‘फिशरीज सेक्टर आठ फीसद के रेट से लगातार बढ़ रहा है. मछली उत्पादन 175 लाख टन पर पहुंच चुका है. अब कोशिश है सीफूड एक्सपोर्ट को बढ़ाने की. इसके लिए केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय इंडियन स्पेस रिसर्च सेंटर ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के साथ मिलकर काम कर रहा है. कोशिश है कि समुद्र में से इंटरनेशनल मार्केट की डिमांड और मानकों के हिसाब से मछली पकड़ी जाए. इसके लिए जरूरी है कि मछुआरे गहरे समुद्र में जाकर मछली पकड़ें. लेकिन ऐसा करने के दौरान मछुआरों की जान जोखिम में ना आए और लगातार उनका संपर्क सरकारी एजेंसियों और परिवार के साथ बना रहे.
इसी सब पर काम करने के लिए मंत्रालय कदम-कदम पर इसरो की मदद ले रहा है. यही वजह है कि अब मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए जरूरी टिप्स भी मिल रहे हैं और लगातार जोखिम भी कम हो रहा है.’ ये कहना है केन्द्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय का. उनका कहना है कि मछुआरों के लिए ड्रोन तकनीक पर भी हम काम कर रहे हैं.
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13 अगस्त को कृषि भवन में हुए एक कार्यक्रम के दौरान इसरो और फिशरीज मंत्रालय से जुड़े एक्सपर्ट ने बताया कि मछुआरों की करीब एक लाख नौकाओं में टू-वे कम्युनिकेशन ट्रांसपोंडर लगवाने का काम कर रही है. मछुआरों की नौकाओं की निगरानी करने वाली एजेंसियां इसके माध्यम से मछुआरों को हर तरह की जानकारी भेज रही हैं. जैसे अगर मौसम खराब है या होने वाला है तो उन्हें चेतावनी दे दी जा रही है. खराब मौसम की लोकेशन भी बताई जा रही है. साथ ही टू वे कम्युनिकेशन होने के चलते मछुआरे भी परेशानी के दौरान मैसेज भेज सकते हैं.
सरकार का कहना है कि इससे मछुआरों का कारोबार भी बढ़ेगा और वो काम करने के दौरान जोखिम में भी नहीं फंसेंगे. एक्सपर्ट ने बताया कि मछुआरों के लिए इस तरह की ऐप भी बनाई गई हैं जिनकी मदद से उन्हें सुनामी जैसे तुफान आने की सूचना पहले मिल जाती है. साथ ही ये भी पता चल जाता है कि किस रास्ते पर खतरा है और किस रास्ते से वापस लौटना है. कुछ इस तरह के नेटवर्क भी काम कर रहे हैं जिसकी मदद से मछुआरे 15-20 दिन तक समुद्र में रहने के दौरान अपने घर वालों से भी बात कर लेते हैं.
स्पेस टेक्नोलॉजी की मदद से गहरे समुद्र में मछुआरों को भेजकर सीफूड एक्सपोर्ट बढ़ाने की तैयारी चल रही है. केन्द्र सरकार इसके लिए इसरो के साथ मिलकर काम कर रही है. लेकिन एक्सपर्ट की मानें तो सरकार की इस कोशिश में मरीन मैमल्स प्रोटेक्शन एक्ट (MMPA) रोढ़ा बन सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि कुछ जीव पूरी तरह से जलीय होते हैं, जैसे व्हेल और डॉल्फ़िन. कुछ ऐसे हैं जैसे सील और समुद्री शेर, ये अपना ज्यादा वक्त पानी में बिताते हैं, लेकिन आराम करने या बच्चों को जन्म देने के लिए जमीन और बर्फ पर आते हैं. इस एक्ट को बनाने का मकसद समुद्री स्तनधारी जीवों को संरक्षण देना, समुद्री तंत्र के संतुलन और महासागर के पर्यावरण को बनाए रखने है.
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समुद्री स्तनधारी जीवों व्हेल, डॉल्फ़िन, पोपाइज़, सील, समुद्री शेर, वालरस, ध्रुवीय भालू, समुद्री ऊदबिलाव, मैनेट और डगोंग का उत्पीड़न, शिकार, पकड़ना, स्टॉक करना और मारना समुद्री स्तनधारी संरक्षण एक्ट (MMPA) में शामिल है. बिना परमिट के संयुक्त राज्य अमेरिका में इन जीवों का आयात भी नहीं किया जा सकता है.