हाल ही में दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सीएसई मीडिया रिसोर्स सेंटर ने एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का मात्रात्मक मूल्यांकन किया गया है. मूल्यांकन 12 अक्टूबर 2024 से 3 नवंबर, 2024 तक किया गया है. इसमें दिल्ली में वायु प्रदूषण के के लिए दिल्ली के स्थानीय स्रोत का 30.34 प्रतिशत योगदान है, जबकि एनसीआर जिलों का 34.97 योगदान है. वहीं, अन्य जिले 27.94 प्रतिशत का योगदान दे रहे है. इन सबके अलावा सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली पराली जलाने की घटनाओं का योगदान मात्र 8.19 प्रतिशत है. पराली जलाने की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में भारी गिरावट आई है, जिसके पीछे केंद्र सरकार की भी बड़ी भूमिका है.
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन योजना शुरू किए जाने के बाद सभी स्टेकहोल्डर्स के प्रयासों से 2023 सीज़न में धान की पराली जलाने को 51.5% तक कम करने में मदद मिली है. उत्तर-प्रदेश एनसीआर क्षेत्र में अन्य कृषि अपशिष्ट जैसे गन्ना, कचरा आदि जलाने के कारण थोड़ी अधिक पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं. चालू वर्ष के दौरान यानी 10 नवंबर तक, पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या 6611 और हरियाणा में 981 दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष की इसी तारीख की पराली जलने की तुलना में क्रमश 72% और 41% कम है.
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने धान की पराली के प्रभावी प्रबंधन और प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए की कई पहलें की है. बता दें कि पंजाब और हरियाणा में लगभग 45 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, जिसमें से लगभग 15 लाख हेक्टेयर बासमती और 30 लाख हेक्टेयर गैर-बासमती की खेती की जाती है. आमतौर पर, किसान बासमती धान की पराली नहीं जलाते हैं.
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धान की फसल की कटाई और अगली रबी फसल की बुवाई के बीच कम समय होने के कारण पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाकों में किसान पराली जलाते हैं. इस समस्या से निपटने और धान की पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को दूर करने और पराली के प्रबंधन के लिए जरूरी मशीनरी को सब्सिडी देने के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों की कोशिशों को समर्थन देने के लिए 2018-19 से पराली प्रबंधन को लेकर एक सेंट्रल सेक्टर स्कीम लागू की गई है.
इस योजना का ज्यादा से ज्यादा किसानों को फायदा हो इसलिए इसे ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए मार्च, 2024 में दिशा-निर्देशों में सुधार किया गया है. इस योजना के तहत, पराली प्रबंधन मशीनरी की खरीद के लिए किसानों को 50 प्रतिशत की वित्तीय सहायता दी जाती है और फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना के लिए ग्रामीण उद्यमियों (ग्रामीण युवा और उद्यमी के रूप में किसान), किसानों की सहकारी समितियों, पंजीकृत किसान समितियों, एफपीओ और पंचायतों को 80 प्रतिशत की वित्तीय सहायता दी जाती है.
मशीनरी और उपकरणों जैसे उच्च एचपी ट्रैक्टर, कटर, टेडर, मध्यम से बड़े बेलर, रेकर, लोडर, ग्रैबर और टेलीहैंडलर की पूंजीगत लागत पर धान आपूर्ति श्रृंखला परियोजनाओं को 1.50 करोड़ रुपये भी दिए जाते हैं. फसल अवशेष प्रबंधन पर किसानों की व्यापक जागरूकता के लिए सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों के संचालन के लिए राज्यों और आईसीएआर को वित्तीय सहायता भी दी जाती है.
यह योजना फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा अनुशंसित मशीनों और उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देती है जैसे सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, मल्चर, श्रब मास्टर/रोटरी स्लेशर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, हाइड्रॉलिकली रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड हल.
धान की पराली जलाने से रोकने और इसके प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार पहले से ही राज्य सरकारों के प्रयासों में वर्ष 2018-19 से लेकर अब तक सहयोग करती रही है. इस दौरान केंद्र की ओर से पंजाब को 1681.45 करोड़ रुपये, हरियाणा को 1081.71 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 763.67 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को 6.05 करोड़ रुपये और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को 83.68 करोड़ रुपये की धनराशि दी गई है. केंद्र ने तीन लाख से अधिक मशीनों का वितरण किया है और फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के 41,000 से अधिक कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) बनाए हैं.
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