कुछ अच्छा करने का दृढ़ निश्चय हो तो अपने काम में जरूर कामयाबी मिलती है. कुछ ऐसी ही कामयाबी की कहानी ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के चंद्रशेखर मन्ना की है. चंद्रशेखर मन्ना लगभग एक दशक तक केंद्रपाड़ा के तटीय भितरकनिका क्षेत्र में ओलिव रिडले कछुओं की रखवाली करते रहे. अचानक एक दिन बदमाशों ने उनकी गश्ती नाव डुबो दी, जिससे उन्हें चौकीदार की नौकरी छोड़कर ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के राजनगर प्रखंड के जुनुसनगर गांव में अपने घर लौटना पड़ा. फिर उन्हें खेती में हाथ आजमाना पड़ा. हालांकि इससे पहले उन्हें किसी तरह का तजुर्बा नहीं था. मगर पहली बार में ही उन्हें खेती की ओर रुख करके एक नई दिशा मिली, जहां उन्होंने अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण किया और अपने गांव में कई लोगों के लिए रोज़गार पैदा किया.
एक छोटे किसान अशोक मन्ना के घर जन्मे चंद्रशेखर मैट्रिक की परीक्षा भी पास नहीं कर पाए. 2005 में, उन्हें गहिरमाथा में घोंसले बनाने वाले ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने वाले एक संगठन के ज़रिए चौकीदार की नौकरी मिल गई. उनकी शिफ्ट 12 घंटे की होती थी, जिससे उन्हें हर महीने सिर्फ 8,000-10,000 रुपये मिलते थे.
वह नौ साल तक चौकीदार के तौर पर काम करते रहे. 2014 में, जब वह वन विभाग के साथ समुद्र में गश्त कर रहे थे, तो कुछ बदमाशों ने अवैध रूप से मछली पकड़ते पकड़े जाने का बदला लेने के लिए जानबूझकर उनकी नाव डुबो दी. उसी दिन, चंद्रशेखर ने नौकरी छोड़ दी और घर लौट आए.
भविष्य में ज्यादा विकल्प न होने के कारण, उन्होंने खेती को गंभीरता से लेने का फैसला किया. उन्होंने एक स्थानीय राष्ट्रीय बैंक से 70,000 रुपये उधार लिए और अपनी जमीन समतल करने, जरूरी उपकरण और खाद खरीदने में लगा दिए.
2014 से उन्होंने पूरा ध्यान खेती पर लगाया और अब वे अपनी 3.5 एकड़ जमीन पर कई तरह की फसलें उगाते हैं. वे कहते हैं, "मैं टमाटर, बैंगन, भिंडी, करेला, खीरा और मिर्च जैसी सब्ज़ियां, ड्रैगन फ्रूट, एप्पल बेरी, अमरूद, आम जैसे फल और धान, दालें और मूंग जैसी फसलें उगाता हूं. इसके अलावा, मैं गाय, मुर्गी और बत्तख पालता हूं और साथ ही मछली पालन भी करता हूं."
कभी कछुए की रखवाली करने वाले चंद्रशेखर मन्ना आज सफल किसान बन गए हैं, जो खेती से सालाना 5-6 लाख रुपये कमाते हैं और अपने पिता, माता, पत्नी और छोटे भाई का पेट पालते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या उसकी आय उसके परिवार की जरूरतों को पूरा करती है, वे कहते हैं, "मैं मासिक नहीं, बल्कि सालाना कमाता हूं. सारे खर्चे निकालने के बाद भी मैं अच्छी-खासी रकम बचा लेता हूं."
उनकी पत्नी उत्स्य मन्ना ने 'ईटीवी भारत' से कहा, "बाबू (मेरे पति) सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक काम करते हैं. पहले जब वह 10,000 रुपये प्रति माह कमाते थे, तब कुछ दिक्कतें थीं. अब आमदनी अच्छी है. हमारी सफलता देखकर गांव के अन्य लोगों ने भी खेती शुरू कर दी है."
चंद्रशेखर की सब्ज़ियों की स्थानीय स्तर पर भारी मांग है. हरिपुर के एक विक्रेता खगेश्वर राउत, जो उनसे सब्ज़ियां खरीदते हैं, कहते हैं, "मुझे उनसे लगभग हर सब्ज़ी और फल मिल जाता है, खीरे से लेकर भिंडी, आम, ड्रैगन फ्रूट तक. यहां, दाम बाजार से अपेक्षाकृत कम हैं. हमें जो सब्ज़ियां मिलती हैं, वे ताज़ी होती हैं और मेरे जैसे कई व्यापारी सीधे उनके घर से ही खरीदते हैं."
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