एक फैसले से चनन सिंह बन गए असली हीरो पंजाब के किसानों को अक्सर ही पराली के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन जब यही किसान कुछ अलग करते हैं तो उनकी चर्चा भी लाजिमी हो जाती है. यहां के तरनतारन जिले के एक ऐसे ही किसान हैं जिन्होंने पराली से अपनी खेती की पूरी सूरत बदलकर रख दी है. चनन सिंह स्रा ने यह साबित कर दिया है कि अगर खेती को सही प्लानिंग, नए ख्याल और लगन के साथ किया जाए, तो यह न सिर्फ टिकाऊ बल्कि बेहद फायदेमंद भी हो सकती है. जहां बाकी किसान पराली जलाने में यकीन करते हैं, चनन सिंह ने एक दशक से ज्यादा समय से इसे बंद किया हुआ है. वहीं पारंपरिक धान-गेहूं की पारंपरिक खेती से हटकर उन्होंने मल्टीक्रॉप सिस्टम को अपनाया है. इसमें राज्य की दो मुख्य फसलों के साथ-साथ वे रबी सीजन में शलजम, गाजर और मूली जैसी उच्च मूल्य वाली सब्जियां भी उगाते हैं.
जहां अधिकांश किसान धान के बाद गेहूं की बुवाई करते हैं, वहीं स्रा ने रबी मौसम में अपनी 28 एकड़ जमीन पर नकदी फसलें उगाकर विविधता लाई है. उनके इस प्रयोग का शानदार नतीजा भी उन्हें मिला है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चनन सिंह सितंबर के मध्य से जनवरी के अंत तक सिर्फ इन तीन फसलों से करीब 46–47 लाख रुपये की आमदनी कर लेते हैं. इससे उन्हें न केवल आर्थिक लाभ होता है और पर्यावरण में सुधार होता है.
कुल 50 एकड़ कृषि भूमि (15 एकड़ अपनी और 35 एकड़ पट्टे पर) में इस सीजन उन्होंने 20 एकड़ में गाजर, 6 एकड़ में शलजम और 2 एकड़ में मूली की खेती की. उनकी तीनों फसली सीजन, खरीफ, रबी और बसंत के दौरान सालाना बिक्री 1.3 से 1.4 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है. मौसम और बाजार की स्थिति के अनुसार उनका शुद्ध मुनाफा 35 से 40 प्रतिशत तक रहता है. स्रा PR-126 धान (कम अवधि वाली किस्म) की खेती मुख्य रूप से डीएसआर तकनीक (Direct Seeding of Rice) से करते हैं, जिससे करीब 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है. इसके साथ ही वे मूंग जैसी दलहनी फसलें भी उगाते हैं. उन्होंने अपने क्षेत्र के करीब 50 से 60 किसानों को भी डीएसआर तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया है.
चनन सिंह की उम्र सिर्फ 33 साल है और इस उम्र में वह अपने से ज्यादा अनुभवी किसानों के लिए नसीहत बन सकते हैं. उन्होंने ने साल 2013 में एक ऐसा फैसला किया जिसे बहुत कम लोगों ने सपोर्ट किया था. उन्होंने धान की पराली और अन्य फसल अवशेषों को जलाना बंद कर दिया. उन्होंने उस दिन को याद किया और बताया, 'लोगों ने कहा कि इससे खर्च बढ़ जाएगा लेकिन 12 साल बाद मेरी मिट्टी खुद सबूत है कि यह फैसला सही था.' अब उनकी जमीन की ऑर्गेनिक क्वालिटी 0.25–0.75 प्रतिशत (जो पंजाब का औसत है) से बढ़कर 1.2 प्रतिशत हो गई है, जो एक उल्लेखनीय सुधार है.
उनकी मिट्टी का pH स्तर 6.5 से 7 के बीच संतुलित बना रहता है, और उन्हें पहले की तुलना में 30–35 प्रतिशत कम उर्वरक की जरूरत पड़ती है. उनका कहना है कि जब आप मिट्टी को ठीक करते हैं, तो बाकी सब अपने आप ठीक हो जाता है, प्रॉफिट, उत्पादन और मन की शांति. वह गर्व से वे बताते हैं, 'जब से मैंने पराली जलाना छोड़ा है, मिट्टी का रंग गहरा हो गया है, वह मुलायम हो गई है और उसमें फिर से केंचुए भर गए हैं.' अपने इनोवेटिव और टिकाऊ खेती के तरीकों के लिए चनन सिंह को ICAR, पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU) और जिला कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से कई पुरस्कार मिल चुके हैं। हाल ही में उन्हें सब्जी उत्पादन में उत्कृष्टता के लिए ‘उजागर सिंह ढालीवाल मेमोरियल अवॉर्ड 2025’ से सम्मानित किया गया.
वह हर साल तीन मौसमी चक्रों में खेती करते हैं. ऐसा करके वह अलग-अलग फसलें उगाकर मिट्टी की सेहत बनाए रखते हैं और साथ ही इनकम का एक स्थिर स्रोत भी सुनिश्चित करते हैं. कुल भूमि के सिर्फ 56 प्रतिशत हिस्से पर और तीन में से सिर्फ एक फसली सीजन में ये सब्जियां उगाने के बावजूद, इन्हीं से उन्हें सबसे अधिक मुनाफा होता है. चनन सिंह इन तीनों फसलों की बुवाई 20 सितंबर से अक्टूबर के पहले सप्ताह के बीच कर लेते हैं. शलजम और मूली की कटाई नवंबर के अंत तक शुरू हो जाती है, जबकि गाजर दिसंबर की शुरुआत में आने लगती है और जनवरी के अंत तक चलती है. उनका लक्ष्य यही रहता है कि बाजार में ज्यादा माल आने से पहले ही वह फसल निकाल लें ताकि कीमतें गिरने से बचा जा सके.
वह अपनी पूरी 50 एकड़ जमीन पर गेहूं उगाने के बजाय सिर्फ केवल 12 एकड़ में गेहूं की खेती करते हैं. इनमें से 5 एकड़ पर वे अपने नियमित ग्राहकों के लिए ऑर्गेनिक या प्राकृतिक खेती करते हैं, जबकि बाकी जमीन पर पारंपरिक तरीके से गेहूं बोया जाता है. आर्ट्स में ग्रेजुएट इस किसान ने साल 2010 में कॉलेज के दिनों में ही पूर्णकालिक खेती शुरू की थी. किसान परिवार से होने के बावजूद, उन्होंने पंजाब की मिट्टी को लगातार कमजोर करने वाले गेहूं-धान के चक्र से निकलने का निश्चय किया.
उन्होंने अपनी खुद की गाजर की एक किस्म विकसित की है जिसका नाम है ‘साहिब रेड सीड. इसे कई सालों के अनुभव और स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से सुधार करके तैयार किया गया है. चनन सिंह के अनुसार इसकी क्वालिटी बेहतरीन है. खरीदार उनकी फसल सीधे खेत से खरीदते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि अब उनकी यह बीज किस्म अन्य किसानों में भी काफी लोकप्रिय हो रही है. इसके अलावा वह पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU) द्वारा विकसित कुछ किस्में भी उगाते हैं.
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