दिल्ली के प्रदूषण के लिए किसान नहीं वाहन जिम्मेदार, 'किसान तक' ने अपने पहले वीडियो में किया था खुलासा 

दिल्ली के प्रदूषण के लिए किसान नहीं वाहन जिम्मेदार, 'किसान तक' ने अपने पहले वीडियो में किया था खुलासा 

CSE ने कहा है कि दिल्ली में वाहनों से होने वाला प्रदूषण इस समस्या के लिए सबसे बड़ा सोर्स बना है. वाहनों से होने वाला प्रदूषण की हिस्सेदारी 51.1 फीसदी है, जो धूल के बाद दूसरे नंबर पर है. जबकि, पराली जलाने से 1 फीसदी से भी कम प्रदूषण हिस्सेदारी रही है. यह स्पष्ट करता है कि किसानों को प्रदूषण के लिए बलि का बकरा बनाया जाता रहा है, असल में दिल्लीवासी खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं.

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दिल्ली के प्रदूषण के लिए किसान नहीं वाहन जिम्मेदार, 'किसान तक' ने अपने पहले वीडियो में किया था खुलासा दिल्ली की खराब हवा के लिए वाहनों से होने वाला प्रदूषण बड़ी वजह.

दो साल पहले जब किसान तक लॉन्च हुआ, हमने किसानों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ एक साथ आवाज उठाई थी. हमारे पहले ही वीडियो में हमने पराली का मुद्दा उठाते हुए बताया था कि दिल्ली वाले राजधानी के प्रदूषण के लिए किसानों को कैसे बलि का बकरा बनाते हैं. (नीचे तीन पार्ट का एक वीडियो है जिसे आप देख सकते हैं). अब दो साल बाद, दिल्ली को उसी कड़वे सच का सामना करना पड़ रहा है जो 'किसान तक' ने अपने लॉन्चिंग वीडियो में कहा था. प्रदूषण दिल्ली के घर की खेती है...पराली के कारण से प्रदूषण नहीं है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार की आज की एक रिपोर्ट में बताया गया है क‍ि दिल्ली का आधा प्रदूषण दिल्ली के ही करोड़ से ज्यादा मोटर गाड़ियों की वजह से है...जो पराली से कई गुना ज्यादा है. 

किस सोर्स से कितना बढ़ रहा प्रदूषण 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने कहा है कि प्रदूषण उत्सर्जन को कम करने के तकनीकी उपायों के बावजूद, शहर में वाहनों से होने वाला प्रदूषण सबसे बड़ा कारण राजधानी के प्रदूषण के लिए है, जो सभी लोकल सोर्स से होने वाले प्रदूषण का 51.1 फीसदी है. इसके बाद आवासीय क्षेत्रों से 13 फीसदी प्रदूषण पैदा हुआ. जबकि, इंडस्ट्री से 11 फीसदी और निर्माण सेक्टर से 7 फीसदी प्रदूषण हिस्सेदारी दर्ज की गई है. वहीं,  पराली जलाने से प्रदूषण की हिस्सेदारी 1 फीसदी से भी कम रही है. 

सीएसई की स्टडी बताती है कि पिछले कुछ वर्षों में ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के बावजूद बड़ी चूक के चलते निजी वाहन बढ़े हैं और और सर्दियों में प्रदूषण में इनका योगदान भी उतनी ही तेजी से बढ़ा है. यह इतना अधिक कि जब फसल की पराली जलाना कम हुआ है, तब भी दिल्ली की हवा की क्वालिटी 'खराब' या 'बहुत खराब' स्तर पर बनी हुई है. 

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण और कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने दिल्ली के प्रदूषण के लिए शहरी परिवहन को स्थानीय उत्सर्जन का मुख्य सोर्स माना है. उन्होंने लोकल ट्रांसपोर्ट को मजबूत करने पर जोर देते हुए बताया कि शहर के केवल 1 फीसदी से भी कम बस स्टॉप पर वेटिंग टाइम 10 मिनट से कम है. सीएसई ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में शहर में प्रदूषण के चरम स्तर में गिरावट आई है, लेकिन औसत में भारी इजाफा हुआ है, जो लोकल पॉल्यूशन सोर्स की भूमिका को दिखाता है. 

पीएम स्तर को 61 फीसदी तक घटाना होगा 

सीपीसीबी डेटा के आधार पर सीएसई ने पाया कि अक्टूबर से जनवरी तक सर्दियों के महीनों में 24 घंटे का अधिकतम पीएम 2.5, 2019-20 में 566 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से घटकर 2023-24 में 366 पर आ गया. लेकिन, अभी भी यह 24 घंटे के राष्ट्रीय औसत से 6 गुना अधिक पाया गया.  2023 में दिल्ली का सालाना औसत पीएम 2.5, 101 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो 2019 में रहे 109 के स्तर की तुलना में 7 फीसदी सुधार को दिखाता है. दिल्ली को राष्ट्रीय सालाना एयर क्वालिटी मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर को पूरा करने के लिए पीएम 2.5 स्तर को अतिरिक्त 61 फीसदी तक कम करने की जरूरत है. 

प्रदूषण सोर्स बढ़ने की आशंका 

अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा कि निष्कर्ष बताते हैं कि प्रदूषण रोकने के लिए हो रहे इमरजेंसी एक्शन का असर तो दिख रहा है. लेकिन, सभी प्रदूषण फैलाने वाले सोर्स में इजाफा होने की आशंका है, जिसमें वाहन भी शामिल हैं, जो शहर में सबसे बड़े प्रदूषण फैलाने वाले सोर्स के रूप में उभरे हैं. आईआईटी कानपुर की 2015 में और टेरी-एआरएआई की 2018 में और सफर के 2018 में दिल्ली के लिए किए गए प्रदूषण फैलने के अध्ययनों ने पीएम2.5 में ट्रांसपोर्ट सेक्टर की हिस्सेदारी को क्रमशा 20 फीसदी, 39 फीसदी और 41 फीसदी तय किया है. प्रदूषण फैलाने वाले सोर्स में यह सबसे बड़ा सोर्स है और सालाना यह धूल के बाद दूसरा सबसे बड़ा सोर्स बना है.  

वाहनों की बढ़ती संख्या बढ़ा रही मुसीबत 

सीएसई की एनालिसिस पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसे की कमी जैसे मुद्दों को उजागर करती है. उदाहरण के लिए बसों के बीच में खराब होने की घटनाएं 2018-19 में 781 से बढ़कर 2022-23 में 1259 हो गईं. एनालिसिस ने बसों के लिए हाई वेटिंग टाइम पर भी ध्यान खींचा, जिसमें पता चला कि यात्रियों को शहर के 1 फीसदी से भी कम बस स्टॉप पर 10 मिनट से भी कम समय तक इंतजार करना पड़ा. वर्तमान में लगभग 50 फीसदी बस स्टॉप पर वेटिंग टाइम 15 मिनट से अधिक है.

आर्थिक सर्वेक्षण दिल्ली 2023-24 के अनुसार राजधानी में 79 लाख वाहन हैं और 2023-24 में ही 6.5 लाख नए वाहन जोड़े गए, जो कोरोना से पहले के सालों की तुलना में 6.1 लाख सालाना बढ़ोत्तरी है. इसके अलावा हर दिन 11 लाख वाहन शहर में प्रवेश करते और बाहर निकलते हैं. दोपहिया वाहन और कारों की संख्या 15 फीसदी की सालाना दर से बढ़ रही है. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट से से नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में 81 फीसदी की बढ़त होती है. सीएसई ने पाया कि शहर के इलाकों के विस्तार से प्रति व्यक्ति यात्रा दर में 12.3 फीसदी का उछाल भी आया है. 

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