बाग-बगीचा : बेल के पेड़ की सबसे बडी खासियत है कि इसकी बागवानी की जा सकती है. भारत में हर क्षेत्र में हर परिस्थिति में यह अपना विकास कर लेता है. इसकी खासियत है कि 7 डिग्री तापमान से लेकर 46 डिग्री तापमान पर इसकी बागवानी की जा सकती है. अगर कम पानी वाले एरिया की बात आती है तो वहां बागवानी फसलों में बेल का नाम जरूर आता है, ऐसा इसलिए क्योंकि कम खर्च और कम संसाधन में बेल की बागवानी की जा सकती है. दरअसल एक बार पौधे लगाने के लिए सिंचाई की व्यवस्था करनी होती है तो बेल के पेड़ ज्यादातर बारिश की मदद से ही पनपते हैं. कम रखरखाव में यह पेड़ कई वर्षों तक लगातार फल देता रहता है. इस बाग-बगीचा सीरीज में जानेंगे कि थार और शुष्क क्षेत्रों के लिए बेल की कौन सी किस्में बेहतर हैं और किस तरह से बाग स्थापित करें जिससे भरपूर लाभ मिल सके .
बेल हर क्षेत्र औऱ ऊसर,बंजर, कंकरीली, खादर एवं बीहड़ भूमि में भी इसकी बागवानी सफलता पूर्वक की जा सकती है. बेल में विशाल जैव विविधता है बदलते जलवायु परिवर्तन में भी अधिक लाभ लिया जा सकता है इसलिए इसकी बागवानी पर जोर दिया जा रहा है .दूसरी ओर यह एक बीमारी को दूर भगाने वाला फल है. गर्मी दूर करने का रामबाण इलाज है बेल का शरबत, इसलिए लोगों को खूब आकर्षित करता है. इस कारण बड़े पैमाने पर बेल की मांग बनी रहती है.
अधिक लाभ कमाने हेतु बेल की बागवानी थार.शुष्क अर्धशुष्क एरिया के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकती है . इसके लिए केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र वेजलपुर गुजरात नें बेल की थार नीलकंठ, गोमायशी औऱ थार दिव्य जैसी बेहतरीन किस्मों का विकास किया है, जिसकी बागवानी कर बेहतर लाभ ले सकते हैं.
गुजरात के केंद्रीय बागवानी प्रक्षिशण केन्द वेजलपुर, गुजरात ने थार नीलकंठ को विकसित किया है यह सूखा सहिष्णु किस्म है मूल्यांकन के दौरान यह पाया गया कि शुष्क एवं अर्शुष्क क्षेत्रों के लिए इस प्रजाति विकास एवं फलन अति उत्तम है .यह विविध गुणों से भरपूर है.और रोपण के तीसरे वर्ष ही फल देने लगती है. फलों का औसत वजन लगभग 1.5 किग्रा. और गूदे की मात्रा लगभग 71 प्रतिशत होती है .यह देर से पकने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है, दस साल पुराना पेड़ एक क्विंटल से अधिक उपज दे सकता है और यह अब तक विकसित सभी किस्मों में से सबसे मीठी है, इसमें फाइबर की मात्रा भी कम है. इसके किस्म के स्क्वैश, पाउडर तथा उच्च कोटि का शरबत बनाने के योग्य पाया गया है.
गोमा यशी जल्दी से तैयार होने वाली किस्म है.इस किस्म के फल अपेक्षाकृत बौने और कम फैलाव वाले होते हैं ,केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र द्वारा बेल की विकास किया गया है, जिसे पश्चिम भारत में लगाने के लिए सिफारिश फलों का औसत वजन 1.0-1.6 किग्रा. होता है .यह किस्म सघन बागवानी के लिए बहुत उपयुक्त है.इसे 5ंX5 मीटर के दूरी पर लगाया जा सकता है.इस तरह बरानी एरिया में एक हेक्टेयर में 400 पेडट स्थापित हो सकते है पूर्ण विकसित वृक्षों से लगभग 65 किग्रा. फल प्राप्त होते हैं .
केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र वेजल पुर गुजरात अगेती प्रजाति फरवरी फकने वाली किस्म थार दिव्य का विकास किया है. ये शुष्क एवं अर्शुष्कक्षेत्रों के लिए इस किस्म में विकासऔर फलन उत्तम गुण है इस किस्म के पेड़ में कांटे बहुत कम होते हैं. इस पर सूखे और सूर्य के तेज प्रकाश का कम प्रभाव पड़ता है.फलों का वजन 1.3-2.3 किग्रा. तक होता है. फलों में, बीज कम गूदा अधिक होते हैं. इस किस्म के फल पाउडर और शर्बत बनाने हेतु बहुत उपयुक्त होते हैं. इस किस्म को गीली, बंजर, कंकरीली मिट्टी में लगाया जा सकता है इसके एक पेड़ से 70-80 किग्रा. फल प्राप्त होते है .
ये भी पढ़ें : Independence Day 2023: वो किसान जिसके बिना गांधी कभी नहीं बन पाते महात्मा, बापू ने अपनी किताब में लिखी थी ये खास बात
बेल रोपण से लगभग 2 माह पूर्व उचित दूरी पर 1 घन मी.आकार के गड्ढेखोद कर खुला छोड़ देते हैं.इसके बाद गड्ढे में 3-4 टोकरी सड़ी हुई गोबर की खाद और मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत को आधी ऊपरी मिट्टी में मिलाकर गड्ढे भर देते हैं.क्षारीय मृदाओं में जरूरत के प्रत्येक गड्ढे में जिप्सम 5-8 किग्रा. प्रति गड्ढा और रेत 15-20 किग्रा.प्रति गड्ढा भी मिलानी चाहिए.इसके बाद गड्ढों में सिंचाई करते हैं.जिससे मिट्टी अच्छी तरह से बैठ जाये ऐसा करने के लगभग एक महीने बाद पौध रोपण करते हैं.बेल के रोपाई सबसे बेहतर समय जुलाई-अगस्त होता है.सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने पर फरवरी-मार्च में भी रोपण किया जा सकता है.
शुष्क और बरानी क्षेत्रों में बेल के नए बागों की स्थापना के लिए बडिंग की स्व स्थानी इन सिटू विधि से तैयार पौध अच्छी मानी जाती है .चूंकि नये रोपित किये गये पौधों में गर्मियों के समय शुष्क और गर्म हवाओं व सर्दियों के समय ठण्डी लहरों व पाले से पौधों को क्षति की संभावना बनी रहती है.