तालाब और नदियां जल का मुख्य स्रोत माने जाते हैं. शहर से होकर बहने वाली कई छोटी नदियां आज नाला बन चुकी है. ऐसी ही एक नदी मैनपुरी जिले की है जो अपना अस्तित्व खोती जा रही है. ईशन नदी में लगातार जमा हो रही सिल्ट और अतिक्रमण से इसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है. अब शहद से निकलने वाले गंदे नाले भी इस नदी पानी को प्रदूषित कर रहे हैं जिसकी वजह से किसान अपने जानवरों को इस नदी का पानी नहीं पिलाते हैं. नदी की हालत सुधारने के लिए 4 साल पहले जिलाधिकारी महेंद्र बहादुर सिंह ने कोशिश की थी. इसकी सफाई भी कराई गई. यहां तक की नदी के किनारे कई स्थानों पर सुंदरीकरण कराकर लोगों के बैठने के लिए बेंच लगवाई गई लेकिन कुछ दिन के भीतर ही फिर नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने लगी है.
मैनपुरी जनपद की ईशन नदी कभी शहर की प्यास बुझाने का काम करती थी. आज इस नदी के अस्तित्व पर ही अब संकट मंडराने लगा है. नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि लोग अपने पशुओं को तो छोड़ किसान अपनी सिंचाई के लिए भी इस पानी का प्रयोग नहीं करते हैं. जबकि 3 दशक पूर्व गांव की फसलों की सिंचाई और पशुओं के पीने के पानी नदी से ही उपलब्ध होता था. मैनपुरी के समाजसेवी कमलाकांत बताते हैं कि नदी का पानी अब इतना प्रदूषित हो चुका है कि ग्रामीणों को अपने पशुओं को बांध कर रखना पड़ता है जिससे कि वह नदी का पानी पी न ले. किसान मनोज का कहना है कि पशु इस नदी का पानी पीते ही बीमार हो जाते हैं यहां तक कि कई पशुओं की मौत भी हो चुकी है.
पुराने गजेटियर के अनुसार 12 वीं सदी में इस नदी को इच्छु नदी नाम से जाना जाता था जो 18 वीं सदी में ईशन नदी कहलाने लगी. एटा जिले के रिजोर कस्बे की बड़ी झील से इस नदी का उद्गम माना जाता है. यह नदी घने जंगलों और चारागाह से गुजरती हुई कन्नौज के पास गंगा नदी में मिल जाती है. शुरुआती दौर में यह नदी काफी पवित्र मानी जाती थी लेकिन समय और बढ़ते शहरीकरण के चलते इस नदी के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मडराने लगे हैं.
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