पता नहीं ये कहावत कितनी सच और झूठ है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. लेकिन फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो एक मछली पूरे तालाब की मछलियों को बीमार जरूर कर सकती है. अगर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया तो इस बीमारी से मछलियां मरने भी लगती हैं. ये एक ऐसी बीमारी है जो पहले किसी एक मछली को होती है और फिर उसके बाद एक-एक कर तालाब की सभी मछलियों में फैल जाती है. इस बीमारी के चलते मछली पालकों को कई बार पूरे तालाब में नुकसान उठाना पड़ता है.
इतना ही नहीं अगर ये बीमारी मछली बाजार से खरीदकर कोई खा ले तो इसका असर खाने वाले में भी दिखाई देता है. एक्सपर्ट के मुताबिक मछलियों को तमाम तरह की बीमारी से बचाने के लिए तालाब की समय-समय पर सफाई करते रहें. मछलियों को क्वालिटी वाला फीड खिलाएं. बीमार मछलियों को तालाब से फौरन हटा दें. तालाब के आकार के हिसाब से ही तालाब में मछलियों की संख्या रखें. तालाब पनप रहीं दूसरी अवैध मछलियों को हटाते रहें.
फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि फंगस यानि फफूंद के चलते मछलियों के बीच अल्सर रोग जल्दी फैलता है. तालाब, टैंक में पाली जाने वाली मछलियों के साथ ही नदी में रहने वाली मछलियों में भी अल्सर रोग होता है. लेकिन खेत के पास बने तालाब में पलने वाली मछलियों में अल्सर होने की संभावना ज्यादा रहती है. इस बीमारी की पहचान मछलियों के शरीर पर खून जैसे लाल धब्बे हो जाते हैं. कुछ दिन बाद यही धब्बे घाव बन जाते हैं और मछलियों की मौत हो जाती है.
तालाब को किनारे से इतना ऊंचा उठा दे या बांध बना दें कि उसमे आसपास का गंदा पानी न जाए. खासतौर पर बारिश के मौसम में बरसात होने के बाद तालाब के पानी का पीएच लेवल जरूर चेक करते हैं. या फिर बारिश के दौरान तालाब के पानी में 200 किलो के करीब चूना भी मिलाया जा सकता है.
अगर तालाब की कुछ मछलियों को अल्सर हो जाए तो उन्हें अलग कर दें. और अगर तालाब की ज्यातदातर मछलियों में अल्सर बीमारी फैल गई है तो तालाब में कली का चूना जिसे क्विक लाइम भी कहते हैं के ठोस टुकड़े डाल दें. एक्सपर्ट के मुताबिक प्रति एक हेक्टेयर के तालाब में कम से कम 600 किलो चूना डालें. चूने के साथ ही 10 किलो ब्लीचिंग पाउडर भी प्रति एक हेक्टेयर के हिसाब से डालें. इसके साथ ही लीपोटेशियम परमेगनेट का घोल भी प्रति एक हेक्टेयर के तालाब में एक लीटर तक ही डालें.
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