यूपी में गोरखपुर जिले की गगहा तहसील में नर्रे गांव के निवासी दिवाकर चंद की पहचान खेती में नित नए प्रयोग करने वाले प्रगतिशील किसान की है. पिछले 4 दशक से उन्होंने खेती में पुरातन और आधुनिक, दोनों तरीके अपनाकर कृषि के कुशल प्रबंधन का नया अध्याय लिखा है. नतीजतन 3 एकड़ जमीन पर खेती करने से शुरू हुई दिवाकर चंद की कृषि यात्रा आज 30 एकड़ तक पहुंच गई है. इस दौरान उन्होंने नई पीढ़ी को आधुनिक कृषि यंत्र अपनाने की नसीहत देते हुए बुआई करने वाली मशीन हैप्पी सीडर से लेकर लेजर लैंड लेवलर तक को अपने फार्म मशीनरी बैंक का हिस्सा बना लिया है. उन्होंने परंपरागत खेती को आधुनिक तरीके से करने की नजीर अन्य किसानों के समक्ष पेश की है.
दिवाकर ने बताया कि वह करीब 4 दशक से खेती कर रहे है. शुरू में तीन भाइयों के संयुक्त परिवार का भरणपोषण मात्र 7 एकड़ खेती से होता था. इसमें से 3 एकड़ जमीन पर उन्होंने खेती के आधुनिक संसाधन जुटाते हुए रसायन मुक्त खेती के प्रयोग किए. मशीनों के इस्तेमाल से श्रम और समय की बचत कर प्राकृतिक खेती में उपज को बढ़ाया. इससे प्राकृतिक या जैविक खेती में उपज कम होने का मिथक टूटा.
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गेहूं और धान की खेती करते हुए उन्होंने बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए परिवार की जरूरत पूरी करने लायक सब्जी, दलहन एवं तिलहन आदि का उत्पादन भी अपने खेत पर ही शुरू कर दिया. इसके साथ ही खाद, बीज, सिंचाई और ऊर्जा संबंधी जरूरतें भी बाजार से जुटाने के बजाय खेत से ही इनकी आपूर्ति के उपाय किए. इससे न केवल खेती की लागत कम हुई बल्कि परिवार के खर्चों में भारी कटौती होने के साथ उपज बढ़ने से, वही खेती मुनाफे का सौदा बन गई जो कल तक सिर्फ घाटा ही देती थी. नतीजतन अब वह 30 एकड़ जमीन पर खेती से समृद्ध होने की नजीर बन गए हैं.
दिवाकर ने कहा कि उन्होंने खेती में अपनी जरूरत के संसाधन जुटाने में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से कभी परहेज नहीं किया. खेती में यंत्रीकरण को अनिवार्य मानने वाले दिवाकर ने बताया कि उन्होंने जमीन को लेजर तकनीक से समतल करने और खाद के साथ बीज की बुआई करने वाले तमाम कृषि यंत्र, सरकारी सब्सिडी की मदद से ही जुटाए. ऊबड़ खाबड़ खेतों को लैंड लेवलर से समतल बनाकर, हैप्पी सीडर से खाद के साथ बीजों को एक समान दूरी पर कतारबद्ध तरीके से बो कर न सिर्फ समय और संसाधन बचाए, बल्कि लागत को भी कम किया.
ऐसा करके 56 वर्षीय दिनकर ने अपने खेतों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर खेती को मुनाफे का सौदा बना लिया. इसके अलावा उन्होंने कम लागत पर ज्यादा जमीन की सिंचाई करने के लिए एचडी पाइप का इस्तेमाल कर पानी और पैसे की बचत की. साथ ही अपनी उपज की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाया.
दिवाकर इसे मिथक मानते हैं कि गेहूं और धान की पारंपरिक खेती, भूजल के लिए खतरा है. उन्होंने आधुनिक कृषि यंत्रों के साथ गेहूं और धान का बेहतर उत्पादन करके इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है. अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने कहा कि फसल के अनुरूप खेत तैयार करें, बोआई के लिए एग्रो क्लाइमेटिक जोन यानि कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुरूप फसल की उन्नत प्रजातियों का चयन करें और समय-समय पर कीट एवं रोग से बचाने के लिए फसल संरक्षा के जरूरी गैर रासायनिक उपाय करें, खेत में एक साल के अंतराल पर हरी खाद एवं भूमि में कार्बनिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए ढैंचे की बुआई करें और गोबर की खाद डालें. ऐसा करने से अच्छी उपज लेने में पानी और ऊर्जा सहित सभी संसाधनों की काफी बचत होती है. इससे उत्पादन लागत में उल्लेखनीय गिरावट आने से मुनाफा स्वत: बढ़ता है. खाद, बीज और पानी सहित अन्य जरूरी संसाधनों को जुटाने के मामले में दिवाकर आत्मनिर्भर हैं. वह खाद और दवाओं आदि की पूर्ति, गौ पालन एवं देसी स्थानीय पेड़ तथा बागवानी से करते हैं.
