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Success Story: इस जल योद्धा के चलते खेती में आई बड़ी क्रांति, बुंदेलखंड की सुधर गई पहचान

Success Story: इस जल योद्धा के चलते खेती में आई बड़ी क्रांति, बुंदेलखंड की सुधर गई पहचान

उमा शंकर पांडेय ने बुंदेलखंड के लिए "खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़" अभियान को जमीन पर उतारा ही नहीं बल्कि गांव से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी दिलाई. इसके लिए सरकार ने उन्हें 2023 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. उमा शंकर पांडेय ने पूरे बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने में बड़ा रोल निभाया है.

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बुंदेलखंड कभी बेरोजगारी, पिछड़ेपन, गरीबी और अपराध के चलते पहचाना जाता था. लेकिन आज पूरा इलाका खेती में नई इबारत लिख रहा है. बुंदेलखंड में पानी का महत्व दूसरी जगहों से बढ़कर रहा है. गर्मी के दिनों में यहां के लोग ही नहीं बल्कि पशु और पक्षी भी पानी की कमी के चलते प्यासे रह जाते थे. यहां खेतों में बारिश का पानी का भी संरक्षण नहीं होता था जिसके चलते हर साल गर्मी के दिनों में लोग प्यासे रहने को मजबूर होते थे. इसी समस्या  को बचपन से ही बांदा के जखनी गांव के रहने वाले उमाशंकर पांडे ने महसूस किया. फिर जल संरक्षण के लिए 25 सालों तक दिन-रात प्रयास किया. जल संरक्षण परंपरागत विधि के बिना कामयाब नहीं हो सकता था. उन्होंने बुंदेलखंड के लिए "खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़" अभियान को जमीन पर उतारा जिसे गांव से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए सरकार ने उन्हें चुना है. 2023 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

बुंदेलखंड में अब पानी मालगाड़ी की जरूरत नहीं

पद्मश्री से सम्मानित उमा शंकर पांडे ने किसान तक को बताया कि एक समय ऐसा आया कि जब मालगाड़ी से बुंदेलखंड में पानी लाया जाने लगा था. लेकिन बुंदेलखंड हमेशा से ऐसा नहीं था. यहां भी पानी था, लेकिन हम पानी को संरक्षित नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि हमारी परंपरागत जल संरक्षण की विधियां आज भी कारगर हैं और हमने भी वही तरीका अपनाया. हमने 'खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़'  लगाकर जल को संरक्षित करने का काम किया. इससे पानी की समस्या से जूझते हुए गांव में अब भीषण गर्मी में भी कोई समस्या नहीं होती है. उन्होंने जल संरक्षण के परंपरागत तकनीक को अपनाया. उनके इस अभियान से बारिश के पानी का भी संरक्षण होने लगा.

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पद्मश्री से सम्मानित उमाशंकर पांडे ने किसान तक को बताया कि शुरुआत के दिनों में उन्हें लोगों को साथ लेने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. गर्मी के 4 महीने में लोगों को घरों से दूर से पानी लाना पड़ता था. कुएं और तालाब इन दिनों सूख जाते थे, लेकिन उनके प्रयास से गांव के लोगों की मदद से खेतों में मेड़ बना कर गांव के पानी को गांव में ही रोक दिया. इसके चलते भीषण गर्मी के दिन में भी कुएं में चार से पांच फीट में ही पानी मिलने लगा. कई गांव में यही तरीका अपनाया गया और फिर जल संरक्षण के लिए उनकी इस मुहिम को सरकार ने भी सम्मान दिया.

आज बुंदेलखंड की स्थिति बिल्कुल बदल गई है. यहां धन और गेहूं की पैदावार खूब हो रही है. यहां तक कि यहां के कई जिलों में बासमती चावल की पैदावार भी होने लगी है. सरकारी खरीद केंद्र में इस बार हजारों टन गेहूं और चावल की बिक्री हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात में बुंदेलखंड का खास जिक्र किया है.

उमाशंकर पांडे को जल क्रांति के लिए मिले ये सम्मान 

जल संरक्षण की परंपरागत तरीके को अपनाने के चलते आज बुंदेलखंड की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके कार्यों को न सिर्फ सराहा बल्कि उन्हें पद्मश्री के सम्मान के लिए चुना. जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल योद्धा सम्मान से भी उमाशंकर पांडे को नवाजा. हर खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ के इस तरीके को आज हर गांव के किसान अपना रहे हैं जिससे उनके खेतों की फसल अब लहलहाने लगी है. उमाशंकर पांडेय पिछले 25 वर्षों से पेड़ लगाओ पानी बचाओ का नारा लगा रहे हैं. उनके इस नारे के चलते चित्रकूट के खेतों में अब बासमती की फसल होने लगी है.