
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में किसानों का आंदोलन दिल्ली किसान आंदोलन का रूप धारण करता नज़र आ रहा है. यहां मुख्यमंत्री के गृह जनपद में 20 गांवों की लगभग छह हजार एकड़ भूमि का मामला ऐसा उलझा है कि सुलझने का नाम नहीं ले रहा है. अब ये मामला दिन प्रति दिन बड़ा रूप लेता नज़र आ रहा है. यहां मंगलवार को हजारों की संख्या में किसानों ने उधम सिंह नगर में विशाल जुलूस निकाला और तहसील बाजपुर के परिसर में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. बुधवार को धरने का दूसरा दिन रहा जिसमें सैकड़ों किसानों ने हिस्सा लिया.
धरने पर बैठे किसानों का कहना है कि उधम सिंह नगर के विधानसभा बाज़पुर की 5838 एकड़ और 20 गांव की जमीन को बचाने की मुहिम की शुरुआत हो चुकी है. भूमि बचाओ मुहिम के समर्थन में मंगलवार को 20 गांव के ज़मीनी मुद्दे से जुड़े लोग अनाज मंडी में जमा हुए. यहां कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी भूमि बचाओ आंदोलन में अपने पार्टी समर्थकों के साथ दमख़म दिखाया. इसके बाद बुधवार को दूसरे दिन भी धरने पर सैकड़ों किसान डटे रहे. किसानों का साफ तौर पर कहना है कि ज़ब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाएगा, ज़ब तक वे अपने धरने से नहीं हटेंगे. किसानों का कहना है कि चाहे उन्हें दिल्ली किसान आंदोलन जैसी स्थिति क्यों ना पैदा करनी पड़े.
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दिल्ली में कई महीनों तक चला किसान आंदोलन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया था. इसमें देश के कई राज्यों के किसान दिल्ली के बॉर्डर पर महीनों तक बैठे रह गए थे. यह आंदोलन कृषि कानूनों के खिलाफ था. बाद में केंद्र सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था. इसके बाद किसान अपने घरों को लौट गए थे. उधम सिंह नगर के किसान भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनाने की तैयारी में हैं. उनका कहना है कि सरकार उनकी मांग नहीं मानेगी तो वे दिल्ली की तरह विरोध प्रदर्शन करेंगे.
ज़ब 'उत्तराखंड तक' ने अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे किसानों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि विधानसभा बाजपुर में 20 गांवों की लगभग छह हजार एकड़ भूमि पर तत्कालीन डीएम नीरज खैरवाल ने जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी है. यहां के किसानों का कहना है कि रोक तो गई जबकि इस भूमि पर वे लोग 50 वर्षों से अधिक समय से काबिज हैं. जमीन पर उनकी दाखिल ख़ारिज है. वर्ग एक क की भूमि होने के बाद भी उनसे मालिकाना हक़ छीन लिया गया है.
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धरना देने वाले किसान और आम लोगों का कहना है कि एक ओर सरकार जमीनों का मालिकाना हक़ देने की बात कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ मालिकाना हक़ छीनने का काम कर रही है. किसानों ने 'उत्तराखंड तक' से खास बातचीत में कहा कि ज़ब तक उनकी मांगों को नहीं माना जाएगा तब तक वे धरना समाप्त नहीं करेंगे. चाहे उन्हें इसे दिल्ली किसान आंदोलन जैसा क्यों ना करना पड़े. किसानों का कहना है कि वे आंदोलन में डटे रहेंगे, चाहे जो भी परिणाम क्यों न हो.
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