Horses game and Export भारत में घोड़ों की सात ऐसी नस्ल हैं जो रजिस्टर्ड हैं. ये सभी सात नस्ल एक से बढ़कर एक हैं. कुछ को खेलों के लिए पाला जाता है तो कुछ पहाड़ी और ठंडे इलाकों में सामान के साथ यात्रा करने के लिए पाले जाते हैं. एक नस्ल ऐसी भी है जिसे उसकी ऊंची कद-काठी और फुर्ती के चलते शौक के लिए पाला जाता है. लेकिन अफसोस की बात ये है कि अभी कुछ महीने पहले तक देश के अलावा विदेशों में इन घोड़ों की कोई पूछ नहीं थी. इनकी बोली लगाना तो दूर कोई इन्हें अपने देश में एंट्री देने तक को तैयार नहीं था.
लेकिन अब इन घोड़ों की बोली भी लगेगी और इंटरनेशनल गेम्स में ये घोड़े हिस्सा भी लेंगे. एक और खास बात ये है कि इन घोड़ों को विदेशी जमीन पर कदम रखने से पहले अब क्वारंटाइन भी नहीं होना पड़ेगा. और ये सब मुमकिन हुआ है डीजीज फ्री जोन घोषित होने के चलते. डीजीज फ्री जोन में पलने वाले घोड़े भी एक्सपपोर्ट हो सकेंगे.
इस जोन के बन जाने से अब घोड़ों से जुड़े कई क्षेत्रों में इसका फायदा मिलेगा. जैसे खेलों में खरीद-फरोख्त में, प्रजनन (ब्रीडिंग) में और बायो सिक्योरिटी के साथ-साथ डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट को मजबूत करने में इसका बड़ा फायदा मिलेगा. हालांकि अफ्रीकी हॉर्स सिकनेस के मामले में भारत साल 2014 में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है.
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