किसानों और एनजीओ के सहयोग से आईआईटी खड़गपुर ने विकसित की चावल की नई किस्म, कम पानी में होगा उत्पादन

किसानों और एनजीओ के सहयोग से आईआईटी खड़गपुर ने विकसित की चावल की नई किस्म, कम पानी में होगा उत्पादन

घाटशिला प्रखंड के भदुआ पंचायत के छोटा जमुना गांव में चयनित किसानों ने चावल की एक दुर्लभ किस्म की खेती की थी, चावल की इस दुर्लभ किस्म का नाम बाली भोजूना है.

धान की खेती                                         फाइल फोटोधान की खेती फाइल फोटो
क‍िसान तक
  • Ranchi,
  • Oct 23, 2023,
  • Updated Oct 23, 2023, 1:28 PM IST

राज्य में लगातार दूसरी बार सूखे का सामना कर रहे झारखंड के किसानों के लिए एक अच्छी खबर है. अब किसानों को धान की खेती में नुकसान नहीं झेलना होगा. क्योंकि एक गैर सरकार संस्था सेंटर फॉर वर्ल्ड सॉलिडेरिटी (सीडब्ल्यूएस) ने आईआईटी खड़गपुर के तकनीकी हस्तक्षेप से स्वदेशी किस्म की चावल विकसित की है. आईआईटी खड़गपुर ने धान की नई किस्म को विकसित करने में पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला ब्लॉक के एक गांव में किसान उत्पादक संगठन की मदद की हैय पोषक तत्वों से भरपुर इस यह चावल की एक ऐसी किस्म है जिसकी पैदावार-कम से कम बारिश में भी हो सकती है साथ ही इसमें उर्वरक की भी आवश्यकता कम होती है. 

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक जिले के घाटशिला प्रखंड के भदुआ पंचायत के छोटा जमुना गांव में चयनित किसानों ने चावल की एक दुर्लभ किस्म की खेती की थी, चावल की इस दुर्लभ किस्म का नाम बाली भोजूना है. साल 2019-20 के दौरान यह खेती की गई थी. सीडब्लयूएस के अधिकारी ने कहा कि इसकी खेती करने वाले स्थानीय किसानों ने उनकी टीम को बताया था चावल की यह किस्म बाली भोजूना स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी है. इसके बाद किसानों के हित को देखते हुए सीडब्ल्यूएस ने इस स्वदेशी किस्म के चावल को संरक्षित करने का फैसला किया साथ ही इसके प्रसार का भी जिम्मा उठाया. इसके बाद चावल के सैंपल को आईआईटी खड़गपुर के कृषि और खाद्य इंजीनियरिंग विभाग द्वारा संचालित विश्लेषणात्मक खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला में भेजे गए. 

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चावल में पाने वाले पोषक तत्व

जब चावल के सैंपल की जांच की गई उसके बाद 7 जूलाई 2022 को इसके परिणाम आए जो बेहद दिलचस्प थे. जाचं में यह पता चला कि 100 ग्राम बाली-भोजुना चावल में 3.68 ग्राम कैलोरी, 1.97 ग्राम फाइबर, 76.83 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.28 ग्राम प्रोटीन और 0.65 ग्राम फैट होता है. इसके अतिरिक्त, 100 ग्राम चावल में लगभग 3.03 मिलीग्राम थायमिन, 0.04 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन और 9.3 मिलीग्राम नियासिन भी होता है. इसके बाद, सीडब्ल्यूएस ने क्षेत्र के अन्य किसानों के बीच बाली-भोजुना चावल को लोकप्रिय बनाने के लिए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) आजीविका भूमिका को तकनीकी सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया. आईआईटी खड़गपुर के सहयोग से, उन्नत तकनीक और मशीनरी विकसित की गई, जिससे इस पौष्टिक चावल की किस्म की खेती करना आसान हो गया. 

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कम पानी में होती है इसकी खेती

सीडब्लयूएस के अधिकारी ने कहा कि एक साल की कड़ी मेहनत के बाद, लगभग 200 किसान वर्तमान में बाली-भोजुना चावल की खेती कर रहे हैं. इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई है बल्कि उनके परिवारों के लिए पौष्टिक भोजन भी मिल रहा है. इस धान की खासियत यह है कि किसी भी प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती हो सकती है. इसमें केमिकल खाद की आवश्यकता नहीं होती है. साथ ही यह खरपतवार प्रतिरोधी है.  इस चावल के बीज मात्र 50 रुपये प्रति किलो मिलते हैं जबकि अन्य संकर चावल किस्मों के बीज बाजार में 200-300 रुपये में उपलब्ध हैं. इस धान की खेती के लिए पानी की भी बहुत कम आवश्यकता होती है.

 

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