इंडिया टुडे ग्रुप के डिजिटल चैनल किसान तक का उद्घाटन मंगलवार को नई दिल्ली में किया गया. इसके लिए किसान तक समिट का आयोजन किया गया. इसका उद्घाटन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने किया. इस समिट में बदलेगी हवा-पद्मश्री किसान सेशन का आयोजन किया गया. इसमें किसान चाची के नाम से मशहूर बिहार की राजकुमारी देवी ने बताया कि कैसे उन्होंने खेती की जिसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
किसान तक समिट में किसान चाची ने कहा कि खेती से ही हमारी गरीबी दूर हुई है. 1990 से ही वे खेती कर रही हैं, लेकिन पूसा कृषि संस्थान से बीज लेकर आए और नए तरीके से खेती शुरू की. किसान चाची ने कहा, मेरे पति पढ़े-लिखे नहीं थे और वे खैनी बेचते थे. लेकिन हमने सब्जी की खेती शुरू की और उसमें अच्छा मुनाफा कमाया. पूसा से बीज लाकर सब्जियों की खेती शुरू की.
किसान चाची ने कहा कि आज किसानों में एकता नहीं है. अगर एकता रहती तो हमारी उपज का दाम सरकार तय नहीं करती बल्कि हम खुद तय करते क्योंकि हमलोग ही उत्पादन करते हैं. खेती-बाड़ी में किसान चाची ने अपने संघर्ष की पूरी कहानी बताई.
मौजूदा वक्त में बहुत सारी महिला किसान आधुनिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं और अन्य महिला किसानों के लिए नजीर पेश कर रही हैं. उन्हीं महिला किसानों में से एक पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी राज कुमारी देवी उर्फ किसान चाची भी हैं. बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली राज कुमारी देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. नाम तो राजकुमारी देवी है, लेकिन देश इन्हें किसान चाची के नाम से जानता है. राजकुमारी देवी ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर गृहस्ती को चलाने के लिए सबसे पहले खेती करना शुरू किया, फिर अपने से उपजाए कृषि फसलों जैसे- ओल, आम, नींबू, और कटहल आदि का आचार बनाकर स्थानीय बाजारों में बिक्री शुरू कर दी.
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अब इनका ब्रांड ‘किसान चाची’ अचार की बोतलों से घर-घर पहुंच रहा है. खेत से पद्मश्री मिलने तक का उनका ये सफर बेहद ही दिलचस्प रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं उनके सफलता की कहानी-
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में सरैया ब्लॉक से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर उनका गांव सरैया बसा हुआ है, जहां से कभी उन्होंने सामाजिक बंधन की खिलाफत करते हुए अपनी जमीन पर खेती करने का निश्चय किया और समाज और परिवार के सारे लोगों के विरोध के बाद भी वो नहीं रुकीं. पहले तो परंपरागत तरीके से खेती करते हुए वैज्ञानिक तरीके को अपनाकर अपनी खेती-बाड़ी को उन्नत किया. इसके बाद राज कुमारी देवी उर्फ किसान चाची ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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एक कहावत है कि इतिहास वहीं लोग लिखते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं. खुद को स्वावलंबी बनाने के बाद उन्होंने अन्य महिलाओं को भी स्वाबलंबी बनाना शुरू किया और शुरुआती दौर में आस-पास की महिलाओं के साथ जुड़कर आम, बेल, नींबू और आंवला आदि के आचार को बाजार में बेचना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे समूह में महिलाओं और उनका क्षेत्र बढ़ता चला गया.
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कृषि क्षेत्र में पहल और योगदान देने के लिए उन्हें कई बार सामाजिक संगठनों के अलावा राज्य और केंद्र सरकार से भी सम्मानित किया गया और पद्मश्री तक मिला. पद्मश्री मिलने पर उन्होंने बताया कि ये सम्मान उन लोगों को जवाब है, जो महिलाओं को कमजोर समझते हैं और ये सोचते हैं कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले हर काम नहीं कर सकती हैं. इतना ही नहीं, किसान चाची के साथ काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि परिवार चलाना मुश्किल था. पति खेती और मजदूरी करते थे, हमलोगों ने किसान चाची के साथ काम शुरू किया अब अच्छी आमदनी हो रही है.
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