
Animal Care सर्दियों का मौसम पशुओं और पशुपालक दोनों के लिए ही परेशानी लेकर आता है. ऐसे में पशुपालक का सबसे पहला और बड़ा काम होता है कि पशुओं को ठंड से कैसे बचाया जाए. क्योंकि एक बार अगर ठंड लग गई तो तो पशु बीमार पड़ जाएंगे. और पशुओं के बीमार होते ही पशुपालक को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है. पहला पशुओं के इलाज का खर्च और दूसरा उत्पादन घटना. यही वजह है कि पशुपालक सर्दी बढ़ने पर पशुओं के बाड़े में अंगीठी-हीटर और धुएं का इस्तेमाल करने लगते हैं. लेकिन ऐसा करना कितनी सही और गलत होता है.
या फिर अंगीठी-हीटर और धुएं को पशुओं के बीच इस्तेमाल करने का सही तरीका क्या है. इसी को ध्यान में रखते हुए लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार ने एक एडवाजरी जारी की है. वाइस चांसलर डॉ. विनोद कुमार वर्मा पशुओं के बाड़े में अंगीठी, कोयला, लकड़ी और धुएं वाले हीटर के इस्तेमाल को बहुत खतरनाक और जानलेवा बताया है. साथ ही इसके इस्तेमाल के दौरान बहुत ज्यादा अलर्ट रहने की सलाह दी है.
लुवास के एक्सपर्ट डॉ विशाल शर्मा का कहना है कि सर्दियों में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए बंद या कम हवादार पशुओं के बाड़े में अंगीठी या कोयला जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैस उत्पन्न होती है. यह गैस रंगहीन एवं गंधहीन होती है, जिससे इसकी पहचान करना कठिन हो जाता है. गैस के कारण पशुशाला में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे पशुओं में घुटन, सुस्ती, सांस लेने में परेशानी, बेहोशी तथा गंभीर मामलों में मौत तक हो सकती है. यह खतरा विशेष रूप से बछड़े बछड़ियों, गर्भवती, बीमार और कमजोर पशुओं में ज्यादा देखा जाता है.
लुवास के एक्सपर्ट ने पशुपालकों को खासतौर पर सलाह दी है कि रात के वक्त पशुओं के बाड़े में अगीठी, कोयला और लकड़ी का इस्तेमाल बिल्कुल न करें. अगर किसी परिस्थिति में गर्माहट की जरूरत हो तो सिर्फ खुले और पूरी तरह हवादार बाड़े में तय वक्त के लिए ही इसका इस्तेमाल करे. साथ ही सोने से पहले आग को पूरी तरह से बुझा दें. बाड़े में खिड़की और वेटिलेशन की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करें. साथ ही एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि सूखा और मोटा बिछावन, ठंडी हवा रोकने के लिए तिरपाल या पर्दों का इस्तेमाल, पशुओं को झुंड में रखना और जरूरत पड़ने पर इन्फ्रारेड बल्ब का सुरथित इस्तेमाल करें. साथ ही सर्दी के मौसम में पशु आहार और पोषण पर भी खास ध्यान देने की सलाह दी जाती है. जिससे पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे.
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