
देहरादून में 26 से 29 दिसंबर 2025 तक सहकारी व्यापार मेला लगा. इस मेले में ICAR-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC) ने मछली पालन और खेती से जुड़ी कई नई और आसान तकनीकें दिखाई. इन तकनीकों के बारे में डॉ. एम. मुरुगानंदम ने लोगों को सरल भाषा में समझाया.
डॉ. मुरुगानंदम ने बताया कि मछली पालन को खेती के साथ मिलाकर किया जा सकता है. इससे किसानों को ज्यादा फायदा होता है. यह तरीका एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated farming system) कहलाता है. इसमें मछली, खेती, पशुपालन और प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल एक साथ की जाती है. उत्तराखंड के पहाड़ों में पुराने समय से घराट (पानी से चलने वाली चक्की) होते हैं. ICAR–IISWC ने एक नई सोच दिखाई. घराट से निकलने वाला साफ और ऑक्सीजन वाला पानी मछली तालाब में डाला जा सकता है. घराट से निकलने वाला अनाज का बचा हिस्सा मछलियों का खाना बन सकता है. इस तरीके से सिर्फ 100 वर्ग मीटर जगह में करीब 50 किलो मछली पैदा हो सकती है.
डॉ. मुरुगानंदम ने बताया कि अगर मछली के बीज सही समय पर और सही संख्या में डाले जाएं तो ज्यादा मछली मिलती है. फरवरी–मार्च में कम संख्या में बीज डालने से अच्छा परिणाम मिला.
इससे किसानों ने अपने तालाब में मछली उत्पादन 800 किलो से बढ़ाकर 2.5 टन प्रति हेक्टेयर तक कर लिया.
धान के खेत में भी मछली पाली जा सकती है. इसके लिए खेत की मेड़ को मजबूत किया जाता है और पानी के लिए छोटी खाइयाँ बनाई जाती हैं. इस तरीके से एक साल में 600–900 किलो मछली मिलती है और साथ ही धान की पैदावार भी 15–20 प्रतिशत बढ़ जाती है.
अच्छा मछली पालन करने के लिए सही तालाब बहुत जरूरी है. तालाब में पानी आने और जाने की सही व्यवस्था होनी चाहिए. पानी बहुत गंदा न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए. बीमारी से बचाने के लिए चूना, दवा और समय-समय पर पानी बदलना भी जरूरी बताया गया.
ICAR–IISWC ने मछली के बीज और जिंदा मछली को सुरक्षित ले जाने की तकनीक भी दिखाई. इससे 90–95 प्रतिशत मछलियां सुरक्षित रहती हैं और मरती नहीं हैं.
डॉ. मुरुगानंदम ने कहा कि छोटी मछलियों को नहीं पकड़ना चाहिए. जहरीले रसायनों और गलत तरीकों से मछली पकड़ना गलत है. इससे नदी और तालाब दोनों खराब हो जाते हैं.
ये सभी तकनीकें पहले ही लगभग 50 गाँवों में दिखाई जा चुकी हैं. किसान, स्वयं सहायता समूह (SHG) और किसान उत्पादक संगठन (FPO) इन तरीकों को अपनाने में बहुत रुचि दिखा रहे हैं. ICAR–IISWC की ये नई और आसान तकनीकें मछली पालन को लाभदायक बनाती हैं. इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी और गांव मजबूत होंगे.
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