भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पशुपालन का व्यवसाय सदियों से चला आ रहा है. ग्रामीण इलाकों में लोग अपनी आजीविका के लिए खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं ताकि वो ज्यादा पैसे कमा सकें. ऐसा ही एक बेहद लोकप्रिय व्यवसाय है बकरी पालन का व्यवसाय. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हमारे देश में बकरियों की कुल संख्या करीब 12 करोड़ है. दुनिया की कुल बकरियों की आबादी का 20 फीसदी हिस्सा सिर्फ भारत में पाया जाता है. जो कि एक बहुत बड़ी संख्या है.
बकरी एक बहुउद्देश्यीय, सरल, किसी भी वातावरण में आसानी से ढल जाने वाला छोटा जानवर है जो अपनी रहन-सहन और खान-पान की आदतों के कारण हर किसी का पसंदीदा जानवर है. इतना ही नहीं देश-विदेश के बाजार में बकरियों की भारी मांग है. बकरी के दूध, मांस और छाल का इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जाता है. जिसके कारण ज्यादातर किसान बकरी पालन करते हैं. ऐसे में अगर आप भी बकरी पालन करना चाहते हैं तो देसी की जगह विदेशी नस्ल की बकरियां पाल सकते हैं.
बकरी पालन मुख्य रूप से मांस, दूध और ऊन (पसमीना और मोहायर) के लिए किया जा सकता है. बकरी पालन झारखंड राज्य के लिए मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है. इस क्षेत्र में पाई जाने वाली बकरियाँ छोटी उम्र में ही परिपक्व हो जाती हैं और दो साल में कम से कम 3 बार बच्चे देती हैं और एक थन में 2-3 बच्चे देती हैं. बकरियों से मांस, दूध, खाल और ऊन के अलावा उनके मलमूत्र से भूमि की उर्वरता बढ़ती है. बकरियाँ आमतौर पर चरागाहों पर निर्भर रहती हैं. वे झाड़ियों, जंगली घास और पेड़ों की पत्तियों को खाकर हमारे लिए मांस और दूध जैसे पौष्टिक भोजन का उत्पादन करती हैं.
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गर्भवती बकरियों को गर्भावस्था के आखिरी डेढ़ महीने में अधिक सुपाच्य और पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि उसके गर्भ में भ्रूण बहुत तेजी से बढ़ने लगता है. इस समय गर्भवती बकरी के पोषण और रखरखाव पर ध्यान देने से स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा और बकरी अधिक दूध देगी जिससे उसके बच्चों का शारीरिक विकास अच्छा होगा.
बकरियों का औसत गर्भकाल 142-148 दिन का होता है. बच्चे को जन्म देने से 2-3 दिन पहले बकरी को साफ-सुथरा और अन्य बकरियों से अलग रखें.