अनार का फल सेहत बनाने और धन कमाने, दोनों ही लिहाज से काफी लाभदायक है. अनार में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन, एंटी-ऑक्सीडेंट और खनिज पाया जाता है.अनार एक ऐसी बागवानी फसल है, जिसे एक बार लगाने पर कई साल तक फल मिलते रहते है. सरकार भी इन दिनों किसानों की इनकम में वृद्धि के लिए उन्हें पारंपरिक फसलों की बजाय बागवानी फसलों की तरफ रुझान करने का ज़ोर दे रही है. अनार एक ऐसा फल है जिसे कम पानी वाले क्षेत्र में भी आसनी से उगाया जा सकता है. किसान कम लागत में भी अनार की खेती से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. बागवानी फसलों में आम,केला,अनार जैसे फल आगे आते है. अनार स्वादिष्ट तथा औषधीय गुणों से भरपूर होता है. देश में अनार का क्षेत्रफल 276000 हेक्टेयर, उत्पादन 3103000 मीट्रिक टन है. भारत में अनार की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में कि जाती है.
अनार की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र के पुणे, अहमदनगर, पुणे, सांगली, सोलापुर और वाशिम में होती है. वर्तमान में महाराष्ट्र में अनार की फसल के तहत 73027 हेक्टेयर क्षेत्र कवर है. वहीं महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, में इसकी खेती की जाती है.
वैसे तो अनार का पौधा लगभग सभी तरह की मिट्टी में विकसित हो जाता है, अनार की खेती के लिए बहुत खराब, नीची मिट्टी की भारी, मध्यम काली और उपजाऊ मिट्टी अच्छी होती है, लेकिन अगर अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ या दोमट मिट्टी का चयन किया जाए तो उपज बेहतर होती है.किसानों को लगभग 3 से 4 साल बाद पेड़ फल देने लगता है.
सालभर में दो बार अनार के पौधे लगाए जा सकते हैं. जुलाई और अगस्त में इसके अलवा फरवरी और मार्च में इसकी खेती की जाती है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक अनार के पौधों को अगस्त या फिर फरवरी-मार्च में लगा सकते हैं. इसकी खेती के लिए यह समय सबसे अच्छा बताया जाता है. किसानों को लगभग 3 से 4 साल बाद पेड़ फल देने लगता है. अनार की खेती की खास बात है कि इसमें एक बार निवेश करने से सालों तक लाभ कमा सकते हैं. बार-बार पौधे बदलने की जरूरत नहीं होती.
सामान्य बगीचे हेतु रोपण के लिए – 5×5 या 5×6 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं. सघन विधि से हेतु रोपण के लिए – 5×3 या 5×2 या 4.5 x 3 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं. (इस तरह से क्रमशः 1000 मी./हे. या 650मी./हे. या 750 मी./हे. पौधे लगाए जा सकते हैं.
भगवा गणेश-वर्तमान में खेती के अधिकांश क्षेत्र इसी किस्म के अंतर्गत हैं और इस किस्म की विशेषता यह है कि बीज नरम होते हैं और दानों का रंग हल्का गुलाबी होता है.फलों में चीनी की मात्रा भी अच्छी होती है. यह किस्म अच्छी पैदावार देती है. इसके अलावा अरक्ता कंधारी, ढोलका जालोर बेदाना, ज्योति पेपर सेल एवं रूबी मृदुला भी किस्में.