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साठा सो पाठा! बुजुर्ग जिंदाल सिंह ने सीतामढ़ी में बाजरे की खेती को कर दिया जवान, सरकार भी बोली वाह

साठा सो पाठा! बुजुर्ग जिंदाल सिंह ने सीतामढ़ी में बाजरे की खेती को कर दिया जवान, सरकार भी बोली वाह

जिंदाल सिंह ने बताया कि सीतामढ़ी के क्षेत्र में बाजरे की खेती नहीं होती है और वह मधुमक्खी पालन करते हैं. मधुमक्खी के डिब्बे की खेप वह राजस्थान में बेचते हैं. इसी बीच उन्हें किसी ने बताया कि राजस्थान में बाजरे की खेती होती है जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद है और उससे कमाई भी बेहतर होती है. फिर जिंदाल सिंह ने इस पर अमल करना शुरू कर दिया.

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बाजरे की खेती बाजरे की खेती

देश के किसान अब कृषि के क्षेत्र में पारंपरिक अनाजों की खेती को छोड़कर मार्केट के डिमांड वाली फसलों की खेती करने लगे हैं. इन फसलों की खेती से किसानों को काफी मुनाफा भी हो रहा है. साथ ही उनकी आय में बढ़ोतरी भी हो रही है. ऐसे ही एक किसान हैं जो पारंपरिक फसलों को बाजरे की खेती कर रहे हैं. ये किसान बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले हैं और उनका नाम है जिंदाल सिंह. इन्होंने बाजरे की खेती करके बढ़िया मुनाफा कमाया और प्रगतिशील किसानों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवाया है.

बुजुर्ग जिंदाल सिंह ने बताया कि वे पहले धान-गेहूं और मक्के की खेती करते थे, जिसमें उन्हें फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता था. इसको देख जिंदाल सिंह को लगा कि क्यों न कुछ नया अपनाया जाए. इसी के बाद शुरू हुई उनकी बाजरे के खेती. आइए उनकी पूरी यात्रा के बारे में जानते हैं.  

बाजरे की खेती में मिली सफलता

जिंदाल सिंह ने बताया कि सीतामढ़ी के क्षेत्रों में बाजरे की खेती नहीं होती है और वह मधुमक्खी पालन करते हैं, जिसकी खेप वे राजस्थान में बेचते हैं. इस बीच उन्हें किसी ने बताया कि राजस्थान में बाजरे की खेती होती है जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद है और उससे कमाई भी बेहतर होती है. फिर जिंदाल सिंह ने राजस्थान से बाजरे की बीज मंगवा कर इसकी खेती की. उन्होंने बताया कि शुरू में जब उन्होंने खेती की तो बारिश हो गई जिसमें उन्हें लाभ नहीं मिला. लेकिन बुजुर्ग जिंदाल सिंह ने हार नहीं मानी और दोबारा बाजरे की खेती की जिसमें उन्हें सफलता मिली.

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5 एकड़ में करते हैं खेती

किसान ने बताया कि बाजरे की खेती में फसल होने के बाद वे अपने 5 एकड़ खेत में बाजरे की खेती करते हैं. इसमें उनकी कमाई लागत से अधिक होती है. वहीं बाजरे की उनकी सफल खेती को देखने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी भी आते हैं और बुजुर्ग जिंदाल सिंह की प्रशंसा करते हैं. साथ ही अगल-बगल के गांव के लोग भी बाजरे की खेती को देखने आते हैं और इसके बारे में उनसे जानकारी लेते हैं.

बाजरे की ये दो किस्में बेहतर

पूसा 605- बाजरे की इस किस्म की खोज 1999 में हुई थी. ये किस्म 75 से 80 दिनों में पकने वाली बेहतर किस्म है, जो बेहद कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए अच्छी मानी गई है. इसके अलावा इस किस्म की खासियत ये है कि इसकी औसतन पैदावार 9 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. साथ ही सूखे चारे की पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

राज 171- मध्यम और सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरे की इस किस्म को उगाया जाता है. इस किस्म से बाजरे की अच्छी पैदावार ली जा सकती है. मध्यप्रदेश में इस किस्म की व्यापक स्तर पर खेती की जाती है. इस किस्म की खोज वर्ष 1992 में हुई जिसकी खासियत ये है कि इससे पैदा होने वाले बाजरे के सिट्टे लंबे और बेलनाकार होते हैं. वहीं ये किस्म 85 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.