Kisan Tak Summit: पारंपरिक खेती छोड़ बेबी कॉर्न की खेती कर बनाई पहचान, पद्मश्री पुरस्कार से किए गए सम्मानित

Kisan Tak Summit: पारंपरिक खेती छोड़ बेबी कॉर्न की खेती कर बनाई पहचान, पद्मश्री पुरस्कार से किए गए सम्मानित

कंवल सिंह चौहान, जोकि पेशे से एक प्रगतिशील किसान हैं. कृषि क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है. कंवल सिंह पारंपरिक खेती को छोड़ते हुए बेबी कॉर्न की खेती करने लगे जिस वजह से उन्हें ना सिर्फ शानदार मुनाफा हुआ, बल्कि आज के समय में लोग उन्हें फादर ऑफ बेबी कॉर्न कहने लगे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं किसान तक समिट में उन्होंने क्या कुछ कहा-

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Kisan Tak Summit: पारंपरिक खेती छोड़ बेबी कॉर्न की खेती कर बनाई पहचान, पद्मश्री पुरस्कार से किए गए सम्मानितकिसान तक समिट में कंवल सिंह चौहान

कंवल सिंह चौहान ने नई दिल्ली में आयोजित किसान तक समिट में खेती-किसानी के बारे में विस्तार से बात की. किसान तक इंडिया टुडे ग्रुप का डिजिटल चैनल है जिसका उद्घाटन मंगलवार को नई दिल्ली में किया गया. इसका उद्घाटन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने किया. कंवल सिंह चौहान ने बताया कि मैंने 1980 में बासमती धान की खेती करनी शुरू की और उसमें अच्छी आमदनी हुई. धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में बासमती धान की खेती फैल गई. 1985 में धान में झुलसा रोग की समस्या होने लगी. मुझे ऐसा एहसास हुआ कि हम गलत रास्ते पर चल रहे हैं. ज्यादा रसायनों की वजह से हम घाटे में जा रहे हैं. फिर मैंने जैविक खेती करने की शुरुआत की. उसके बाद बासमती धान की प्रोसेसिंग की शुरुआत की, लेकिन सफलता नहीं मिली. 1988 में पता चला कि बेबी कॉर्न की खेती होती है. फिर मैंने इसकी खेती शुरू की. ऐसे में आइए जानते हैं कंवल सिंह चौहान की सफलता की कहानी- 

कहते हैं कि इरादे बुलंद हों तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है सोनीपत जिले के ग्राम अटेरना के निवासी कंवल सिंह चौहान ने, जोकि पेशे से एक प्रगतिशील किसान हैं. कृषि क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है. इन्होंने अपने आसपास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी लाई जिस वजह से आज ना सिर्फ कंवल सिंह बल्कि उनका पूरा गांव दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन चुका है. कंवल सिंह पारंपरिक खेती को छोड़ते हुए बेबी कॉर्न की खेती करने लगे जिस वजह से उन्हें ना सिर्फ शानदार मुनाफा हुआ, बल्कि आज के समय में लोग उन्हें फादर ऑफ बेबी कॉर्न कहने लगे हैं. बेबी कॉर्न की खेती से उन्हें कई गुना अधिक फायदा हुआ. कंवल सिंह के मुताबिक, यह फायदा धान और गेहूं की खेती से भी अधिक था. जो उन्हें स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न और मशरूम की खेती शुरू करने और खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया.

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कंवल सिंह चौहान 200 लोगों को दे रहें रोजगार

1998 में कंवल सिंह ने पारंपरिक खेती को छोड़कर सबसे पहले मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती शुरू करने का फैसला किया और उनका यह फैसला सफल रहा. दोनों फसलों से अच्छा मुनाफा हुआ. इसके बाद वे क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए. पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कंवल सिंह चौहान ने किसान तक से बात करते हुए कहा कि वह 15 साल की उम्र से खेती कर रहे हैं. वह घर में सबसे बड़े थे और छोटी उम्र में ही पिता का साथ छूट गया. जिस वजह से घर की जिम्मेदारी उन पर आ गई. एक समय था जब वे कर्ज में डूबे किसान थे, लेकिन आज वे एक प्रगतिशील किसान के रूप में उभरे हैं और लगभग 200 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान कर रहे हैं. वर्ष 1998 में कंवल सिंह ने सबसे पहले पारंपरिक खेती यानि बासमती धान ओर गेहूं की खेती छोड़कर मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती शुरू करने का फैसला लिया. उनका यह फैसला ना केवल सफल रहा बल्कि पद्मश्री पुरस्कार के करीब भी लेकर गया. जिसके बाद वे क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए.

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खेतों से ही किया जाता है प्रसंस्करण का काम

कंवल सिंह का कहना है कि जब गांव में बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न का उत्पादन बढ़ा तो किसानों को बाजार में दिक्कत न हो, इसलिए कंवल सिंह ने साल 2009 में फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की. जिसकी मदद से किसान मक्का, स्वीट कॉर्न, बटन मशरूम को खेतों से ही पैक कर बाजारों में भेजने लगे. इस इकाई की सहायता से प्रतिदिन लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न एवं अन्य उत्पादों का इंग्लैंड एवं अमेरिका निर्यात किया जाने लगा. जिसका फायदा सीधे तौर पर किसानों को मिलने लगा. कंवल सिंह का कहना है कि आज देश के युवाओं को खेती में आगे आना चाहिए और इसे व्यवसाय के रूप में लेना चाहिए, जैसा कि वे कर रहे हैं. किसान को अपने खेत से निकलने वाले उत्पादों का प्रसंस्करण शुरू करना चाहिए और इसके लिए वह किसान समूह बनाकर शुरुआत कर सकते हैं.

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