World Fisheries Day: इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से अब बाजार तक नहीं आतीं बीमार मछलियां 

World Fisheries Day: इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से अब बाजार तक नहीं आतीं बीमार मछलियां 

तालाब में पलने वाली मछलियों की सेहत जानने के लिए अब जाल से पकड़कर उन्हें बाहर निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ड्रोन, रडार, कैमरा और सेंसर का इस्तेमाल कर मछलियों समेत पानी की हैल्थ पर नजर रखी जा रही है. 

World Fisheries DayWorld Fisheries Day
नासि‍र हुसैन
  • Delhi,
  • Nov 20, 2025,
  • Updated Nov 20, 2025, 12:06 PM IST

मछली खाने वालों की दो फरमाइश बहुत अहम होती हैं. एक जिस वैराइटी की मछली वो चाहते हैं वो उन्हें मिल जाए. ये बेशक दूसरे नंबर की फरमाइश है, लेकिन है सबसे अहम. और वो है फ्रेश मछली. मतलब ताजी हो और उसे किसी भी तरह की कोई बीमारी न हो. इन दो शर्त के पूरा होते ही ग्राहक 50 रुपये किलो ज्यादा देने को भी तैयार रहता है. हालांकि तालाब से लेकर बाजार तक मछलियों को फ्रेश बनाए रखना बड़ा मुश्किल होता है, लेकिन अब एक खास टेक्नोलॉजी की मदद से इसे आसान बनाया गया है. 

और ये टेक्नोलॉजी है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI). फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो एआई की मदद  से तैयार फ्रेश फिश बाजार ही नहीं घरों तक पहुंच रही है. मछली के बीज से लेकर दो किलो तक की मछली तैयार करने के लिए पूरी तरह से एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है. एआई के चलते ही बीमार मछलियों के बाजार तक आने का खतरा भी कम हो गया है. 

ड्रोन से हो जाती है पानी के तापमान-प्रदूषण की जांच 

मछलियां 24 घंटे पानी में रहती हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि ठंडा-गरम हर तरह का पानी उनके लिए चल जाएगा. मछलियों को भी एक तय तापमान वाला पानी तालाब में चाहिए होता है. मतलब ठंड में न तो बहुत ज्यादा ठंडा और गर्मियों में न ज्यादा गरम. अभी पानी की जांच मछली पालक तालाब के पानी में थर्मामीटर लगाकर करते हैं. लेकिन एआई की मदद से ड्रोन में लगा सेंसर पानी के तापमान की रिपोर्ट मोबाइल और लैपटॉप पर भेज देता है. तालाब का पानी प्रदूषित हो गया है और कैसे हुआ है इसकी रिपोर्ट भी ड्रोन में लगे सेंसर बता देते हैं. 

ड्रोन से खींचे गए फोटो बता देते हैं मछलियां बीमार हैं

ड्रोन में लगे कैमरे लगातार तालाब की तस्वीर भेजते रहते हैं. तालाब पर बहुत नीचे ड्रोन उड़ाने से उसमे मौजूद मछलियां भी साफ-साफ दिखाई देने लगती हैं. इससे मछलियों की प्रमुख बीमारी लाल धब्बा भी दिखाई दे जाती है. या फिर मछलियां तालाब में कैसा व्यवहार कर रही हैं ये भी पता चल जाता है. फिशरीज एक्सपर्ट बताते हैं कि तालाब में दवाई का छिड़काव भी ड्रोन से किया जा रहा है. तालाब में दवाई का छिड़काव करते वक्त यह ख्याल रखना पड़ता है कि सभी मछलियां दवाई के प्रभाव में आ जाएं. लेकिन हाथ से दवाई का छिड़काव कैसे भी कर लो तालाब में कुछ न कुछ मछलियां छूट ही जाती हैं. 

कुछ बीमारी ऐसी होती हैं कि अगर सभी मछली ठीक हो जाएं और एक भी बीमार रह गई तो वो फिर से पूरे तालाब की मछलियों को बीमार कर देगी. जबकि ड्रोन से खेत की तरह दवाई पूरे हिस्से में छिड़क दी जाती है और तालाब की हर एक मछली उसके प्रभाव में आ जाती है. मछली तालाब के बीच में है. आपको किनारे से दिखाई नहीं दे रही है तो ऐसे में ड्रोन उसे आपके मोबाइल और लैपटॉप पर दिखा देता है. 

ड्रोन से तालाब में हर जगह पहुंचता है फीड

हम कभी तालाब के एक कोने पर तो कभी दूसरे और तीसरे कोने पर जाकर मछलियों को हाथ से दाना खिलाते हैं. कोशिश यही होती है कि सभी मछलियों को बराबर दाना मिल जाए. ऐसा ना हो कि कोई मछली मोटी ताजी हो जाए तो कोई कमजोर रह जाए. ऐसा इसलिए करना होता है कि तालाब की जो ताकतवर मछली हैं वो दाना खाने के लिए एकदम आगे यानि तालाब के किनारे पर आ जाती हैं, जबकि कमजोर मछली पीछे रह जाती है. 
उसे भरपेट दाना नहीं मिल पाता है. जिसके चलते दूसरी मछलियों के मुकाबले वो कम वजन की रह जाती हैं. इससे मछली पालक को भी बड़ा नुकसान होता है. लेकिन ड्रोन से जब दाना तालाब में डाला जाता है तो वो बराबर रूप से पूरे तालाब में दाना डालता है. जिसके चलते तालाब के सभी हिस्से में मौजूद मछलियों को दाना खाने का मौका मिल जाता है.

ये भी पढ़ें- Poultry Feed: पोल्ट्री फार्मर का बड़ा सवाल, विकसित भारत में मुर्गियों को फीड कैसे मिलेगा

ये भी पढ़ें- Poultry Board: पशुपालन मंत्री और PFI ने पोल्ट्री फार्मर के लिए की दो बड़ी घोषणाएं, पढ़ें डिटेल

MORE NEWS

Read more!