उनका दावा है कि खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए किसान को बाजार पर निर्भर रखने वाली रासायनिक खेती के बजाए प्राकृतिक खेती को अपनाना जरूरी है. सिर्फ खेती के जरूरी यंत्रों के लिए सरकार और बाजार की जरूरत होती है. इसके अलावा खेती के अन्य सभी संसाधनों के लिए किसान को आत्मनिर्भर होना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की आत्मनिर्भरता के लिए गौ पालन एवं बागवानी अपरिहार्य है. वह खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमेशा कम से कम 4 गाय पालते रहे हैं. इससे परिवार के लिए दुग्ध उत्पादों की पूर्ति होने के साथ उर्वरक एवं दवा आदि की जरूरत भी पूरी होती है.
किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के प्रयासों को सही बताते हुए दिवाकर ने कहा कि प्राकृतिक तरीके अपना कर श्रम की लागत घटा कर आय दोगुनी करना संभव है. इसके लिए न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन लेना भी मुमकिन है. उन्होने कहा कि खेती की आज सबसे बड़ी समस्या श्रमिकों की कमी होना है. एक तो ये उपलब्ध नहीं हैं और जहां उपलब्ध हैं, वहां महंगे हैं.
बकौल दिवाकर, आधुनिक कृषि यंत्र इस समस्या का आसान समाधान है. अच्छी बात यह है कि सरकार की तमाम योजनाओं के मार्फत अनुदान पर मिल रहे कृषि यंत्र जुटा कर किसान श्रमिकों की समस्या का हल खोज सकते हैं. मसलन, बुआई के लिए वह हैप्पी सीडर द्वारा एक घन्टे में एक एकड़ खेत की बुआई कर लेते हैं. इसी यंत्र से खाद भी देने का काम हो जाता है और कंपाइन मशीन ने अब फसलों की कटाई को भी आसान कर दिया है.
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दिनकर का कहना है कि परिश्रम और प्रबंधन के बलबूते उन्होंने अपने खेतों को इस प्रकार बना लिया है कि गेहूं धान और अन्य फसलों से अब उन्हें प्रति एकड़ औसतन 1 लाख रुपये की सालाना आय हो जाती है. इसी आय के बलबूते वह 3 एकड़ से शुरुआत कर आज 30 एकड़ खेत के काश्तकार बन गए हैं.
वह बताते हैं कि ख़रीफ सीजन में उनके 15 एकड़ रकबे में धान और रबी सीजन में 30 एकड़ में गेंहू की खेती होती है. वह सब्जी, दलहन एवं तिलहन की खेती अपनी पारिवारिक जरूरतें पूरी करने के लिए करते हैं. उनका कहना है कि खेती से उनकी आय का मूल साधन गेहूं और धान ही है.
उनका कहना है कि वह अपने खेतों से गेंहू की प्रति एकड़ औसत उपज करीब 22 कुंतल और धान की प्रति एकड़ औसत उपज 20 से 25 कुंतल तक कर लेते हैं. इस प्रकार साल में एक एकड़ खेत से उनकी करीब 1 लाख रुपये की आय आसानी से हो जाती है.
खेती में नवाचार पर यकीन करने वाले दिवाकर का इरादा अब बागवानी खेती को विस्तार देने का है. समय की मांग के मुताबिक वह परंपरागत खेती में भी नए प्रयोग करने के क्रम में अब चीकू और हल्दी की खेती को बढ़ाएंगे. उन्होंने बताया कि अब वह अपनी परंपरागत खेती में विविधता लाने के लिए बागवानी पर जोर देंगे.
इसके लिए उन्होंने फलों में चीकू और सब्जियों में हल्दी की खेती करने का फैसला किया है. इससे दोहरे लाभ की संभावना जताते हुए उन्होंने कहा कि बागवानी से अतिरिक्त आय होगी और खेतों की मिट्टी का मिजाज भी बदलेगा.
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