देश के लिए एक शुभ संकेत देते हुए, इस साल मॉनसून की बारिश 24 मई को ही भारत के सबसे दक्षिणी राज्य केरल के तट पर पहुंच गई थी. यह सामान्य से आठ दिन पहले और पिछले 16 वर्षों में मॉनसून का सबसे शुरुआती आगमन था. हालांकि, शुरुआती उत्साह के बाद, मॉनसून की गति में कुछ दिनों के लिए ठहराव देखा गया, जिससे किसानों और मौसम विशेषज्ञों की चिंताएं बढ़ गई थीं. पर अब राहत की खबर है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून एक बार फिर अपनी सामान्य गति पर लौट आया है और धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया है.
इसने न केवल बंपर फसल की उम्मीदें जगाई हैं, बल्कि भीषण गर्मी से भी राहत हुई है. भारत की $4 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा, मॉनसून देश की कृषि भूमि को सींचने और जलस्रोतों को भरने के लिए जरूरी लगभग 70 फीसदी बारिश प्रदान करता है. भारत की लगभग आधी से अधिक कृषि भूमि, जो सिंचाई कवरेज से वंचित है, अपनी फसलों के लिए जून-सितंबर की वार्षिक बारिश पर पूरी तरह निर्भर रहती है उन एरिया के लिए खुशहाली लेकर आई है.
आमतौर पर, ग्रीष्मकालीन बारिश 1 जून के आसपास केरल में शुरू होती है और मध्य जुलाई तक पूरे देश में फैल जाती है, जिससे किसानों को चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन और गन्ना जैसी महत्वपूर्ण खरीफ फसलें बोने का अवसर मिलता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पुष्टि की है कि 24 मई को केरल में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून का आगमन 23 मई, 2009 के बाद से इसका सबसे शुरुआती रिकॉर्ड है.
भारत के कई हिस्सों में अभी भी सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं हैं. विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में किसान वर्षा जल पर ही खेती करते हैं. जब मॉनसून अच्छा होता है, तो खेतों में प्राकृतिक रूप से जल उपलब्ध होता है. इससे किसानों को बार-बार ट्यूबवेल या नलकूप चलाने की जरूरत नहीं होती, जिससे डीजल और बिजली का खर्च भी बचता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, प्री-मॉनसून वर्षा और मॉनसून का शुरुआती आगमन विशेष रूप से दक्षिणी और मध्य राज्यों के किसानों को सामान्य से पहले गर्मी की फसलें बोने में मदद करेगा. "खेतों में मृदा नमी और जल्दी बुवाई से संभावित रूप से फसल की पैदावार बढ़ सकती है." पिछले साल, मॉनसून 30 मई को केरल के तट पर पहुंचा था, और कुल मिलाकर गर्मी की बारिश 2020 के बाद सबसे अधिक थी, जिसने 2023 में सूखे से उबरने में अहम भूमिका निभाई.
IMD ने पिछले महीने 2025 में लगातार दूसरे वर्ष औसत से अधिक मॉनसून बारिश का अनुमान लगाया है. भारत की जीडीपी में कृषि का अहम योगदान है. मॉनसून बेहतर होने पर खरीफ फसलों की पैदावार बढ़ती है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है और आर्थिक ग्रोथ दर पर भी सकारात्मक असर पड़ता है. कृषि उत्पादन अच्छा होने से कृषि आधारित उद्योग जैसे खाद्य प्रसंस्करण, बीज, उर्वरक, ट्रैक्टर, कृषि यंत्र आदि की मांग भी बढ़ती है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिलती है.
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 65 फीसदी से अधिक कृषि भूमि मॉनसून की बारिश पर निर्भर करती है. भारत में लगभग 65 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष रूप से कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों से जुड़े हैं और लगभग 55 प्रतिशत कार्यबल कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में लगा हुआ है. समय से पहले मॉनसून का आगमन खरीफ फसलों के लिए अत्यधिक फायदेमंद हो सकता है, बशर्ते बारिश संतुलित रहे.
अधिक बारिश बाढ़ का कारण बन सकती है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाएगी, जबकि कम बारिश भी फसलों के लिए हानिकारक होगी. सामान्य मॉनसून सीजन जून से सितंबर तक होता है, लेकिन इस बार मई में इसकी शुरुआत और भारत मौसम विज्ञान विभाग की भविष्यवाणी के अनुसार 105 फीसदी बारिश की संभावना ग्रामीण भारत के लिए एक बहुत ही सकारात्मक संकेत है.
मॉनसून का असर केवल खेती तक सीमित नहीं है, यह देश की समग्र अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभावित करता है. कृषि क्षेत्र देश की जीडीपी में 17-18% का योगदान देता है, लेकिन इस पर 60-65 करोड़ आबादी निर्भर करती है. एक अच्छा मॉनसून ग्रामीण आय बढ़ाने में सीधे तौर पर सहायक होता है, जिससे ग्रामीण उपभोग और निवेश बढ़ता है. जब फसल उत्पादन अच्छा होता है, तो मंडियों में फसलों के दाम स्थिर रहते हैं और किसानों को उचित मूल्य मिलता है.
साथ ही, उपज अधिक होने से किसान अपने अनाज, फल, सब्जी और अन्य कृषि उत्पादों को बाजार में बेचकर अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं. अच्छी बारिश के कारण पशुपालन, मत्स्य पालन और वानिकी जैसे कृषि आधारित अन्य व्यवसाय भी फलते-फूलते हैं, जिससे किसानों की समग्र आय में बढ़ोत्तरी होती है.
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