सिर्फ विपक्षी पार्टी और किसान जिम्मेदार नहीं तंवर साहब, राजनीति जिम्मेदार है

सिर्फ विपक्षी पार्टी और किसान जिम्मेदार नहीं तंवर साहब, राजनीति जिम्मेदार है

एक तरफ पराली जल रही है तो दूसरी ओर आम जनता के फेफड़े जल रहे हैं. लोगों का सांस लेना दूभर हो रहा है, लेकिन राजनीति है कि मानती ही नहीं. नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. एक सरकार की गलती का ठीकरा किसी दूसरी सरकार पर फोड़ा जा रहा है. और आम लोग हैं कि मरे जा रहे हैं.

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सिर्फ विपक्षी पार्टी और किसान जिम्मेदार नहीं तंवर साहब, राजनीति जिम्मेदार हैपराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है

शुक्रवार 3 नवंबर, पराली जलने के 1551 मामले पंजाब से आए. 28 हरियाणा, 36 यूपी, जीरो दिल्ली, 38 राजस्थान और जहां की बात आमतौर पर नहीं होती, उस मध्य प्रदेश से 552. इसी दिन हरियाणा में एक माननीय को धुआं दिखाई दिया. पंजाब का नहीं, हरियाणा का. वो भी एक वीडियो के साथ. इन माननीय नेता का नाम है अशोक तंवर. आम आदमी पार्टी के नेता हैं. इन्होंने अपने घर के आसपास एक वीडियो बनाया और हरियाणा सरकार को घेरने की कोशिश की. इस वीडिया में खेतों में आग है और धुआं उठ रहा है.

इन्होंने कहा, इनके ही शब्दों में जानिए - ’हरियाणा में जहां देखो वहां आग ही आग है. खट्टर सरकार किसानों की मदद क्यों नहीं कर रही है? गुलशन की फ़िज़ा धुआं धुआं है. सरकार कहे बहार का समां है. आखिर ये कैसा मंजर! जहां तक जाए नज़र, बस धुआं ही धुआं है!! पर्यावरण और किसान दोनों की हालत कितनी भी खराब हो. खट्टर सरकार को फर्क ही नहीं पड़ता.’

पर्यावरण और किसानों के हिमायती तंवर साहब से सवाल यही है कि श्रीमान, क्या पर्यावरण खराब करने में पंजाब का भी योगदान है? क्या वहां के किसानों की भी हालत खराब है? चूंकि वहां आपकी सरकार है, तो क्या वहां पराली जलाने पर न तो धुआं उठता है और न ही वहां के किसान मजबूर हैं!

क्या कहते हैं आंकड़े?

तंवर साहब और हरेक पार्टी के तमाम नेताओं के लिए एक और आंकड़ा. 15 सितंबर से 3 नवंबर तक 20728 मामले सामने आए हैं. पंजाब की हिस्सेदारी 12813 है, हरियाणा में पंजाब के मुकाबले करीब दस फीसदी यानी 1372, यूपी में 1102, दिल्ली में दो, राजस्थान में 982 और मध्य प्रदेश में 4457 मामले पराली जलाने के हैं. यह सही है कि पंजाब में पराली जलाने के मामले पिछले साल (24146) के मुकाबले लगभग आधे हैं. लेकिन अब भी सबसे ज्यादा पराली इसी राज्य में जल रही है. हरियाणा में भी पिछले साल के मुकाबले पराली जलाने के मामले अब तक आधे हैं. पिछले साल 2377, इस साल 1372. यह आंकड़े आईसीएआर के हैं, हमारे नहीं.

एक दिलचस्प आंकड़ा राजस्थान और मध्य प्रदेश का है. राजस्थान में पिछले साल यानी 2022 में पराली जलाने के मामले थे 462, इस साल हैं 982. दोगुने से ज्यादा. मध्य प्रदेश में पिछले साल 1579 मामले थे, इस साल हैं 4457. यानी लगभग तीन गुना. यहां तक कि उत्तर प्रदेश में भी आंकड़ा 842 से बढ़कर 1102 हुआ है. इन पर बात नहीं होती, क्योंकि इन राज्यों के धुएं से दिल्ली में बैठे बड़े लोगों को खतरा महसूस नहीं होता.

पराली पर सियासत हावी

कुछ साल पहले तक दिल्ली में बैठकर हरियाणा और पंजाब को कोसा जाता था. वजह यही थी कि दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं थी. इसलिए गालियां देने में कोई समस्या नहीं थी. फिर आप की सरकार पंजाब आ गई, तो अब हरियाणा को कोसा जाता है. कांग्रेस पहले दिल्ली और हरियाणा को कोसती थी. अब पंजाब को भी गाली दे सकती है, क्योंकि वहां अब उनकी सरकार नहीं रही. बीजेपी के लिए हरियाणा के अलावा बाकी दोनों राज्यों को गाली देने में कोई दिक्कत नहीं.

समस्या यही है कि यह समस्या महज 20-25 दिन की है. ऐसे में न तो दूसरी पार्टी को गाली देने में दिक्कत है और न ही इस बात में कि पूरा ठीकरा पराली पर फोड़ दिया जाए. यह कहते हुए कि हम तो किसान के साथ हैं, हर कोई यह बताता है कि स्मॉग, धुएं या जहरीले माहौल के लिए पराली जिम्मेदार है. जबकि 'किसान तक' पिछले समय बनाई अपनी डॉक्यूमेंट्री में साबित कर चुका है कि पर्यावरण की यह हालत पराली की वजह से नहीं है. जिन वजहों से है, उन पर बात करना राजनीतिक पार्टियों के हित में नहीं है. इसीलिए वे बार-बार पराली पर निशाना साधते हैं. वे बार-बार उस पार्टी पर निशाना साधते हैं, जो उनकी नहीं है. 

पार्टी विपक्षी हो, सामने किसान हो, तो निशाना साधना सबसे आसान है. वही तंवर साहब ने किया है. वह अकेले नहीं हैं. हर पार्टी के अपने ‘तंवर’ हैं, जिन्हें सिर्फ दूसरों के घर का धुआं दिखता है. अपने घर का नहीं. भले ही अपने घर के धुएं उनके फेफड़ों में भीतर तक घर कर चुके हों.

 

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