पराली से होने वाले प्रदूषण के लिए देश में दूसरे सबसे बड़े जिम्मेदार राज्य हरियाणा में पूसा बायो डीकंपोजर का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके माध्यम से पांच लाख एकड़ धान क्षेत्र में पराली मैनेजमेंट करने की बात कही गई है. राज्य सरकार किसानों को मुफ्त में पूसा बायो डीकंपोजर किट प्रदान करेगी. हरियाणा में हर वर्ष लगभग 30 लाख टन धान की पराली उपलब्ध होती है. इस साल सूबे में धान का कुल क्षेत्रफल 14.82 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है. डीकंपोजर को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. पूसा बायो-डीकंपोजर एक माइक्रोबियल समाधान है जो 15-20 दिनों में धान की पराली को खाद में बदल देता है.
हरियाणा सरकार द्वारा वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 22 जिलों में से 9 में पराली जलाने के 2022 के आंकड़ों के अनुसार खेतों में आग लगने की घटनाएं शून्य या बहुत कम हैं. चार जिलों में आग लगने की घटनाओं को 100 से नीचे लाया गया है. इनमें पलवल, पानीपत, रोहतक और सोनीपत शामिल हैं. पिछले वर्ष पराली जलने के जो हॉटस्पॉट जिले हैं उनमें फतेहाबाद, कैथल और जींद शामिल हैं. जहां पर खेतों में आग लगाने की घटनाएं 500 से अधिक हैं. सिरसा, कुरूक्षेत्र, करनाल, अंबाला, यमुनानगर और हिसार की स्थिति भी खराब है.
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पराली जलाने के मामले में रेड जोन में 147 गांव हैं. रेड जोन के अधिकांश गांव फतेहाबाद (49), कैथल (36), जींद (24), सिरसा (11) और करनाल (10) जिलों में स्थित हैं. जबकि येलो जोन में 582 गांव बताए गए हैं. यहां ग्रीन जोन में 6175 गांव हैं, जहां पराली जलने के केस कम हैं. खरीफ सीजन 2022 के लिए उपग्रह डेटा के आधार पर, एक्टिव फायर लोकेशन (एएफएल) के मामलों को देखते हुए हॉट स्पॉट गांवों और जिलों की पहचान की गई है. सरकार की कोशिश यह है कि पराली जलाने के मामले कम हों, लेकिन इस साल केस काफी बढ़ गए हैं. साल 2022 में 15 सितंबर से 10 अक्टूबर तक सिर्फ 83 जगहों पर पराली जलाई गई थी, जबकि इस बार केस बढ़कर 319 हो गए हैं.
इस समय हरियाणा में पराली मैनेजमेंट करने वाली 80,000 से अधिक मशीनें हैं. सरकार ने किसानों से अपील की है कि वो पराली के निस्तारण के लिए इन मशीनों का भरपूर इस्तेमाल करें. जानिए, पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार और क्या कर रही है.
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