं की अगर बात करें तो इसमें हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता होती है.
काले गेहूं की बुवाई के लिए नवंबर का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है. गेहूं की किसी भी किस्म के लिए नमी बेहद जरूरी है. नवम्बर के बाद काले गेहूं की बुआई करने पर पैदावार में कमी देखी गई है. काले गेंहू की खेत में जिंक और यूरिया अवश्य डालें. गेहूं की बुवाई करते समय प्रति एक खेत में 50 किलो डीएपी, 45 किलो यूरिया, 20 किलो म्यूरेट पोटाश और 10 किलो जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. फिर पहली सिंचाई के समय व60 किलो यूरिया डालना चाहिए. काले गेंहू की पहली सिंचाई बुवाई के तीन हफ्ते बाद करें. इसके बाद समय समय पर सिंचाई करते रहे हैं. बालियां निकलने से पहले और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करें.