क्लाइमेट चेंज का असर समुद्र पर पड़ने के चलते मछलियां भी प्रभावित हो रही हैं. समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. चक्रवात जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं. समुंद्र में गर्म लहरों की संख्या बढ़ रही है. इतना ही नहीं अल नीनो (दक्षिणी दोलन) भी बढ़ रहा है. महासागर में केमिकल मिल रहे हैं. केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI), कोच्चि की रिपोर्ट के मुताबिक कोरल रीफ मर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा असर उन मछलियों पर पड़ रहा है जो कोरल रीफ में या उसके आसपास रहती हैं. फिशरीज एक्सपर्ट की माने तो इस सब का असर समुद्र में मछली पकड़ने पर पड़ रहा है.
क्योंकि समुद्र में हो रहे बदलाव से मछलियां ठिकाने बदल रही हैं. लेकिन इस सब के बीच मछुआरों की मदद कर रही है स्पेस टेक्नोलॉजी (अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी). इसकी मदद से मछुआरे समुद्र में उस सटीक जगह पर जाकर मछली पकड़ रहे हैं जहां बड़ी संख्या में जरूरत वाली मछली होती हैं. कई विभाग एक साथ इस पर काम कर रहे हैं. समुद्र के पानी का रंग देखकर मछुआरों को बताया जाता है कि कहां पर मछलियों के झुंड मिलेंगे.
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केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय की ओर से जारी एक सूचना के मुताबिक मंत्रालय "राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस" मना रहा है. इसका आयोजन चंद्रयान-3 मिशन की उल्लेखनीय सफलता पर किया जा रहा है. सचिव डॉ. अभिलाष लिखी के निर्देशन में इस मौके पर “मत्स्यपालन क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग” पर सेमिनार तथा प्रदर्शनी की श्रृंखला आयोजित की जा रही है. इसके तहत मत्स्यपालन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी– एक सिंहावलोकन, समुद्री क्षेत्र के लिए संचार एवं नेविगेशन प्रणाली, अंतरिक्ष आधारित अवलोकन तथा मत्स्यपालन क्षेत्र में सुधार पर इसके प्रभाव जैसे विषयों पर चर्चा होगी. मंत्रालय के लिए ये दिन इसलिए भी खास हो जाता है कि आज स्पेस टेक्नोलॉजी की मदद से मरीन फिशरीज तेजी से तरक्की कर रही है.
स्पेस टेक्नोलॉजी भारतीय समुद्री मत्स्य प्रबंधन और विकास को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकती हैं. सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग, अर्थ ऑब्जर्वेशन, सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम, जीआईएस, सैटेलाइट कम्युनिकेशन, डेटा एनालिटिक्स और एआई जैसी कुछ तकनीकों से मछली पकड़ने के क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव आए हैं. सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग संभावित मछली पकड़ने के मैदानों की पहचान करने, समुद्र की हैल्थ को समझने के लिए फाइटोप्लांकटन ब्लूम, प्रदूषण का पता लगाने के लिए समुद्र के रंग, क्लोरोफिल सामग्री, समुद्र की सतह के तापमान पर नजर रखने के लिए ओशन-सैट और इनसैट जैसे उपग्रहों का इस्तेमाल किया जाता है.
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मछली पकड़ने के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समुद्री धाराओं, तरंगों और चरम मौसम के खतरों की निगरानी करने के लिए इनसैट, ओशन-सैट, एसएआर आदि जैसे उपग्रहों की मदद ली जाती है. सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम और जीआईएस भारतीय नाविक के साथ नेविगेशन का इस्तेमाल करता है. मछली पकड़ने के जहाजों के लिए जीएनएसएस ट्रैकिंग, समुद्री आवास, मछली पकड़ने के मैदान और संरक्षित क्षेत्रों की पहचान के लिए जीआईएस मैपिंग काम करता है. इतना ही नहीं एक्वा मैपिंग और आपदा की चेतावनी देने के लिए इमेज सेंसिंग और एक्वा जोनिंग जैसी टेक्नोलॉजी काम करती हैं.