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Success Story: फूल और पत्तियों के हर्बल रंग से बनाती हैं मधुबनी पेंटिंग, हजारों में पहुंची कमाई

Success Story: फूल और पत्तियों के हर्बल रंग से बनाती हैं मधुबनी पेंटिंग, हजारों में पहुंची कमाई

बच्चों को फूल-पत्तियों से हर्बल रंग तैयार करना सिखाती हैं. शिल्पी का कहना है कि वह करीब 10 साल से लोक कला के संरक्षण को बढ़ावा दे रही हैं. प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए एमडीडीएम में दाखिला लिया. कॉलेज स्तर के आयोजनों में अपनी कला का प्रदर्शन किया.

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फूल और सब्जी के छिलके से तैयार कर रही हर्बल रंग फूल और सब्जी के छिलके से तैयार कर रही हर्बल रंग

फूल-पत्तियों से रंग तैयार कर मिथिला पेंटिंग और टिकुली कला में रंग भरने वाली रामबाग की शिल्पी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. शिल्पी का कहना है कि बचपन से ही मुझे रंगों और चित्रकारी का शौक था. साइकोलॉजी से पीजी तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने बचपन के शौक को ही अपना करियर बना लिया. शिल्पी जब छोटी थी तो जब वह अपने ननिहाल दरभंगा गयी तो लोगों को मिथिला पेंटिंग बनाते देख उनकी रुचि इसमे जाग गई.

फूल-पत्तियों से बनाया हर्बल रंग

इसी दौरान उनके मन में यह जानने की जिज्ञासा पैदा हुई कि प्राचीन काल में रंग कैसे तैयार किए जाते थे. तब उन्हें रामायण काल से प्रेरणा मिली. उसी से उन्हें फूल-पत्तियों से रंग तैयार करने की जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने खुद रिसर्च करना शुरू कर दिया. उन्होंने फूलों और पत्तियों से हर्बल रंग भी तैयार किए और टिकुली कला और मधुबनी पेंटिंग भी बनाना शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पहले जिला फिर राज्य और अब देश स्तर पर जाना जाता है. शिल्पी खुद के सपने तो पूरे करने के साथ-साथ आसपास के बच्चों को भी आर्गेनिक रंग तैयार करने, मधुबनी पेंटिंग और टिकुली कला का निशुल्क प्रशिक्षण दे रही हैं.

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लोक कला के संरक्षण का काम कर रहीं शिल्पी

बच्चों को फूल-पत्तियों से हर्बल रंग तैयार करना सिखाती हैं. शिल्पी का कहना है कि वह करीब 10 साल से लोक कला के संरक्षण को बढ़ावा दे रही हैं. प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए एमडीडीएम में दाखिला लिया. कॉलेज स्तर के आयोजनों में अपनी कला का प्रदर्शन किया. तभी एक टीचर ने गोवा में गोइंग टू स्कूल नाम की संस्था से जुड़ने की बात कही. इससे जुड़ने के बाद वह सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को इस कला का प्रशिक्षण देने लगीं. इसके साथ ही उन्होंने पेंटिंग और रंग तैयार कर उसका अलग-अलग मंचों पर प्रदर्शन भी करना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उनकी कला को पहचान मिलने लगी.

अब तक जीत चुकी हैं 40 अवार्ड 

शिल्पी ने राज्य और देश स्तर पर 40 से अधिक पुरस्कार जीते हैं. 3 फरवरी को फेस ऑफ फ्यूचर इंडिया संस्था को राष्ट्रीय स्तर पर प्रेरित ऑर्गेनिक कलर जागरण दूत से छपरा में सम्मानित किया जाएगा. फिलहाल 15 बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. शिल्पी का कहना है कि बाजार में बिकने वाले सिंथेटिक रंग पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं. इसलिए वो खुद ऑर्गेनिक रंग तैयार करती हैं. और वो इसी से मिथिला पेंटिंग भी बनती हैं. शिल्पी का उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित, स्वच्छ और शुद्ध रखना है. शिल्पी घर पर ही मिथिला पेंटिंग वाली साड़ी, दुपट्टा और सूट भी तैयार करती हैं.

दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं शिल्पी

शिल्पी ने बताया कि एक पेंटिंग तैयार करने में 100 से 200 रुपये का खर्च आता है और यह 1500 रुपये में बिक जाती है. इसी तरह, मैं सभी सूट, साड़ी पर मधुबनी पेंटिंग करती हूं और मुझे ऑनलाइन ऑर्डर भी मिलते हैं. इतना ही नहीं, मैं स्कूली बच्चों को हर्बल रंग बनाना और उनसे पेंटिंग करना भी सिखाती हूं. ताकि जिस तरह मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं, औरों को भी आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं.