
पठानकोट जिले के कई परिवार रेशम के कीड़ों से रेशम बनाकर अपना गुजारा करते आ रहे हैं. इस व्यवसाय में पंजाब सरकार का सेरीकल्चर विभाग साल में 3 बार बाहरी राज्यों से रेशमकीट के सीड मंगवाता है. 15 दिनों तक इनकी देखभाल करदे के बाद इन रेशमकीटों के रख-रखाव के लिए किसानों को दे दिया जाता है. जिसके बाद ये रेशमकीट कोकून का उत्पादन करते हैं. इस 2 महीने की उपज को कई राज्यों के व्यापारियों को बेचकर किसान मोटा मुनाफा कमाते हैं.
सेरीकल्चर विभाग के मैनेजर अवतार सिंह ने बताया कि विभाग केंद्रीय रेशम बोर्ड से रेशम के कीड़ों के सीड खरीदता है. इन रेशम के कीड़ों को एक विशेष तापमान में रखा जाता है. जिसके बाद उन्हें पालने के लिए किसानों को दे दिया जाता है. अवतार सिंह ने कहा कि इस काम को और बढ़ावा देने के लिए सरकारों द्वारा कई पहल की जा रही हैं. उन्होंने बताया कि पहले पठानकोट जिले में रेशम मलवरी से ही रेशम पैदा होता था. लेकिन अब बढ़ती मांगों को देखते हुए ऐरी और टसर से भी रेशम तैयार किया जाता है.
ऐसा में यह उम्मीद लगाई जा रही है कि अगर ऐसा किया गया तो पंजाब उत्तरी क्षेत्र में रेशम की तीन किस्मों का उत्पादन करने वाला पहला राज्य बन जाएगा. उन्होंने कहा कि विभाग इन लोगों की कीड़ों को पालने में काफी मदद करता है. जब इन कीड़ों से रेशम का उत्पादन होता है तो कई राज्यों से आए हुए व्यापारी इन्हें खरीदने के लिए आते है. इन व्यापारियों से किसानों को भारी मुनाफा होता हैं.
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वहीं, रेशमकीट पालने वाले किसानों ने बताया कि वे कई वर्षों से सहायक व्यवसाय के रूप में यह व्यवसाय कर रहे हैं. उनका पूरा परिवार मिलकर रेशम के कीड़ों को पालता है. इस सारे काम में उन्हें विभाग से भी काफी मदद मिलती है. अब उनका कहना है कि विभाग रेशम के कीड़ों को पालने के लिए विशेष कमरे बनाने के लिए अनुदान देता है और वे कुछ ही दिनों में अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं.
रेशम भारतीय इतिहास में चर्चा का विषय रहा है. रेशम की चमक से लेकर उसके कोमल गुणों तक के दीवाने ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में हैं. जिस वजह से भारतीय रेशम की मांग लगातार बढ़ रही है. दो सौ साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच हान राजवंश के शासनकाल में रेशम के व्यापार में वृद्धि हुई. तब से लेकर आजतक रेशम की मांग बनी हुई है. ऐसे में रेशम की खेती कर रहे किसानों के लिए यह हमेशा से मुनाफे का सौदा रहा है.
इनपुट: रिपोर्ट/पवन सिंह
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