डेयरी व्यवसाय की सफलता एक स्वस्थ बछड़े या बछिया के जन्म से ही शुरू होती है. जन्म के बाद के शुरुआती कुछ घंटे और सप्ताह उसके पूरे जीवन के स्वास्थ्य की नींव रखते हैं. इस दौरान हुई छोटी-सी लापरवाही भी जानलेवा साबित हो सकती है, क्योंकि नवजात बछड़ों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता लगभग न के बराबर होती है. भविष्य में एक स्वस्थ और अधिक दूध देने वाला पशु तैयार करने के लिए उसकी सही देखभाल अनिवार्य है. यह शुरुआती मेहनत न केवल नवजात की जान बचाती है, बल्कि पशुपालक के लिए एक लाभदायक पशु भी सुनिश्चित करती है. नवजात बछिया की देखभाल कैसे करें, इस पर बिहार पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय ने पशुपालकों को खास सुझाव दिए हैं.
नवजात के जन्म के ठीक बाद के कुछ मिनट तक जीवन के लिए सबसे अहम होते हैं. इस समय कुछ बातों पर तुरंत ध्यान दें. जैसे सबसे पहले यह देखें कि बछड़ा सांस ले रहा है या नहीं. यदि नहीं, तो तुरंत एक साफ और सूखे कपड़े से उसकी नाक और मुंह पोंछकर किसी भी तरह के बलगम या झिल्ली को हटा दें. अगर फिर भी सांस शुरू न हो, तो उसकी छाती को धीरे-धीरे सहलाएं.
एक और तरीका यह है कि बछड़े को पिछली टांगों से कुछ सेकंड के लिए उल्टा लटकाएं, जिससे सांस की नली में फंसा तरल पदार्थ बाहर निकल जाता है. जन्म के बाद गाय स्वाभाविक रूप से अपने बच्चे को चाटकर सुखाती है, जिससे रक्त संचार बढ़ता है. अगर गाय ऐसा न करे, तो साफ तौलिये से बछड़े के शरीर को अच्छी तरह पोंछकर सुखाएं. यह उसे ठंड लगने से बचाता है. बछड़े को रखने की जगह हमेशा साफ, सूखी और हवा के सीधे झोंकों से बची होनी चाहिए.
खीस यानी मां का पहला पीला, गाढ़ा दूध बछड़े के लिए अमृत के समान है. यह सिर्फ पोषण नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक टीका भी है. खीस में साधारण दूध की तुलना में कई गुना अधिक प्रोटीन, विटामिन और खनिज होते हैं. सबसे खास बात यह है कि इसमें 'इम्युनोग्लोबुलिन' (Antibodies) होते हैं, जो बछड़े को कई संक्रामक रोगों से लड़ने की शक्ति देते हैं. इसमें लैक्टोज की मात्रा कम होने से दस्त का खतरा भी कम हो जाता है. बछड़े को जन्म के आधे से दो घंटे के भीतर ही खीस अवश्य पिला देना चाहिए, क्योंकि इसी समय उसकी आंतें इन जीवन-रक्षक एंटीबॉडी को सबसे अच्छी तरह सोख सकती हैं.
नाभि के रास्ते होने वाला संक्रमण नवजात बछड़ों में एक आम और गंभीर समस्या है. इससे बचाव के लिए जन्म के तुरंत बाद, नाभि को शरीर से लगभग 2-3 इंच की दूरी पर एक नए और साफ ब्लेड से काटें. कटे हुए सिरे को एंटीसेप्टिक घोल में कुछ सेकंड के लिए डुबोकर रखें ताकि कीटाणु अंदर न जा सकें. नाभि के आसपास सूजन, मवाद बनना, बुखार, सुस्ती और जोड़ों में सूजन इसके मुख्य लक्षण हैं. संक्रमण का कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें. उनकी सलाह पर एंटीबायोटिक दवाओं और ड्रेसिंग से इसका इलाज संभव है.
एक सामान्य नियम के अनुसार, बछड़े बछिया को उसके शारीरिक वजन का 10% दूध प्रतिदिन पिलाना चाहिए. उदाहरण के लिए, 30 किलो के बछड़े को दिन में 3 लीटर दूध दें. यह मात्रा एक बार में न देकर दिन में 2-3 बार में बांटकर पिलाएं. बछड़े को जन्म के 24 घंटे के भीतर पहला गाढ़ा, काला गोबर कर देना चाहिए. यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो पेट दर्द हो सकता है. इसके लिए पशु चिकित्सक की सलाह पर अरंडी का तेल पिलाया जा सकता है या गुनगुने पानी का एनीमा दिया जा सकता है.
भविष्य में पशुओं के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए सींगों को हटाना एक आवश्यक प्रक्रिया है. यह काम बछड़े की 15 दिन की उम्र के भीतर ही करवा लेना चाहिए, क्योंकि इस समय यह कम दर्दनाक होता है और घाव जल्दी भर जाता है. यह प्रक्रिया किसी प्रशिक्षित व्यक्ति या पशु चिकित्सक से ही कराएं. बछड़ों को दस्त, निमोनिया और जोड़ों के संक्रमण से बचाने के लिए साफ-सफाई, सही पोषण और समय पर खीस पिलाना सबसे कारगर उपाय है. किसी भी बीमारी के लक्षण दिखने पर लापरवाही न बरतें.