हीटवेव से जूझ रही बिहार की राजधानी पटना, लोग बोले, अगर नहीं होती पेड़ों की कटाई तो मिलता सुकून

हीटवेव से जूझ रही बिहार की राजधानी पटना, लोग बोले, अगर नहीं होती पेड़ों की कटाई तो मिलता सुकून

बिहार में बढ़ रहा है गर्मी का पारा. स्थानीय लोगों का कहना हैं कि पहले जैसे राजधानी पटना में पेड़ों की संख्या नहीं है. पाटलिपुत्र का नाम भी पाटली पेड़ की वजह से पड़ा था. 

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हीटवेव से जूझ रही बिहार की राजधानी पटना, लोग बोले, अगर नहीं होती पेड़ों की कटाई तो मिलता सुकून बिहार में बढ़ रहा है गर्मी का पारा. स्थानीय लोगों का कहना हैं कि पहले जैसे राजधानी पटना में पेड़ों की संख्या नहीं है.

पटना के गांधी मैदान ने बिहार के हर बदलते रंग रूप देखे हैं. यह वह जगह है जहां कभी गर्मी में तापमान चालीस डिग्री सेल्सियय के पार नहीं जाता था. उस दौर में लोग भरी गर्मी से बचने के लिए दोपहर में भी गांधी मैदान में पेड़ों के नीचे बैठा करते थे. लेकिन बदलते समय के साथ शहर के लोग अब गर्मी में 44 से 45 डिग्री तापमान का सामना करने के लिए मजबूर हैं. पेड़ गर्मी से बचने का बेहतर जरिया हुआ करते थे. अब विकास के नाम पर ये पेड़ गायब हो रहे हैं और लोगों को एसी और कूलर का सहारा लेना पड़ रहा है.   

गांधी मैदान के बाहर चना सत्तू के शरबत का आनंद लेते हुए अरविंद कहते हैं कि शहर में जिस रफ्तार से सड़क,फ्लाईओवर, भवन निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई हुई है, उस स्‍पीड से पेड़ नहीं लगाए गए हैं. आज शहर के ऐसे कई इलाके हैं जहां कभी पेड़ों की संख्या बहुत थी लेकिन सड़कों के चौड़ीकरण के लिए पेड़ों की बेरहमी से कटाई हुई. पेड़ काटे तो गए लेकिन उन्‍हें लगाने से परहेज किया गया. साथ ही बेहतर प्रबंधन नहीं होने से अब पेड़ों की संख्या बहुत कम रह गई है.  राज्य सरकार हर साल चार करोड़ के आसपास पेड़ लगाती है. इसमें आम लोगों की भागीदार न के बराबर है और इसलिए स्थिति काफी खराब होती जा रही है.  

 पेड़ों की बेहतर प्रबंधन नहीं होने से संख्या हो रही कम
पेड़ों की बेहतर प्रबंधन नहीं होने से संख्या हो रही कम

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में पेड़ों की संख्या अच्छी-खासी होती तो तापमान का ग्राफ इस स्थिति में नहीं होता और बारिश भी अच्‍छी होती. पटना आईसीएआर पूर्वी अनुसंधान के वैज्ञानिक डॉ तन्मय बताते हैं कि शहर में ग्रीन जोन बनाने की जरूरत है. इससे शहर में हरियाली बढ़ेगी. 

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कभी पेड़ों के छांव में होती थी यात्रा  

बिहीटा के रहने वाले जी.एन शर्मा कहते हैं कि अस्सी के दशक में गांधी मैदान में बहुत पेड़ हुआ करते थे. अगर तुलना की जाए तो आज इनकी संख्‍या आधे से भी कम है. कभी बिहीटा से पटना आने के रास्‍ते में सड़क के दोनों ओर बहुत पेड़ हुआ करते थे. उनकी छांव में ही पटना तक चले आते थे. लेकिन आज सड़क के किनारे एक या दो पेड़ से ज्‍यादा नहीं दिखेंगे. शहर,गांव के विकास के नाम पेड़ों की कटाई जमकर हुई है. लोगों ने अपनी जेब तो खूब भरी लेकिन प्रकृति के लिए जो ईमानदारी होनी चाहिए वह दिखा नहीं पाए. 

आज से 24 साल पहले यूपी की राजधानी लखनऊ से पटना आए धर्मदेव यादव कहते हैं कि जब वह पहली बार इस शहर में आए तो यह पेड़ों का शहर लगा.पूरे शहर में सौ साल से ज्‍यादा पुराने पेड़ भी दिखाई दे रहे थे. वहीं आज सड़क,अपार्टमेंट बनने से शहर की हरियाली ही खत्म हो चुकी है. 

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चार करोड़ से ज्‍यादा पेड़ लगाने का लक्ष्य

हरियाली लौटाने के लिए बिहार सरकार की तरफ से बड़े पैमाने पर जल जीवन हरियाली योजना के तहत पेड़ लगाए जा रहें है. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की सचिव वंदना प्रेयसी कहती हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष में चार करोड़ पेड़ लगाए गए थे. इस साल करीब 4 करोड़ 28 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य है. औसतन अस्सी प्रतिशत पेड़ ही बच पाते हैं. इसके साथ ही राज्य के बाकी विभागों के साथ मिलकर भी पेड़ लगाने का काम किया जा रहा है ताकि राज्य में हरियाली बढ़े. 

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