
Turmeric Cultivation in Kushinagar: अगर इंसान के अंदर कुछ कर सकने का जज्बा हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता. ऐसे ही हल्दी के उत्पादन की बड़ी पहल भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर जिले में ब्लाक रामकोला के एक किसान ने की हैं. किसान बीएम त्रिपाठी ने इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से बातचीत में बताया कि सबसे पहले साल 2015 में हम टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर हल्दी की खेती कुछ किसानों के साथ मिलकर इसकी शुरूआत की थी. लेकिन 2022 अजीम जी प्रेमजी फाउंडेशन बैंगलोर के साथ हमने बड़े पैमाने में शुरु की. उन्होंने बताया कि आज 500 किसानों के साथ मिलकर 100 एकड़ में कुशीनगर के दुदही, रामकोला, बिसुनपुरा, खड्डा, सेवरही, कप्तानगंज, कठकुइयां और फाजिलनगर में इसकी खेती हो रही है. फिलहाल कुछ किसानों की सालाना आय करीब 5 करोड़ रुपये हैं.
किसान बीएम त्रिपाठी ने आगे बताया कि आने वाले दिनों में हमारा लक्ष्य 1500 किसानों को इस खेती से जोड़ने का है. इनकम के बारे में त्रिपाठी ने बताया कि एक किसान को एक एकड़ में लागत निकालने के बाद हल्दी की खेती में करीब एक लाख रुपये का फायदा होता है. वर्तमान में 500 किसान इस खेती से जुड़े हुए है.
किसानों के बीच काम करने वाली संस्था सस्टेनेबले ह्यूमन डेवलपमेन्ट एसोसिएशन (एसएचडीए) ने इसकी खेती का नियोजित प्रयास शुरू किया. बीएम त्रिपाठी के अनुसार कुशीनगर के कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) के अनुसार राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली, नरेंद्र हल्दी-1 सबसे अधिक उपज देने वाली प्रजातियां हैं.
अगर किसानों को व्यापक स्तर पर खेती के उन्नत तौर-तरीकों के बाबत प्रशिक्षण दिया जाए. जरूरत के अनुसार उनको बेहतर प्रजातियों के गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराए जाएं, पैदावार के प्रसंस्करण, पैकिंग और बाजार दिलाने में सहयोग किया जाय तो हल्दी की खेती से इस अति पिछड़े जिले के किसानों की किस्मत बदल सकती है. उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार को आगे आना होगा.
बीएम त्रिपाठी कहते हैं कि 500 किसानों को जोड़कर एक एनजीओ बनाया गया. सभी किसान इसमें स्टेकहोल्डर हैं. बता दें कि कुशीनगर बिहार से सटा पूर्वांचल का एक जिला है. यह फोर लेन की सड़क से बिहार से लेकर बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों से इसकी बेहतर कनेक्टिविटी है. इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाने के बाद तो इसकी पहुंच विदेशों तक हो गई है. बुद्ध से जुड़ा होने के नाते कुशीनगर की हल्दी में भी ब्रांड बनने की पूरी क्षमता है.
उन्होंने कहा कि अगर कोई किसान तगड़ी कमाई करना चाहता है, तो हल्दी की खेती एक अच्छा विकल्प है. इसकी खेती से वो मालामाल हो सकता हैं. वहीं हल्दी की खेती अगर डोमट मिट्टी में की जाए तो और अच्छी होती है. हल्दी एक ऐसी फसल है जो छायादार जगह में भी अच्छा उत्पादन देती है.हल्दी की खेती के दौरान कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए उचित उपाय करें. फसल को सही समय पर खेत से निकाल लें. तैयार होने के बाद एक पौधे से लगभग 500 से 700 ग्राम हल्दी निकल पाती है.
आपको बता दें कि दक्षिण भारत का इरोड,सांगली और निजामाबाद में सबसे ज्यादा किसान हल्दी की खेती करते है. वहीं हर घर के रोजमर्रा की जरूरत जल्दी खूबियों से भी भरपूर है. एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेटरी होने के नाते हल्दी दर्द, चोट,मोच,दांत के रोगों में फायदेमंद है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती. यह रक्त शोधक भी होती है. वहीं स्किन के लिए यह बेहद फायदेमंद है. इसमें मौजूद मेलोटिन नींद लाने में मददगार है. इसके अलावा करक्यूमिन जिसकी वजह से हल्दी का रंग पीला होता है वह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है.
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