23 साल पहले लगाया था चीकू का बाग, अब खुद कुल्‍हाड़ी से काटे पेड़, किसान ने बताई अपनी पीड़ा

23 साल पहले लगाया था चीकू का बाग, अब खुद कुल्‍हाड़ी से काटे पेड़, किसान ने बताई अपनी पीड़ा

जालना के पिंपलगांव रेणुकाई गांव के किसान रावसाहेब खोमणे ने 23 साल पुराने चीकू के बाग को प्राकृतिक आपदाओं और घटते दामों से परेशान होकर काट डाला. लाखों का नुकसान झेल रहे किसान ने कहा कि लगातार संकटों और बढ़ते खर्च ने उनकी खेती पूरी तरह चौपट कर दी.

Jalna Chikoo Orchard cuttingJalna Chikoo Orchard cutting
क‍िसान तक
  • Jalna,
  • Oct 21, 2025,
  • Updated Oct 21, 2025, 12:09 PM IST

जालना में 23 साल से संजोए गए चीकू के बाग पर एक किसान ने कुल्हाड़ी चला दी. लगातार प्राकृतिक संकटों से परेशान होकर किसान ने एक एकड़ के चीकू के बाग को कुल्हाड़ी से नष्ट कर दिया. मामला जालना जिले की भोकरदन तहसील के पिंपलगांव रेणुकाई गांव का है, जहां किसान रावसाहेब खोमणे ने यह कदम उठाया. किसान खोमणे पिछले 23 सालों से एक एकड़ जमीन में चीकू की खेती कर रहे थे. पारंपरिक खेती से कुछ फायदा न होने पर उन्होंने फलों की खेती की ओर रुख किया था. लेकिन, प्राकृतिक आपदाएं, चीकू की खेती से उम्मीद के मुताबिक उत्पादन न मिलना और बाग पर बढ़ता खर्च- इन सबने उन्हें तोड़ दिया. 

मजबूर होकर रावसाहेब खोमणे ने अपने 23 साल पुराने चीकू के बाग को कुल्हाड़ी से काट दिया. इस कदम से उनका लाखों रुपयों का नुकसान हुआ है और वे आर्थिक संकट में फंस गए हैं. अब बाग उजड़ने के बाद आगे क्या बोना है, यह सवाल उनके सामने खड़ा है. लगातार बदलते मौसम और प्राकृतिक संकटों के कारण खेती का व्यवसाय धीरे-धीरे डगमगा गया है. इसलिए भोकरदन तालुका के कई किसान अब खेती के साथ फलों की बागवानी को भी अपनाने लगे हैं.

लाखों रुपये खर्च कर लगाए थे पौधे

कई किसानों को फलों की खेती से फायदा हुआ है तो कईयों को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा है. पिंपलगांव रेणुकाई के किसान रावसाहेब खोमणे ने साल 2002 में लाखों रुपये खर्च कर अपने एक एकड़ खेत में चीकू के पेड़ लगाए थे. उन्होंने सालों तक इन पेड़ों की देखभाल मेहनत और लगन से की. लेकिन, पिछले आठ-दस सालों से मौसम के बदलते मिजाज और बाजार में गिरते दामों के कारण उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा. अंततः उन्होंने गुस्से और हताशा में अपने खेत के लगभग एक एकड़ बड़े-बड़े चीकू के पेड़ों को काट डाला.

रबी की बुवाई के लिए पैसों का संकट

किसान ने बताया कि बागवानी में लगाया गया उनका सारा खर्च भी वापस नहीं आ सका, जिससे उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है. 23 सालों की मेहनत और समय व्यर्थ गया. इस वजह से वह अब चिंता में हैं. इस समय रबी की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन रबी फसल की तैयारी में भी उन्हें भारी खर्च का सामना करना पड़ेगा. पहले से ही प्राकृतिक संकटों से परेशान किसान अब बाजार में फलों और सब्ज़ियों के भाव में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव से और ज्यादा चिंतित हैं.

तहसील में होती है इन फलों की बागवानी

जालना के भोकरदन तालुका के किसान बड़े पैमाने पर अमरूद, सीताफल, पपीता, चीकू, अनार, ड्रैगन फ्रूट और अंगूर जैसी फलों की खेती के प्रयोग कर रहे हैं. मगर बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण फलोत्पादन भी अब घाटे का सौदा बनता जा रहा है. ऐसी स्थिति में कई किसान रावसाहेब खोमणे जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं. किसानों ने शासन से इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की मांग की है.

“हमारे खेत में पिछले 23 साल से एक एकड़ में चीकू के पेड़ लगाए थे. लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन हर साल कुछ भी फायदा नहीं हुआ. मजबूर होकर मन पर पत्थर रखकर उन पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलानी पड़ी.” (गौरव विजय साली की रिपोर्ट)

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